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भारत-इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज गुरुवार से शुरू हो रही है। इसके शुरू होने से पहले हर क्रिकेट प्रेमी के दिमाग में सिर्फ यही सवाल है कि क्या भारतीय टीम इंग्लैंड से पिछले दौरे में 4-0 से मिली हार का बदला चुका पाएगी। यही सवाल भारतीय टीम मैनेजमेंट के दिमाग में भी है। इसीलिए इस सीरीज के लिए अच्छी स्पिन पिचों को तैयार किया गया है। इसके पीछे भारतीय टीम की रणनीति साफ है। पिछली सीरीज में इंग्लैंड ने जरूरत से कहीं ज्यादा मददगार विकेटों के भरोसे भारत को हराया था, अब कुछ ऐसे ही हथकंडों के साथ भारतीय टीम तैयार है। हालांकि इसके चलते भारतीय टीम को बाद में आलोचना का शिकार होना पड़ सकता है, लेकिन फिलहाल इसकी फिक्र किसे है? इस बार इंग्लैंड के भारत दौरे से पहले जितनी चर्चा पिच को लेकर हुई, उतनी शायद ही कभी किसी टीम के दौरे से पहले हुई हो। भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी जिस तरह घुमावदार पिचों के समर्थन में खुलकर बोले, वैसे उन्हें पहले कभी नहीं सुना गया। इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ था जब भारतीय टीम विदेशी दौरों से हारकर लौटी, लेकिन पिच को लेकर इतनी किचकिच कभी नहीं हुई। आखिर इस बार पिच को लेकर इतने दांवपेंच क्यों किए जा रहे हैं? पिच के इस पेंच के पीछे असल कहानी है बदला लेने की।
भारतीय टीम इंग्लैंड से 4-0 से टेस्ट सीरीज हारकर लौटी थी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इंग्लैंड दौरे पर भारतीय टीम का प्रदर्शन खराब था, लेकिन इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि इंग्लैंड की टीम ने भारतीय टीम को धूल चटाने के लिए पिच का जबर्दस्त खेल किया था। भारत के पिछले दौरे के लिए जबर्दस्त सीमिंग और तेज ट्रैक तैयार कराए गए थे। उसी का बदला लेने के लिए भारतीय टीम बेताब है। हर हाल में चाहिए जीत भारतीय टीम का सबसे बड़ा हथियार है, फिरकी गेंदबाज और वह अपने इसी हथियार का खुलकर इस्तेमाल करने को तैयार है। आपको याद होगा कि इंग्लैंड के पिछले दौरे में 4 टेस्ट मैचों की सीरीज में भारतीय टीम एक बार भी 300 रनों का आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी। 4 टेस्ट मैच की 8 पारियों में ये आंकड़े शर्मनाक थे। ओवल टेस्ट की पहली पारी में भारतीय बल्लेबाजों ने गिरते-पड़ते 300 रनों का आंकड़ा छुआ जरूर था, लेकिन वे उसे पार नहीं कर पाए थे। हालात इतने खराब थे कि भारतीय टीम किसी भी मैच में 100 ओवर तक बल्लेबाजी नहीं कर पाई थी। नॉटिंघम टेस्ट में तो 48वें ओवर में ही ढेर हो गई थी, लेकिन भारत के मजबूत बैटिंग लाइन अप के इस खराब प्रदर्शन के पीछे की सच्चाई यह भी थी कि इंग्लैंड ने उस सीरीज में माइंडगेम खेला था। भारतीय टीम की उन नाकामयाबियों के पीछे इंग्लैंड की टीम की वह रणनीति थी, जो उन्होंने सीरीज शुरू होने के काफी पहले ही तय कर ली थी। उस सीरीज में इंग्लैंड की टीम हर हाल में जीत चाहती थी। इस बार ऐसी ही रणनीति भारतीय टीम की भी है और इस बार हर हाल में जीत चाहती है भारतीय टीम। इंग्लैंड की टीम कहने के लिए तो सीरीज शुरू होने से कई हफ्ते पहले ही भारत आ गई है।
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भारत आने से पहले उसने दुबई में बाकयदा एक ट्रेनिंग कैंप भी किया। प्रैक्टिस मैच में इंग्लिश खिलाडि़यों ने शतक भी लगाया है, लेकिन क्या इन सारी बातों का फायदा तब होगा जब इंग्लिश टीम असली मैदान पर उतरेगी। भारतीय खेमे ने जान बूझकर अपने बड़े स्पिनर्स को किसी भी प्रैक्टिस मैच में नहीं उतारा। परंपरागत तौर पर इंग्लैंड की टीम को स्पिनर्स के खिलाफ कमजोर माना भी जाता है। पहले दो टेस्ट मैचों के लिए चुनी गई भारतीय टीम में स्पेशलिस्ट स्पिनर के तौर पर हरभजन सिंह, आर अश्विन और प्रज्ञान ओझा को शामिल किया गया है। धोनी इन तीनों स्पिनर्स को प्लेइंग 11 में भले ही न खिला पाएं, लेकिन दो का खेलना तय है। उस पर युवराज की फिरकी, जिन्होंने प्रैक्टिस सेश्न में 5 विकेट लेकर इतना संकेत तो दे ही दिया है कि उनकी गेंदों का सामना करना भी आसान नहीं होगा। भारत और इंग्लैड के बीच रणनीतियों का यह दौर दरअसल बदले की लड़ाई में तब्दील हो चुका है। इसके पीछे शायद 2007 का वह दौरा है, जब भारतीय टीम ने इंग्लैंड को उन्हीं के घर में हराया था। उस हार से बौखलाई इंग्लिश टीम ने भारत के पिछले दौरे से पहले पूरा होमवर्क किया। होमवर्र्क प्रदर्शन से ज्यादा इस बात को लेकर था कि भारतीय टीम को पिच के पेंच में किस तरह फंसाया जाए। तेज और सीमिंग ट्रैक इसी पेंच का हिस्सा थे। भारतीय खिलाडि़यों को जानबूझकर नीचा दिखाने की कोशिश की गई। अब उसी होमवर्क के साथ भारतीय टीम तैयार है। महेंद्र सिंह धोनी ने घुमावदार पिचों की जोर-शोर से वकालत की है। विराट कोहली और हरभजन सिंह ने उनका समर्थन भी किया है। भारतीय कप्तान को बोर्ड से जिस तरह का समर्थन मिला हुआ है उससे यह साफ है कि उन्हें इस सीरीज में विकेट उनकी मर्जी का ही दिया जाएगा।
यानी अब इंग्लैंड को घुमावदार पिचों में फंसाने की बारी है। कितनी जायज है ऐसी रणनीति यह तो हुई रणनीतियों की बात, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस तरह की रणनीति बनाना उचित है? टेस्ट क्रिकेट की खूबसूरती यही मानी जाती थी कि अलग-अलग देशों में अलग-अलग मिजाज की पिचों पर खेल देखने का मौका मिलता था। बल्लेबाजों का इम्तिहान होता है। शायद इसीलिए उसे टेस्ट क्रिकेट कहते भी हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि टेस्ट मैचों में लोगों की दिलचस्पी भी बनी रहे। ऐसा न हो कि मेजबान टीमें अपने अनुकूल पिचें बनाकर अपने घर में मेहमान टीमों के खिलाफ तो सीरीज जीत लें, लेकिन उस सीरीज में एकतरफा फैसलों से उबकर दर्शक मैदान में जाना ही न छोड़ दें और स्टेडियम खाली ही नजर आने लगें। भारत और इंग्लैड दोनों ही इस वक्त टेस्ट क्रिकेट की बड़ी टीमें हैं। दोनों ही टीमों के पास फिलहाल जबर्दस्त खिलाड़ी हैं। कितना रोमांच होता अगर इन दोनों टीमों का मुकाबला टेस्ट क्रिकेट के लिए तैयार किए जाने वाले आदर्श विकेटों पर होता। जहां मैच के पहले दो दिन बल्लेबाजों के लिए रन बनाने का मौका होता। तीसरे दिन से स्पिनर्स को मदद मिलनी शुरू होती, बल्लेबाजी थोड़ी मुश्किल होती जाती। रन बनाने के लिए अपनी काबिलियत दिखानी पड़ती। वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंडुलकर, युवराज सिंह, केविन पीटरसन, एलिस्टर कुक और जेम्स एंडरसन का असली मुकाबला देखने को मिलता। लेकिन, अब मौजूदा रणनीतियों के तहत ऐसा होगा, इसकी उम्मीद कम ही है। दोनों टीमें बराबर की जिम्मेदार इसे सिर्फ भारतीय टीम की गलती भी नहीं कहा जाना चाहिए। जब मनमर्जी वाली पिचें बनाकर इंग्लिश टीम ने भारतीय टीम को धूल चटाई थी, तब किसी ने भी एक शब्द नहीं बोला था। आमतौर पर बात-बात पर हो-हल्ला करने वाला इंग्लिश मीडिया अपनी टीम की कामयाबियों का जश्न मना रहा था।
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शायद ही इंग्लिश मीडिया में किसी ने इस बात का जिक्र किया हो कि पिचों को कुछ ज्यादा ही अनुकूल बनवाया गया था। इसलिए अगर आने वाले दिनों में इंग्लिश टीम हमारी पिचों पर घूमती नजर आए तो उसे शिकायत का अधिकार नहीं है। भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों को यह समझना होगा कि इस वक्त भारतीय टीम के साथ कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और कोच डंकन फ्लेचर की साख भी दांव पर लगी है। साख भारतीय क्रिकेट की भी दांव पर है, क्योंकि अगर पिचें वाकई बेहद घुमावदार हुईं तो इंग्लिश टीम के साथ वहां का मीडिया सबसे पहले बयानबाजी शुरू करेगा। भारतीय पिचों को गेंदबाजों के लिए कब्रगाह कहा जाएगा। ऐसे में भारतीय टीम और भारतीय क्रिकेट के हुक्मरान एक ही काम कर सकते हैं। या तो भारतीय कोच और कप्तान की साख बचा सकते हैं या फिर भारतीय क्रिकेट की। अगर भारतीय टीम गलती से भी स्पोर्रि्टग विकेट बनाने के चक्कर में पड़ती है तो उसे इंग्लैंड की टीम से जरूरत से कहीं ज्यादा कड़ी चुनौती मिलेगी। इसके उलट अगर वह रैंक टर्नर पिचें बनवाती है तो उसे जीत तो मिल जाएगी, लेकिन आलोचना के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा। फिलहाल तो ऐसा लगता है कि भारतीय टीम आलोचना के लिए तैयार है, जिसे जो कहना है वह सीरीज के बाद ही कहेगा। मैचों का फैसला भारतीय टीम के हक में आना चाहिए। तब ही कहीं जाकर टेस्ट क्रिकेट में टीम और धोनी की खोई साख वापस आएगी। बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि अगर जैसे को तैसा की मानसिकता से सोचें तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है, मगर इसके साथ बड़े सवाल छूट जाते हैं।
लेखक शिवेंग्र कुमार सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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