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प्रधानमंत्री ने संपादकों के एक समूह के साथ वार्ता में बताया कि प्रणब मुखर्जी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि गृह मंत्रालय उनके कार्यालय की जासूसी करा रहा है। शिकायत मिलने के बाद उन्होंने इंटेलीजेंस ब्यूरो (आइबी) को जांच करने और जांच रिपोर्ट सीधे उन्हें पेश करने का आदेश दिया। इस जांच प्रक्रिया से गृह मंत्रालय को अलग रखा गया। आइबी ने बताया कि उसे कोई ऐसा उपकरण नहीं मिला जिससे सिद्ध होता हो कि वहां जासूसी हुई है। प्रधानमंत्री ने बताया कि वह जांच से संतुष्ट हैं। जो लोग कांग्रेस की संस्कृति से परिचित हैं, उन्हें मनमोहन सिंह के थोथे स्पष्टीकरण पर विश्वास नहीं हुआ होगा। इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि मनमोहन सिंह के पूर्ववर्तियों ने किस प्रकार अपने साथियों और राजनीतिक विरोधियों की जासूसी कराने के लिए आइबी और अन्य खुफिया एजेंसियों का इस्तेमाल किया। इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण हैं कि गृह मंत्रालय की निगरानी में अकसर इस प्रकार की गतिविधियों को अंजाम दिया जाता रहा है। वास्तव में, इस मामले में वित्त मंत्रालय ने एक निजी एजेंसी के माध्यम से पता लगाया कि उनका कार्यालय खुफिया निगरानी के अधीन था। इसलिए इन दिनों जब सरकार की साख रसातल में पहुंच चुकी है, आइबी के दावों से अधिक एक निजी एजेंसी के दावे पर विश्वास किया जा सकता है।
एक और कारण है कि क्यों प्रणब मुखर्जी की शिकायतें सही लगती हैं। यह एक लंबी परंपरा है कि कांग्रेसी प्रधानमंत्री आइबी से अपने साथियों की जासूसी कराते हैं और उनसे निजी हिसाब-किताब बराबर करते हैं। सरकार और आइबी व सीबीआई में वरिष्ठ पदों पर तैनात कुछ लोगों ने पुष्टि की है कि कांग्रेसी अपने साथियों और विरोधियों की जासूसी कराते रहे हैं। उदाहरण के लिए पूर्व कैबिनेट सचिव बीजी देशमुख ने बताया कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी आइबी के निदेशक के माध्यम से इटालियन नोटों से भरा एक सूटकेस रोम में अपने साले को भिजवाना चाहते थे। यह राशि प्रधानमंत्री की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप की प्रशिक्षण फीस के मद में दी जानी थी। उन्होंने यह भी बताया कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में आइबी के अधिकारियों को राष्ट्रपति भवन में आने वाले लोगों की जानकारी प्राप्त करने के लिए तैनात किया गया था। देशमुख का कहना है कि राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा व्यवस्था में आइबी अधिकारी शामिल थे, जो राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से मिलने आने वाले लोगों की पूरी जानकारी रखते थे। सुरक्षाकर्मियों को किसी भी आगंतुक की तलाशी लेने और कोई भी लिखित संदेश या दस्तावेज देखने का अधिकार था। इस व्यवस्था से जैल सिंह बहुत नाराज थे। फिर भी सरकार ने निगरानी जारी रखी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि राष्ट्रपति जैल सिंह को यह संदेह था कि कैमरों के माध्यम से उनकी रिकॉर्डिग की जा रही है, इसीलिए उन्होंने महत्वपूर्ण लोगों से अपने चैंबर में मिलना बंद कर दिया था। इसके बजाय वह उनसे मुगल गार्डन में घूमते हुए बातें किया करते थे।
आइबी के पूर्व संयुक्त निदेशक मलय कृष्ण धर ने अपनी पुस्तक ओपन सीक्रेट्स : इंडियाज इंटेलीजेंस अनवील्ड में आइबी के दुरुपयोग का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने बताया कि जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं तो उन्होंने उन्हें तत्कालीन गृहमंत्री जैल सिंह की जासूसी का काम सौंपा था। धर को गुरुद्वारा बांग्ला साहिब में जैल सिंह और जरनैल सिंह भिंडरावाले के एक सहयोगी के बीच हुई वार्ता रिकॉर्ड करने को कहा गया था। धर ने इस काम को अंजाम दिया और रिपोर्ट सीधे प्रधानमंत्री को सौंपी। इससे भी अधिक परेशान करने वाला तथ्य यह है कि इंदिरा गांधी ने इसी अधिकारी से अपनी पुत्रवधु मेनका गांधी की अपने ही आवास 1, सफदरगंज रोड पर जासूसी करवाई थी। यह घटना संजय गांधी की त्रासद मृत्यु के कुछ समय की है। धर ने मेनका गांधी के दोस्तों और रिश्तेदारों पर निगरानी रखी। धर के अनुसार, मेनका गांधी के कुछ दोस्तों में असंतोष था। इसके बाद इस साहसी महिला के संबंध में ढेर सारी जानकारी दी गई जिसने टकराव के रास्ते पर चलने का फैसला कर लिया था। बाद में मेनका गांधी ने प्रधानमंत्री निवास छोड़ दिया। इसके बाद धर को मेनका और उनकी माता अमतेश्वर आनंद की जासूसी के लिए उपकरण और अधिकारियों का इस्तेमाल करने को कहा गया। जोर बाग स्थित उनके आवास का टेलीफोन टेप किया जाने लगा। धर के अनुसार प्रधानमंत्री के कार्यालय के आदेश पर उन्होंने मेनका गांधी की पत्रिका सूर्या के संपादकीय विभाग में अपने आदमी घुसाए।
भारत के प्रधानमंत्रियों द्वारा आइबी और अन्य खुफिया एजेंसियों के दुरुपयोग की दर्जनों घटनाओं के ये कुछ उदाहरण हैं। इनसे पता चलता है कि किस प्रकार प्रधानमंत्रियों ने आइबी से गृहमंत्री और राष्ट्रपति तक की जासूसी कराई। आइबी से परिजनों तक की जासूसी कराई गई। वर्तमान मामले में प्रणब मुखर्जी केंद्रीय मंत्रिमंडल के सबसे वरिष्ठ सदस्य हैं। वह 1970 के दशक में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में वित्त मंत्री जैसे महत्वपूर्ण विभाग संभाल चुके हैं। मनमोहन सिंह नौकरशाह थे, जो नरसिंह राव के कार्यकाल में 1991 में राजनीति में आए और मंत्री बने। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रणब मुखर्जी की उपस्थिति से मनमोहन सिंह को असुरक्षा का बोध हो सकता है। इसी प्रकार की परिस्थितियों में मनमोहन सिंह के पूर्ववर्तियों ने ओछी तरकीबें इस्तेमाल की थीं और वरिष्ठ नेताओं की जासूसी कराई थी। वर्तमान हालात में यह विश्वास करने का कोई कारण नजर नहीं आता कि प्रधानमंत्री ने ऐसा कोई काम किया हो, किंतु हमें ध्यान रखना चाहिए कि भारत में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के रूप में उनसे भी अधिक शक्तिशाली अधिसत्ता का केंद्र मौजूद है। यही शक्ति केंद्र निश्चित करता है कि कौन गृहमंत्रालय का जिम्मा संभालेगा और कौन आइबी का निदेशक बनेगा। इसलिए प्रधानमंत्री को मुक्त करते हुए यह कहा जा सकता है कि इस बात की पूरी संभावना है कि या तो गृहमंत्री या फिर सुपर प्रधानमंत्री द्वारा वित्तमंत्री की जासूसी के लिए सरकारी एजेंसी का इस्तेमाल किया गया। जब वित्तमंत्री ने शिकायत दर्ज कराई तो प्रधानमंत्री ने इसी एजेंसी को जांच सौंप दी। आइबी अधिकारी नार्थ ब्लॉक की जांच पर हंसे होंगे।
इसकी पूरी संभावना है कि पूरे मामले के बारे में प्रधानमंत्री को जानकारी ही न हो। यह कारण इसलिए भी विश्वसनीय नजर आता है कि गांधी-नेहरू परिवार में अपने सांसदों, मंत्रियों, पार्टी नेताओं, परिजनों और यहां तक कि राष्ट्रपति तक की जासूसी की परंपरा रही है। प्रणब मुखर्जी ने हमें याद दिलाया है कि यह परंपरा न केवल जारी है बल्कि और मजबूत होती जा रही है!
लेखक एक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ।
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