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बाबा रामदेव को लेकर टीम अन्ना का असमंजस भरा रवैया चकित करने वाला है। समझ से बाहर है कि बाबा रामदेव को लेकर टीम अन्ना की ओर से बार-बार अपनी धारणा में परिवर्तन क्यों किया जा रहा है। वह भी तब, जब वह पूरी ईमानदारी और निष्ठा से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद किए हुए हैं। काले धन की वापसी को लेकर देशव्यापी आंदोलन छेड़े हुए हैं। उन्हें जनता का भारी समर्थन भी हासिल है, लेकिन विचित्र लगता है कि समान वैचारिक धरातल पर टीम अन्ना उन्हें अपने अनुकूल क्यों नहीं पा रही है। अभी चंद रोज पहले एक संयुक्त पत्रकार सम्मेलन में समाजसेवी अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने संयुक्त रूप से आह्नान किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ वे मिलकर संघर्ष करेंगे। आंदोलन की रूपरेखा तय करते हुए यह भी बताया गया कि अन्ना महाराष्ट्र के शिरडी से और बाबा रामदेव छत्तीसगढ़ के दुर्ग से जनजागरण यात्रा पर निकलेंगे। तीन जून को दोनों दिल्ली में एक दिन का अनशन करेंगे।
घोषणा के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचना स्वाभाविक था कि लोकपाल पर शुतुरमुर्गी रवैया अख्तियार कर रखी केंद्र सरकार को सबक सिखाने के लिए बाबा रामदेव और अन्ना हजारे का एक मंच पर आना देशहित में होगा, लेकिन सब हवा-हवाई साबित हुआ। दूसरे दिन ही टीम अन्ना बाबा रामदेव से सुरक्षित दूरी बनाती देखी गई। टीम की बैठक में निर्णय लिया गया कि अन्ना हजारे बाबा रामदेव की यात्राओं में शरीक नहीं होंगे। यह कहना कठिन है कि यह फैसला टीम का सामूहिक था या कुछ लोगों का, लेकिन सतह पर जो बात उभरकर सामने आ रही है, उसके मुताबिक बाबा रामदेव को लेकर टीम के सदस्यों के बीच दो फाड़ है। कुछ सदस्यों की इच्छा है कि आंदोलन को व्यापक रूप देने के लिए बाबा रामदेव के साथ मिलकर आंदोलन चलाना देशहित में है। वहीं कुछ सदस्य इस राय से सहमत नहीं हैं। वे इस चिंता से पीडि़त हैं कि बाबा रामदेव के साथ आने से आंदोलन की पंथनिरपेक्षता प्रभावित होगी और उनका कद भी बौना हो जाएगा। जो भी हो, पर आईने की तरह साफ है कि अब टीम अन्ना और बाबा रामदेव एक मंच पर नहीं आने वाले। इसकी पुष्टि खुद अन्ना ने भी कर दी है। उन्होंने कहा है कि वे बाबा रामदेव के साथ देश की यात्रा पर नहीं निकलेंगे। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा है कि काले धन के खिलाफ बाबा रामदेव के अभियान में हमारा समर्थन है और जनलोकपाल पर हमारे पास उनका समर्थन है। अगर यात्रा के दौरान कहीं योगगुरु मिलते हैं तो वे उनके साथ मंच साझा करेंगे, लेकिन यह उद्घोषणा सिर्फ दिखावे भर की है। सच तो यह है कि टीम अन्ना बाबा रामदेव को उसी नजरिये से देख रही है, जिस नजरिये से उनके विरोधी उन्हें देखते हैं।
अन्यथा, इस बात का कोई मतलब नहीं कि एक ओर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के संयुक्त पत्रकार सम्मेलन में साथ आंदोलन करने की घोषणा की जाए और दूसरी ओर टीम अन्ना अलग से फरमान जारी करे। क्या यह माना जाए कि अन्ना हजारे का अपने सदस्यों पर नियंत्रण न के बराबर रह गया है या वे अपनी टीम के सदस्यों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गए हैं? जो भी हो, लेकिन सवाल यहां सिर्फ बाबा रामदेव और टीम अन्ना के मंच साझा करने या न करने तक सीमित नहीं है। सवाल और भी हैं, जिसका उत्तर आना अभी बाकी है। मसलन, क्या टीम अन्ना आंदोलन के स्वरूप और उसके भविष्य को लेकर संजीदा है? क्या टीम अन्ना को पहले की तरह जनसमर्थन हासिल होगा? क्या टीम अन्ना के सदस्य लोकपाल के मुद्दे से भटक कर अन्य मुद्दों पर तो केंद्रित नहीं हो गए हैं? क्या टीम अन्ना के सदस्यों की बदजुबानी से उनके प्रति जनता का आकर्षण कम नहीं हो रहा है? सवाल यह भी है कि कल तक जो राजनीतिक दल उन्हें नैतिक समर्थन दे रहे थे, क्या वे भविष्य में समर्थन देंगे? ऐसे ढेरों सवाल हैं, जिसका उत्तर आने में अभी वक्त लगेगा। लेकिन जिस तरह टीम के सदस्यों के बीच मतभेद उभर कर सामने आ रहे हैं, उससे कतई नहीं लगता है कि टीम अन्ना अपने उद्देश्यों को लेकर गंभीर है।
टीम मुट्ठी की तरह बंधने के बजाए बिखरती जा रही है। टीम के सदस्यों के बीच व्याप्त असंतोष का ही परिणाम है कि उसके कई महत्वपूर्ण सदस्य टीम से बाहर होते जा रहे हैं। टीम अन्ना को नहीं भूलना चाहिए कि जीवन हो या आंदोलन अंतत: विजय दूरदर्शिता की ही होती है। बाबा रामदेव से उसकी सुरक्षित दूरी आंदोलन के लिहाज से कितनी दूरदर्शितापूर्ण है, इस पर उसे जरूर चिंतन-मनन करना चाहिए।
लेखक अभिजीत मोहन स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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