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चमत्कार की उम्मीद नहीं दिखती

जागरण मेहमान कोना
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Awdhesh Kumarआप बदलाव लाओ, हम यूपी का भविष्य बदल देंगे। राहुल गांधी ने जब फूलपुर से इस अपील के साथ अपने भाषण का अंत किया तो कांग्रेस के लिए मिशन-2012 के लिए सबसे बड़ा नारा मिल गया। इसके पहले राहुल ने वहां उपस्थित जन समुदाय विशेषकर युवाओं से पूछा कि कब तक आप महाराष्ट्र में भीख मांगते रहोगे? कब तक पंजाब में मजदूरी करते रहोगे? मैं आपसे जवाब चाहता हूं। इन प्रश्नों के द्वारा उन्होंने उपस्थित युवाओं को झकझोरा। यह उनके करीब आधे घंटे के भाषण का चरम बिंदु था, जिसमें उन्होंने उपस्थित जन समुदाय के साथ संवाद और प्रदे्रश की दशा का भान कराते हुए बदलाव के लिए हुंकार भरने को प्रेरित करने की कोशिश की। प्रश्न है कि क्या फूलपुर से राहुल का आह्वान वाकई मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में राजनीतिक बदलाव के लिए हुंकार भरने को पे्ररित कर पाएगा? निस्संदेह पं. नेहरू के जन्मदिन पर फूलपुर से मिशन-2012 का शंखनाद करके कांग्रेस के रणनीतिकारों ने नेहरू वंश के साथ अतीत में प्रदेश के लोगों के लगाव को पुनर्जागृत करने की कोशिश की है।


स्वतंत्रता पूर्व से लेकर बाद तक नेहरू की लोकप्रियता और उनके प्रति आम जन का आकर्षण कभी रहस्य नहीं रहा। आनंद भवन और स्वराज ट्रस्ट के प्रति लोगों के मन में सम्मान लंबे समय तक कायम रहा। फूलपुर इलाहाबाद से लगा संसदीय क्षेत्र है, जिसमें इलाहाबाद पश्चिम एवं इलाहाबाद उत्तर विधानसभा क्षेत्र आता है। लंबे समय तक वही कांग्रेस का मुख्यालय था, जो दिल्ली स्थानांतरित हुआ। आजादी के बाद लंबे समय तक उत्तर प्रदेश ही नहीं, अनेक प्रदेशों के नेताओं का उद्गम स्त्रोत आनंद भवन रहा है। नेहरू जी के जन्म दिवस से चुनाव अभियान की शुरुआत मेरी याददाश्त में पहली बार हुई है। उत्तर प्रदेश में फिर से अपना पुराना गौरव पाने के लिए छटपटाती कांग्रेस के रणनीतिकारों की नजर में संभवत: इलाहाबाद, फूलपुर, आनंद भवन, पं. नेहरू आदि प्रतीकों में अब भी चुनावी दृष्टि से नॉस्टेल्जिया एवं रोमांसवादी भावना पैदा करने की संभावनाएं बची हैं। नेहरू जी ने स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव से लेकर तीन बार फूलपुर का प्रतिनिधित्व किया।


1984 की जीत के बाद फूलपुर में 1989 की पराजय के साथ कांग्रेस की प्रदेश की सत्ता से विदाई भी हो गई। ध्यान रखने की बात है कि कांग्रेस को इस समय चारों ओर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश में भी कांग्रेस विरोधी तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों बसपा, सपा एवं भाजपा भ्रष्टाचार को लेकर आक्रामक तरीके से उसे कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। इसके साथ ही मुख्यमंत्री मायावती आरोप लगाती हैं कि केंद्र सरकार प्रदेश के विकास में अड़ंगा डाल रही है और विकास के लिए वह जितनी राशि चाहती हैं, नहीं देती। राहुल ने न केवल इन दोनों आरोपों का जवाब दिया, बल्कि कांग्रेस को सकारात्मक कदम उठाने वाला भी साबित किया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में जिधर देखो भ्रष्टाचार है, थाने में बगैर घूस के प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकती। बच्चों को स्कूलों में भोजन नहीं मिलता और दोपहर भोजन योजना के संसाधन भ्रष्टाचार में चले जाते हैं। इसमें भावुकता एवं आक्रामकता दोनों है। इस प्रकार राहुल गांधी ने चुनाव अभियान आरंभ करते समय एक मंजे हुए आक्रामक कांग्रेस नेता की स्वाभाविक भूमिका निभाई। यह कहना कि कोई आपकी मदद नहीं करेगा, आपको स्वयं खड़ा होना होगा और जब आप खड़े हो गए और एक बार तय कर लिया कि बदलाव लाना है तो आप पांच वर्ष में सभी राज्यों को पीछे छोड़ दोगे, वस्तुत: सीधे-सीधे लोगों के हृदय में उतरने वाला उद्बोधन था। लेकिन चुनावों में विजय या राजनीतिक परिवर्तन केवल आक्रामक-प्रेरक उद्बोधनों से नहीं मिल सकता। लोग इतने मात्र से आपके पक्ष में हुंकार नहीं भर सकते। अतीत के प्रतीकों को चुंबकीय शक्ति बनाने के लिए भी बहुआयामी माहौल बनाने की आवश्यकता होती है।


राहुल गांधी ने जितनी बार गरीबों की चर्चा की उससे यह अर्थ निकालना कठिन नहीं है कि वह नेहरू की समाजवादी या मिश्रित अर्थव्यवस्था की याद दिलाना चाहते थे। समाज के एक छोटे वर्ग को यह आकर्षित करे भी, पर सब जानते हैं कि नेहरू की अर्थनीति को उलटने वाले व्यक्ति मनमोहन सिंह इस समय प्रधानमंत्री हैं और राहुल एवं सोनिया गांधी दोनों का उन्हें समर्थन है। अगर नेहरू और फूलपुर का प्रतीक मतदाताओं को सम्मोहित करता तो कांग्रेस वहां दुर्दशा की शिकार नहीं होती।


लेखक अवधेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं


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