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अदालतें जब हो जाती हैं असहाय

जागरण मेहमान कोना
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जयललिता भी कानून से ऊपर नहीं हैं, यह अब साबित हो गया है। हमारे भारतीय संविधान में भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए भ्रष्टाचार विरोधी कानून अस्तित्व में है। इस कानून के तहत अगर कोई राजनेता या सरकारी अधिकारी के पास आमदनी से अधिक संपत्ति पाई जाती है तो उसके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला चलाया जा सकता है। जयललिता जयरामन पहली बार तमिलनाड़ु की मुख्यमंत्री (1991-1995) बनीं, तब उनके पास 66.6 करोड़ रुपये की संपत्ति थी। 1995 में जब करुणानिधि मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने जयललिता पर आमदनी से अधिक संपत्ति रखने के आरोप में उनपर मुकदमा चलाया। इसका फैसला 2001 में आया, तब तमिलनाडु़ में सत्ता परिवर्तन हो चुका था और जयललिता फिर से मुख्यमंत्री बन गई थीं। इस पर करुणानिधि ने यह मांग रखी कि चूंकि सत्ता जयललिता के हाथ में है, इसलिए वह गवाहों को डरा-धमका सकती हैं। लिहाजा, इस मामले की सुनवाई राज्य से बाहर होनी चाहिए। इस पर यह मामला 2003 में बेंगलूर ट्रांसफर किया गया। जब मामले की सुनवाई शुरू हुई, तब जयललिता ने अपनी तरफ से यह कोशिश की कि सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से अदालत पहुंचा ही न जाए।


2006 में जब एक बार फिर करुणानिधि सत्ता पर काबिज हुए, तब उन्होंने जयललिता को अदालत में घसीटने की काफी कोशिशें कीं। इसके बाद भी जयललिता व्यक्तिगत रूप से अदालत नहीं पहुंची। एक बार फिर जयललिता सत्ता पर काबिज हो गई हैं तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में यह आवेदन किया कि उनके खिलाफ चल रहे मामले में उन्हें व्यक्तिगत रूप से हाजिरी देने से मुक्त किया जाए। जब सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता की यह मांग ठुकरा दी तो उन्हें अदालत में व्यक्तिगत रूप से हाजिरी देने जाना पड़ा। लोग इसे प्रजातंत्र की विजय मान रहे हैं तो दूसरी तरफ इस मामले पर हो रही धीमी कार्रवाई भी चर्चा का विषय है। लचर न्याय व्यवस्था का इससे बड़ा उदाहरण और कहीं नहीं मिलेगा। 1995 में दाखिल इस मामले का 14 वर्ष बाद फैसला नहीं आ पाया है। इस बीच सत्ता परिवर्तन का दौर जारी रहा। इस दौरान जयललिता की संपत्ति भी कई गुना बढ़ गई होगी। इसके बाद भी उन्हें कानून छू भी नहीं पाया है। लगता है उन्हें भी अन्य रसूखदारों की तरह कानून का जरा भी भय नहीं है।


जयललिता के खिलाफ जिस अदालत में मामला चल रहा है, वह बेंगलूर की जेल के सामने हैं। इसी जेल में कर्नाटक के भूतपूर्व मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा भी हैं। 1996 में जब जयललिता के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति रखने का मामला चला, तब फरियादी के रूप में द्रमुक के कार्यकर्ता के अंबाझगन और जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी के नाम दिए गए थे। इस मामले में जयललिता आरोपी नंबर एक थीं। उसके बाद जयललिता की खास मित्र शशिकला, इनका भतीजा के. सुधाकरण और इनकी भाभी इलावारसी भी इस मामले में सहआरोपी थे। फरियादियों के आक्षेप के अनुसार जयललिता के पास चेन्नई में एक बंगला और एक फार्म हाउस थे। इसके बाद उनके पास तमिलनाडु में कई स्थानों पर खेती की जमीनें थीं। उनके नाम से हैदराबाद में भी एक फार्म हाउस था। यही नहीं, नीलगिरी में स्थित चाय के एक बगीचे की भी मालकिन थीं। इसके अलावा जयललिता के पास गहने, नकद और बैंक बैलेंस मिलाकार कुल 66.6 करोड़ रुपये की संपत्ति उस समय थी।


जयललिता मुख्यमंत्री के रूप में केवल एक रुपये ही वेतन लेती थीं। इसके बाद भी उनके पास इतनी अधिक संपत्ति कैसे आ गई, यह जानने के लिए उन पर मुकदमा चला। जयललिता के खिलाफ द्रमुक और जनता पार्टी के अध्यक्ष ने मुकदमा किया था। उसके बाद मामला आगे न बढ़े, इसलिए जयललिता ने अदालत की कार्रवाई को करीब 150 बार स्थगित करवाया। जयललिता ने यह दावा किया कि उन्हें परेशान करने के लिए ही यह मामला चलाया गया है। द्रमुक सरकार ने जयललिता के खिलाफ कुल 13 मामले चलाए गए थे। इनमें से 12 में उन्हें निर्दोष माना गया है। अब यदि वे इस मामले में दोषी पाई जाती हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। यही नहीं, उन्हें जेल जाने की तैयारी भी करनी होगी। इसकी पूरी संभावना है। बेंगलूर की विशेष अदालत में जयललिता और अन्य तीन के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत मामला शुरू किया गया है। इस मामले में अब तक कुल 250 गवाहों से पूछताछ हो चुकी है। इन गवाहों के बयानों को हजारों पन्नों पर लिखा गया था। चूंकि सारे बयान तमिल भाषा में थे, इसलिए उनका अंगे्रजी अनुवाद किया गया। जयललिता को इसके अनुवाद पर आपत्ति थी। लिहाजा, उन्होंने अदालत में इस आशय का आवेदन किया।


बेंगलूर में इस मामले की सुनवाई शुरू होने को ही थी कि किसी ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया कि जब तक जयललिता पर अदालत में केस चल रहा है, तब तक उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस अर्जी को रद्द कर दिया। अदालत में कोई मामला चल रहा हो तो उसे किस तरह से न चलने दिया जाए, यदि किसी को यह सीखना हो, तो उसे जयललिता से प्रेरणा लेनी चाहिए। इस मामले में 15 सालों में 150 बार अदालत की कार्रवाई स्थगित की गई है। अभी दो महीने भी नहीं हुए, जयललिता ने अदालत में यह आवेदन किया कि वह मामले से जुडे़ तमाम सवालों का जवाब वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से देने को तैयार हैं। इसलिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने से मुक्ति दिलाई जाए। सर्वोच्च अदालत ने इस अर्जी को नकार दिया और 20 अक्टूर को अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया। 18 अक्टूबर को ही जयललिता ने एक बार फिर अर्जी लगाई कि बेंगलूर में उनकी सुरक्षा व्यवस्था ठीक नहीं है। इसलिए सुनवाई नवंबर तक स्थगित रखी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस अर्जी को भी नए सिरे से खारिज कर दिया। अब जयललिता के सामने अदालत में हाजिर होने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं होने के कारण अंतत: उन्हें अदालत में हाजिर होना पड़ा। आश्चर्य की बात यह है कि जयललिता भ्रष्ट आचरण कर रहीं हैं, यह सबको पता है। उसके बाद भी वह चुनाव जीत ही जाती हैं। आखिर यह क्या माजरा है। इतनी अधिक संपत्ति का वह क्या करेंगी? अभी तो उन आभूषणों की कीमत की गणना नहीं हो पाई है, जिसे पुलिस ने जब्त कर अदालत में जमा कर दिया है। उनकी संपत्ति लगातार बढ़ रही है। इनके वैभवशाली जीवन के आगे हमारे देश का कानून बिलकुल ही पंगु हो जाता है। क्या ऐसे ऐश्वर्यशाली लोगों पर कानून का शिकंजा कसेगा भला? क्या ये भ्रष्ट नहीं हैं? आखिर कहां से आई इतनी अधिक संपत्ति? अब जब सुप्रीम कोर्ट इस दिशा में सक्रिय हो गया है तो लोगों का न्यायतंत्र पर विश्वास बढ़ा है। अगर वह भी सजा देने में विफल साबित होता है तो अन्ना हजारे की तरह आंदोलन ही एक सहारा बचता है।


लेखक महेश परिमल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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