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अफगानिस्तान और पाकिस्तान की हाल की घटनाओं से पता चलता है कि अमेरिका की बहुचर्चित आतंकवाद-विरोधी लड़ाई और पाकिस्तान की एक मशहूर छावनी एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बावजूद अफ-पाक क्षेत्र में एक नया तालिबान गलियारा उभर रहा है। दक्षिण एशिया, खास तौर से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के लिए निश्चित ही यह खतरनाक साबित होगा, क्योंकि इनमें से कोई भी देश दीवार पर लिखी इबारत की ओर से आंखें नहीं मूंद सकता। तालिबान, अफगानिस्तान-विरोधी, भारत-विरोधी और अमेरिका-विरोधी नजरिए के साथ हिंसा और आतंक के अपने इस गलियारे का विस्तार करना और अफगानिस्तान में काबुल से लेकर पाकिस्तान में असंतुष्ट तथा उग्र सेराइकी-भाषी लोगों की तीन करोड़ की आबादी वाले सेराइकी इलाकों तक अपना प्रभाव-क्षेत्र कायम करना चाहते हैं। इस गलियारे के सबसे बड़े हिस्से में खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान से लेकर दक्षिणी पंजाब सिंध के इलाके आएंगे। जिहादी संगठनों की मदद से तालिबान, भर्ती के अपने अड्डों और ट्रेनिंग केंद्रों को दक्षिण पंजाब तक फैलाना चाहते हैं और अफगानिस्तान में अपनी सामरिक पैठ भी बनाए रखना चाहते हैं।
इस्लामाबाद और काबुल में सैन्य अधिकारियों के बारे में कहा जाता है कि पाकिस्तान के तहरीक-ए-तालिबान से पूरी तरह प्रभावित तालिबान के प्रति उनके नजरिए अलग-अलग हैं। जो तालिबान में कुछ तत्वों के साथ समझौता करने के बारे में सोचते हैं वे सपने ही देख रहे हैं। समझा जाता है कि अधिकांश तालिबान और पाक सुरक्षा बलों के कुछ वर्गो सहित उनके कुछ साथियों की विचारधारा, तालिबान-समर्थक और अमेरिका-विरोधी है। इन वर्गो में कुछ ऐसे तत्व भी हैं, जो हिंसा, आंदोलनों और अलगाववादी गतिविधियों के जरिए काबुल और कंधार के हालात को एक दिन कश्मीर में बदल देने का सपना देखते हैं। तालिबान गलियारे में सेराइकी हाईवे पर नजर डालने की जरूरत है। सेराइकी अलगाववाद, जिसका तालिबान और उनके पिछलग्गू अवश्य ही फायदा उठाना चाहेंगे उसे लाहौर के एक प्रख्यात टिप्पणीकार, इम्तियाज अहमद, उग्रवाद से पोषित शासकों के अन्यायों से उपजे गुस्से की अभिव्यक्ति के रूप में देखते हैं। सेराइकी अलगाववाद से खुद पाकिस्तान को एक बड़ा खतरा हो सकता है, लेकिन इससे भारत को खुश नहीं होना चाहिए। भारत को इस गलियारे के जरिए पाक-अफगान सीमा पर आतंकवादी हमलों के बारे में गंभीरता से चिंतित होना चाहिए। पाकिस्तान के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी राजनीतिक नीति के तहत अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध नहीं बनाता है।
अफगानिस्तान, कुनार और नांगरहार प्रांतों पर पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी से चिढ़ा हुआ है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने जोर देकर कहा कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान को एक-दूसरे के संपर्क में बना रहना चाहिए और उग्रवादियों के नापाक इरादों को नाकाम करने के लिए मिल कर काम करना चाहिए। पाक आबादी में सेराइकियों की डेरा गाजी खान, रहीमयार खान, बहावलपुर, बहावलनगर, ओकारा, कसूर, झंग, लोधरान और मुल्तान में बहुलता है। ये लोग फारसी, तुर्क या अफगान वंश-परंपरा से ताल्लुक रखते हैं।
सेराइकी आंदोलनकारियों ने सेराइकिस्तान शब्द अपनाया है, जिसमें दक्षिणी पंजाब के सेराइकी-प्रभुत्व वाले सभी क्षेत्र आते हैं। प्रमुख मुद्दा, सिंध नदी के जल संसाधनों के बंटवारे का है, जिसके बारे में सेराइकियों का कहना है कि पंजाब उनसे उनका यह हक छीन रहा है। सेराइकी लोगों की दो महत्वपूर्ण मांगें, भाषायी आधार पर पंजाब प्रांत के बंटवारे और अलग सेराइकी राज्य बनाने तथा पाक आर्मी में सेराइकी रेजीमेंट बनाने के बारे में है। इन मांगों को लेकर चार प्रमुख पार्टियां आंदोलन कर रही हैं, लेकिन इन पार्टियों को पाक सरकार में इस क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों-प्रधानमंत्री गिलानी या विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी से कोई समर्थन नहीं मिल रहा है।
योगेंद्र स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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