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साल 2012 की पहली सुबह सोशल मीडिया की दुनिया में भी चहक रही है। शुभकामनाओं की झड़ी लगी है। रात की पार्टी की तस्वीरें फेसबुक, ट्विटर और गूगल प्लस जैसी सोशल नेटवर्किग साइटों पर लगातार दिखाई दे रही हैं। ट्विटर पर नए साल की शुभकामनाओं से जुड़े की-वर्ड अन्ना, लोकपाल, रामकृष्णन और श्रीधरन को ट्रेंडिंग टॉपिक में पीछे छोड़ चुके हैं। सोशल मीडिया पर नए साल की खुमारी अभी छाई रहेगी, लेकिन सवाल बीते साल की सफलताओं-विफलताओं और चुनौतियों से सीखे पाठ का है। साल 2012 में तयशुदा तरीके से ही इतनी घटनाएं होनी हैं जिन पर सोशल मीडिया का सक्रिय होना पक्का है। इस साल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसका बिगुल फूंका जा चुका है। बजट सत्र में एक बार फिर लोकपाल विधेयक राज्यसभा में रखा जा सकता है और उस वक्त भी हंगामा मचना तय है। अन्ना की टीम पांच राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार का ऐलान कर चुकी है और उनकी रणनीति का एक सिरा सोशल मीडिया से जुड़ता ही है। नए राष्ट्रपति का चुनाव होना है जिसे लेकर बहस होगी। आतंकवादी अजमल कसाब की फांसी पर बवाल मचना तय है। आइपीएल के अलावा इस साल लंदन में ओलंपिक होने हैं।
अमेरिका में साल के आखिर में राष्ट्रपति पद का चुनाव होना है जिसमें भारतीयों की भी दिलचस्पी रहती है। इसी साल सलमान खान की एक था टाइगर, आमिर की तलाश और सैफ अली खान की एजेंट विनोद जैसी चर्चित फिल्में रिलीज होंगी, जिन्हें लेकर सोशल मीडिया पर काफी कुछ लिखा जाएगा। कॉमस्कोर की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किग और माइक्रोब्लॉगिंग साल 2011 की सबसे लोकप्रिय गतिविधि रही। लोगों के इंटरनेट पर बिताए हर पांच मिनट में से एक मिनट सोशल मीडिया को समर्पित रहा। भारत में भी सोशल मीडिया की लोकप्रिया में जबरदस्त इजाफा हुआ। अन्ना के आंदोलन ने तो अचानक सोशल मीडिया को लेकर लोगों की राय बदल दी। फेसबुक, ट्विटर जैसे मंचों को एक साल पहले तक शहरी युवाओं का चोंचला कहकर खारिज करने वाले लोग भी मानने लगे कि इन माध्यमों को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मुंबई में 26/11 हमले के वक्त भी सोशल मीडिया की ताकत का अहसास भारतीयों को हुआ था। सोशल मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता को फेसबुक की लोकप्रियता के बरक्स भी पढ़ा जा सकता है। सिर्फ एक साल में भारत में फेसबुक के उपयोक्ताओं की संख्या लगभग दोगुना हो गई है।
सोशल मीडिया की सबसे बड़ी ताकत है शेयरिंग और लाइकिंग यानी माउस के एक क्लिक के साथ लिखे-कहे को अपने समूह में बांटना। इस ताकत को इस वर्ष हमने तमिल-अंग्रेजी मिश्रित गीत कोलावरी डी की सफलता के बरक्स भी पढ़ा। हां, सिक्के के दूसरे पहलू की तरह सोशल मीडिया की यही कमजोरी भी है, क्योंकि यहां लाइक, शेयर या रीट्वीट का बटन दबाने से पहले लोग बहुत सोचते नहीं। तमाम राजनेताओं के खिलाफ भद्दे कार्टून और टिप्पणियों के धुआंधार प्रचार में इस कमजोरी को देखा जा सकता है। दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने इसी नकारात्मक बिंदु के मद्देनजर सोशल मीडिया पर नकेल की कथित कवायद पर जमकर हल्ला मचा हुआ है। नए साल में उम्मीद करनी चाहिए कि सोशल मीडिया यूजर्स अधिक जिम्मेदार दिखेंगे और सोशल मीडिया पर नकेल कसने की कवायद खत्म हो जाएगी। नए साल में सोशल मीडिया से जुड़े विवाद अदालत की दहलीज पर पहुंचने से पहले ही निपटा लिए जाएंगे। भारत में अभी दस फीसदी लोगों तक भी इंटरनेट नहीं पहुंचा है और सरकारी नियंत्रण की कोई भी कोशिश यहां इंटरनेट के विस्तार को प्रभावित करेगी। हालांकि नियंत्रण लगा पाना इतना आसान भी नहीं है।
इस आलेख के लेखक पीयूष पांडे हैं
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