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फेसबुक से आगे

जागरण मेहमान कोना
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इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन की सूचना समाज के मापन पर हाल में पेश रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक यूजर्स संख्या के मामले में अमेरिका नंबर एक पर है, जबकि भारत तीसरे नंबर पर है। अमेरिका में अगस्त 2011 तक 154,040,460 फेसबुक खाते थे। इसके बाद इंडोनेशिया में 39,568,620 और फिर भारत में 33,587,640 खाते हैं। दिलचस्प है कि भारत में 2008 में 16 लाख और 2009 में सिर्फ 35 लाख फेसबुक यूजर्स थे। भारत में फेसबुक की लोकप्रियता को इन आंकड़ों के आइने में आसानी से पढ़ा जा सकता है, लेकिन मुद्दा आंकड़ों का नहीं बल्कि फेसबुक को सोशल मीडिया का पर्याय मानने का है। ब्लॉग, सोशल नेटवर्किग साइट्स, माइक्रोब्लॉगिंग साइट्स, विकी, ऑनलाइन ग्रुप आदि सब सोशल मीडिया का हिस्सा हैं, लेकिन इन दिनों फेसबुक को सोशल मीडिया का पर्याय मान लिया गया है। ऐसा सभी देशों में है जहां सोशल मीडिया का विस्तार हो रहा है, लेकिन भारत में यह चलन कुछ ज्यादा है। सवाल यह भी है कि आखिर भारतीयों को फेसबुक से इतना लगाव क्यों है? ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसी साल जून में जोर-शोर और पूरी तैयारियों के साथ शुरू की गई गूगल प्लस को भी भारतीयों ने खास महत्व नहीं दिया। फेसबुक की तर्ज पर गूगल प्लस को विकसित किया गया था। शुरुआत में गूगल प्लस को प्रतिक्रिया भी बहुत अच्छी मिली।


गूगल दुनिया के करोड़ों लोगों की तरह भारतीयों के जीवन का भी अहम हिस्सा है, लेकिन गूगल प्लस को लोगों ने व्यवहारिक तौर पर लगभग नकार सा दिया है और धीरे-धीरे सोशल मीडिया की गतिविधि फिर फेसबुक के इर्दगिर्द आ सिमटी हैं। फिर फेसबुक पर लोगों का अपना समूह इतना विस्तार ले चुका है कि दूसरी जगह उसी समूह को फिर खड़ा करना आसान नहीं है। फेसबुक का समाजशास्त्रीय विश्लेषण भी है जिसे कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और सोशल मीडिया के जानकर श्रीनिवासन कहते हैं कि भारतीयों को फेसबुक उनके मिजाज के मुताबिक गतिविधियां संचालित करने की छूट देता है। भारतीयों को यह बहुत पसंद है कि वे सबको बताएं कि वे क्या कर रहे हैं। इसी तरह दूसरों के काम में टांग अड़ाना उन्हें पसंद है और फेसबुक पर यही आजादी है। निश्चित रूप से फेसबुक को अब नकारना आसान नहीं है। आज लगभग हर शहरी युवा फेसबुक पर है और सक्रिय है। फेसबुक की उपयोगिता के भी सैकड़ों उदाहरण हैं जिन्हें खारिज नहीं किया जा सकता। हां, सवाल दूसरे मंचों की उपेक्षा का जरूर है। सवाल फेसबुक के खतरों से लोगों को चेताने के नाकाफी प्रयासों का भी है। मसलन हाल में फेसबुक द्वारा यूजर्स की डिलीट की गई जानकारी का मामला उजागर हुआ, जिसमें उसे 1,38,000 डॉलर का जुर्माना भरना पड़ सकता है। 24 साल के आस्टि्रया के छात्र मैक्स श्रीम्स ने इसी साल जून में फेसबुक से अपनी निजी जानकारियों का डाटा मांगा।


फेसबुक ने उसका सारा डाटा एकत्र किया और सीडी भेज दी। 1200 पेज के इस डाटा में कई जानकारियां ऐसी थी जिसे छात्र अपने खाते से कर चुका था। इसके बाद मैक्स की पहल पर ऐसे 22 मामले और सामने आए। इसी तरह अभी फेसबुक पर दस लाख से ज्यादा बच्चों के सक्रिय होने का खुलासा हुआ है। ये मामले सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक के फीचर्स से जुड़े नहीं हैं जो लगातार बदलते रहते हैं। ये फेसबुक से जुड़े गंभीर मामले हैं जिनकी न केवल चर्चा जरूरी है बल्कि लोगों को चेताने की भी आवश्यकता है। इस कड़ी में एक और मामले का जिक्र जरूरी है। दो साल पहले लोगों की निजता संबंधी सैंटिग्स बदलने की वजह से कानूनी पचड़े में फंसी फेसबुक को अब राहत मिलने के आसार हैं। उस वक्त फेसबुक पर सीधा-सीधा आरोप लगा कि उसने कई लोगों की जानकारियों से छेड़छाड़ की। यह मामला उस वक्त काफी तूल पकड़ा था, लेकिन अब फेसबुक को राहत मिलने की संभावना है। दरअसल, फेसबुक के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन जरूरी यह भी है कि इसके दोनों पक्षों को समझा जाए। फेसबुक जिस तरह हमारी जिंदगी में दाखिल हुई है उसके असर बहुत व्यापक रूप से बढ़े हैं। यही कारण है कि आज इस सोशल साइट के हर पहलू हम लोगों को विस्तार से समझने की जरूरत है।


इस आलेख के लेखक पीयूष पांडे हैं


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