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मानवाधिकार पर सही सवाल

जागरण मेहमान कोना
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वर्षो से जिस आदेश और निर्देश की प्रतीक्षा थी वह मिल गया। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी एवं न्यायमूर्ति सुधांशु ज्योति की पीठ ने पंजाब के आतंकवादी देवेंद्र सिंह भुल्लर को मृत्युदंड न दिए जाने की वकालत कर रहे वकील केटीएस तुलसी से पूछा कि क्या उन लोगों की कोई चिंता है, जिनके परिजन निर्दोष होते हुए भी आतंकवादियों द्वारा मार दिए गए। संसद पर हमले के समय जिन निर्दोषों की जानें गई अथवा जिन्होंने अपने प्राण देकर देश के सम्मान, संसद और सांसदों के जीवन की रक्षा की उन्हें तो लोग भूल गए, पर हमला करने वालों की चिंता अवश्य मानवाधिकारवादियों को हो रही है। यह ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर वर्षो से नहीं मिल रहा था। जब पंजाब के आतंकवाद की आग में 25 हजार से ज्यादा निर्दोष लोग मार दिए गए तब भी देशी-विदेशी मानवाधिकारवादी उनकी दशा पर आंसू बहाने आते थे जो हत्या के अपराध में जेल में डाले गए थे।


कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और इंग्लैंड आदि देशों के बहुत से पत्रकार और तथाकथित मानवाधिकारी उन दिनों अपने कैमरे उठाए केवल आतंकियों की ही वकालत करते रहे। बहुत कम ऐसे लोग आए जिन्होंने आतंक पीडि़तों के आंसू देखे, उनकी चीख-पुकार सुनी। जब पहली बार ढिलवां में बस से निकालकर एक ही संप्रदाय के लोग कत्ल किए गए तब पूरा देश हिल गया। यह क्रम लंबे समय तक चला। कभी खुड्डा कांड, कभी नौशहरा पन्नुआं और मक्खू कांड तथा ब्यास से बटाला की ओर जा रही बस में भयानक कत्लकांड हुआ। पटियाला में निर्जला एकादशी पर बम एवं गोलियां चलाकर 11 मासूम बच्चे मार दिए गए। यह भारत की अति सहनशीलता का ही दोष है कि कभी जनरल वैद्य के कातिलों को सम्मानित किया जाता है और कभी प्रधानमंत्री के हत्यारों तक को शहीद कहा जाता है। तुष्टिकरण की राजनीति इतनी भयावह और गंदी हो गई है कि प्रांत और संप्रदाय के नाम पर भी उन लोगों को बचाने का प्रयास हो रहा है जिन्होंने भरे बाजार में देश की छाती छलनी की। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री धमकी दे रहे हैं कि यदि संसद पर हमले के दोषी अफजल को फांसी दी गई तो देश में हालात बिगड़ जाएंगे।


पंजाब के कुछ नेता देवेंद्र पाल भुल्लर की फांसी माफ करने के लिए दया की याचना कर रहे हैं। उन्हें समझना चाहिए कि दया और क्षमा मनुष्यों के लिए होती है, दानवों के लिए नहीं। यह कैसे हो सकता है कि जो व्यक्ति विदेश में बैठकर भारत को तोड़ने और खालिस्तान बनाने की घोषणा करे उसे भारत वापसी पर आराम से जीने का और मृत्युपरांत पंजाब विधानसभा में श्रद्धांजलि पाने का सम्मान भी मिल जाए। कुछ दिनों पूर्व एक पूर्व सांसद सिमरनजीत सिंह मान पंजाब भवन, दिल्ली में चमकती गाड़ी से उतरता है और कहता है कि मैं गद्दार हूं, खालिस्तानी हूं और आप सबको इसका विरोध करना छोड़ देना चाहिए। फिर भी वह सरकारी आवास में रहता है और सुरक्षा पाता है। मेरे विचार में ऐसी सहनशीलता ही अपराध है। सर्वोच्च न्यायालय ने पशुओं से भी ज्यादा कू्रर आतंकवादियों के वकीलों से प्रश्न पूछा है वह पूरे देश को और तथाकथित मानवाधिकारवादियों को चेताने वाला है। अच्छा हो कि पूरे देश में राष्ट्रभक्त और जागरूक लोग उन नेताओं, कानून के प्रवक्ताओं और ऐसे तथाकथित मानवाधिकारवादियों से यह प्रश्न करें कि क्या उनका कोई अपना किसी बमकांड या गोलीकांड में मारा गया है।


दिल्ली के आलीशान भवनों में रहकर एक-एक केस के लिए अथाह धनराशि लेने वाले देश के कुछ वकील उनकी पीड़ा को अगर नहीं समझ पा रहे जिनके प्रियजन आतंक की आग में जल चुके हैं तो जनता ही उन्हें इस बात को समझा सकती है। जो राजनीतिक दल इन आतंकवादियों की वकालत करके सत्ता के शिखर तक पहुंचना चाहते हैं उनके दुस्वप्न को जनता कभी साकार नहीं होने देगी। सर्वोच्च न्यायालय को हर वह व्यक्ति अब धन्यवाद और शुभकामनाएं दे रहा है जिसने आतंकवाद से संघर्ष किया है, इसका दंश सहा है और बहुत से हंसते-बसते परिवारों को मौत के कफन में लिपटते देखा है। आशा सबको अब यही है कि जहां कोई रास्ता नहीं दिखाएगा, जिस बुराई पर कोई नियंत्रण नहीं कर पाएगा हमारी न्यायपालिका वहां मुक्तिदाता और मार्गदर्शक बनकर आगे आएगी।


लेखिका लक्ष्मीकांता चावला पंजाब सरकार में मंत्री हैं


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