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अनशन पर सवाल

जागरण मेहमान कोना
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अन्ना हजारे फिर से अनशन के लिए तैयार हैं। वह 11 दिसंबर को एक दिन का अनशन करेंगे और यदि बात नहीं बनी तो लंबे अनशन पर जा सकते हैं। यहां समझ नहीं आ रहा कि अनशन की ताकत मालूम हो जाने के बाद भी अन्ना के साथी इस अचूक हथियार का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे हैं और कोई दूसरा नेता अनशन के लिए सामने कब आएगा? किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण, मनीष सिसोदिया या और कोई क्यों नहीं स्वेच्छा से अनशन के लिए अपना नाम आगे बढ़ा रहा। क्या ये लोग सिर्फ विचार देने तक सीमित हैं। ये सभी लोग उम्र में अन्ना से काफी छोटे और स्वस्थ हैं। सरकार पर नैतिक दबाव डालने के लिए अभी तक सिर्फ अन्ना ही अनशन करते रहे हैं और इसका असर भी हुआ है। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए देश खड़ा हो रहा है। जंतर-मंतर पर अन्ना के अनशन का काफी प्रभाव पड़ा था। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी का कहना है कि विरोध प्रदर्शन के तौर पर अनशन का इस्तेमाल करने के मामले में बापू और सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के तरीके में अंतर है।


बापू का अनशन शत्रु को मित्र में बदलने के लिए था, वहीं अन्ना का अनशन शत्रु के खिलाफ है। यही कारण है कि अन्ना के अनशन और उनकी भाषा को लेकर कुछ स्तरों पर निंदा भी हुई है। कहने वाले कह रहे हैं कि वह और उनके साथी संसदीय मर्यादाओं और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए सरकार पर दबाव बना रहे हैं। इनकी भाषा भी कई बार मर्यादित नहीं होती। गांधी इस तरह की कठोर भाषा का इस्तेमाल नहीं करते थे। हालांकि, यहां समझने वाली बात यह भी है कि वह गांधी थे और अन्ना उनके जैसा बनना चाह रहे हैं। अन्ना के अनशन पर तुषार की राय को भी इसी रूप में लिया जा सकता है। अन्ना के कुछ विवादास्पद बयानों के बावजूद देश में उनका सम्मान बढ़ा है। कह सकते हैं कि उन्होंने अनशन की ताकत को पुनस्र्थापित किया है। वह देश में भ्रष्टाचार को शिकस्त देने के इरादे से अनशन कर रहे हैं और मजबूत जनलोकपाल बिल को संसद में पेश करने की मांग पर अड़े हैं।


भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू सारा आंदोलन उनके इर्द-गिर्द घूम रहा है, लेकिन बार-बार अनशन पर जाने के कारण उनकी सेहत बिगड़ी है। पिछले अनशन के दौरान भी उनकी सेहत खराब हुई। उनकी सेहत को लेकर सारा देश चिंतित था और वे भी चिंतित थे जो उनकी राय से पूरी तरह सहमत नहीं थे। जाहिर है कि इसी संदर्भ में पूछा जा रहा है कि अन्ना के साथ उनकी साथी कब अनशन करेंगे? अन्ना ने उन ताकतों को बल दिया है जो संवाद और अहिंसक तरीके से आंदोलन करने में यकीन करते हैं। रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन के दौरान किरण बेदी ने कहा था हम सभी अन्ना की सेहत को लेकर फिक्रमंद हैं, लेकिन अन्ना इसलिए अनशन कर रहे हैं क्योंकि वह पहले भी अनशन कर चुके हैं और उन्हें अनशन का लंबा अनुभव है। यहां सवाल है कि कभी अन्ना ने भी तो पहले अनशन का अनुभव लिया होगा। अनशन का अनुभव तो तभी होगा जब अनशन किया जाएगा।


गांधीजी ने अपने जीवन में कुल जमा 17 बार अनशन किया था। वह भी जब पहली बार अनशन कर रहे थे तो उनके पास इसका कोई अनुभव नहीं था। इसलिए किरण बेदी या अन्ना का कोई भी दूसरा साथी यह तर्क नहीं दे सकता है कि चूंकि उनके पास अनशन करने का अनुभव नहीं है इसलिए वह अनशन नहीं कर सकते। यह अन्ना के अनशन की ही ताकत थी कि अन्ना पर आरोप लगाने वाले भी बाद में उनसे माफी मांगने को विवश हुए। यह अहिंसक आंदोलन की ताकत दिखाता है। गांधीजी कहते थे कि अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति वैर भाव न रखना जरूरी है। जब अनशन और सत्य की ताकत इतनी प्रखर है तो यह बात समझ से परे है कि अन्ना के साथी इससे बच क्यों रहे हैं।


लेखक विवेक शुक्ला स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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