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स्पेक्ट्रम पर नया कानून

जागरण मेहमान कोना
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स्पेक्ट्रम घोटाले से बुरी तरह हिली हुई सरकार अब भविष्य में इस तरह के घोटालों से बचने की कवायद में जुट गई है। वह एक ऐसा कानून बनाना चाहती है, जो स्पेक्ट्रम से संबंधित सारे मामलों की देखरेख करे। इनमे स्पेक्ट्रम के प्रबंध, मूल्य-निर्धारण और आवंटन के मामले में शामिल हैं। सरकार ने स्पेक्ट्रम कानून का मसविदा तैयार कर लिया है। नए प्रस्तावित कानून के तहत एक स्पेक्ट्रम प्रबंध आयोग का गठन किया जाएगा। कानून के मसविदे में स्पेक्ट्रम के व्यावसायिक, गैरव्यावसायिक, सामरिक और जनहित इस्तेमाल में फर्क रखा गया है। जहां तक व्यावसायिक इस्तेमाल का प्रश्न है, प्रस्तावित आयोग निष्पक्ष, पारदर्शी और भेदभावरहित तरीके अपनाएगा, जो प्रतिस्पर्धा और बाजार आधारित होंगे। इन तरीकों में नीलामी और टेंडर आदि की प्रक्रियाएं शामिल हैं।


प्रस्तावित आयोग में 10 सदस्य होंगे। इनमें दो अंशकालिक सदस्य शामिल हैं। कैबिनेट सचिव और टेलिकॉम विभाग (डोट) के सचिव क्रमश: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होंगे। आयोग में सूचना-प्रसारण, रक्षा, अंतरिक्ष मंत्रालयों के सचिव भी सदस्य के रूप में शामिल होंगे। स्पेक्ट्रम विधेयक के मसौदे के मुताबिक स्पेक्ट्रम के मूल्य निर्धारण में लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के शुल्क की वर्तमान प्रणाली का अनुसरण किया जाएगा। मसविदे में कुछ शर्तो के स्पेक्ट्रम की शेयरिंग और ट्रेडिंग की अनुमति दी गई है। इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार एक रेडियो स्पेक्ट्रम लाइसेंस प्रदान किया जाएगा, जिसकी एक विशिष्ट वैधता तिथि होगी। इस लाइसेंस को रद, निलंबित, नया या हस्तांतरित किया जा सकता है। विधेयक में स्पेक्ट्रम प्रबंध को सर्विस प्रोवाइडरों को दिए जाने वाले लाइसेंस से अलग रखा गया है। कानून बन जाने के बाद टेलिकॉम विभाग के वायरलेस प्लानिंग एंड कोर्डिनेशन सेल के ढांचे में परिवर्तन किए जाएंगे। अभी स्पेक्ट्रम के प्रबंध और आवंटन का दायित्व इसी सेल के पास है।


स्पेक्ट्रम से संबंधित सारे मामलों से निपटने की सारी जिम्मेदारी स्पेक्ट्रम प्रबंध आयोग की होगी, लेकिन वह समय-समय पर टेलिकॉम रेगुलेरिटी अथारिटी (ट्राई) से स्पेक्ट्रम संबंधी मामलों पर अपनी सिफारिशें देने के लिए कह सकता है। प्रस्तावित स्पेक्ट्रम विधेयक में वायरलेस उपकरण को अवैध ढंग से रखने, लाइसेंस के बगैर रेडियो स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल और स्पेक्ट्रम की जमाखोरी पर कड़ी सजा की बात कही गई है। स्पेक्ट्रम की जमाखोरी का दोषी पाए जाने पर भारी जुर्माने के अलावा तीन साल की कैद की सजा भी सुनाई जा सकती है। मसविदे में एक स्पेक्ट्रम रिफार्मिग फंड स्थापित करने की भी बात कही गई है। लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के शुल्क से मिलने वाली धनराशि का कुछ प्रतिशत इस फंड में जमा किया जाएगा।


आयोग स्पेक्ट्रम की आवंटन नीति निर्धारित करने के अलावा रेडियो तरंगों सें संबंधित फीस और शुल्क भी तय करेगा। वह स्पेक्ट्रम की उपलब्धता के बारे में सार्वजनिक डेटा बेस भी रखेगा। आयोग को स्पेक्ट्रम आवंटन से संबंधित किसी भी विवाद से निपटने के अधिकार दिए जाएंगे। अभी सारे विवादों से निपटने की जिम्मेदारी टेलिकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट एपीलेंट ट्रिब्यूनल के पास है। आयोग ट्राई से सिफारिशें मांग सकता है, लेकिन वह इन्हें मानने के लिए बाध्य नहीं होगा। इस विधेयक की एक खास बात यह है कि आयोग भले ही भारी भरकम अधिकारों से लैस हो, उसकी नकेल सरकार के पास ही रहेगी। विधेयक में आयोग को पूर्ण स्वायत्तता देने की बात नहीं कही गई है। मसविदे के मुताबिक सरकार का निर्णय अंतिम होगा और आयोग सरकार के निर्देशों का अनुसरण करेगा। यह मसविदा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज शिवराज पाटिल की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने तैयार किया है। उल्लेखनीय है कि जस्टिस पाटिल ने 2001 से लेकर 2009 तक हुए स्पेक्ट्रम आवंटन की छानबीन की थी। मसविदा अभी प्रारंभिक अवस्था में है। संसद में इसे पेश करने से पहले सभी संबंधित पक्षों और उद्योग जगत की राय ली जाएगी।


लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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