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कांग्रेस के लिए यह विडंबना की बात है कि जब तक वह एक मुश्किल से उबरने की कोशिश करती है, दूसरी मुसीबत उसके गले आ जाती है। अपने दो शीर्ष मंत्रियों के आपसी टकराव से वह अभी फुरसत ही पा सकी थी कि समाजसेवी अन्ना हजारे ने एक बार फिर हुंकार भरकर उसकी बेचैनी में इजाफा कर दिया है। अन्ना ने केंद्र सरकार को आगाह किया है कि अगर वह संसद के शीतकालीन सत्र में जनलोकपाल विधेयक पारित नहीं कराती है तो उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने जा रहे चुनाव में वह कांग्रेस के खिलाफ मतदान के लिए जनता से अपील करेंगे। 13 अक्टूबर को होने जा रहे हिसार उपचुनाव को लेकर भी उन्होंने डुगडुगी बजा दी है। उन्होंने इसका कारण भी बताया है कि कांग्रेस पार्टी शुरु से ही जनलोकपाल बिल का विरोध कर रही है। अन्ना के इस घोषणा से कांग्रेस पार्टी में खलबली मच गई है और उसे समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर अन्ना से वह कैसे निपटे? अन्ना के विरोधस्वर से कांग्रेस पार्टी में छटपटाहट है, लेकिन वह अन्ना से सीधे टकराने से बच रही है।
कांग्रेस के रणनीतिकारों को अच्छी तरह पता है कि अन्ना से सीधे टकराव का क्या परिणाम होगा? यही कारण है कि कांग्रेस के खेवनहार बहुत सूझबूझ से अन्ना की घोषणा पर प्रतिक्रिया से बच रहे हैं और मर्यादा-शालीनता का परिचय देते हुए एक हद तक ही उन पर आक्रमण कर रहे हैं। कांग्रेस अन्ना के खिलाफ अपनी आक्रामकता को बहुत तीखा नहीं करना चाहती है। पिछले दिनों अपने बड़बोलेपन का अंजाम वह भुगत चुकी है। वह नहीं चाहती है कि एक बार फिर उसके खिलाफ देश में माहौल बने। इसलिए उसकी कोशिश यही है कि लोकपाल विधेयक के प्रति प्रतिबद्धता जताकर अन्ना की नाराजगी को दूर किया जाए और सधे हुए शब्दों से उन पर आक्रमण भी किया जाए ताकि यह न लगे कि सरकार अन्ना के दबाव में है। कांग्रेस के वरिष्ठ महासचिव जनार्दन द्विवेदी के बयान को इस संदर्भ में देखा जा सकता है। उनके बयान में आक्रमण, उपदेश, नसीहत और निवेदन सब कुछ है। उन्होंने कहा है कि अन्ना को लोकतांत्रिक मर्यादाओं का खयाल रखते हुए देश के सामूहिक विवेक का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद पर भरोसा रखना चाहिए और ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे उनके द्वारा उठाए गए मसले का राजनीतिक दुरुपयोग किया जा सके।
अन्ना को भरोसा दिलाया जा रहा है कि संसद द्वारा सर्वसम्मति से जो लोकपाल कानून पारित किया जाएगा वह उनकी अपेक्षा के अनुरूप ही होगा। दूसरी ओर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने अन्ना पर पलटवार करते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सिर्फ राजनीतिक और लोकत्रिक प्रक्रिया से ही लड़ी जा सकती है। कांग्रेस के नेताओं के बयानबाजी से यह लग रहा है कि उनकी कोशिश अब यह होगी कि अन्ना हजारे की घोषणा को भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष न मानकर उसे राजनीतिक एजेंडा करार दिया जाए। केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने अन्ना को भारतीय जनता पार्टी के साथ खड़ाकर इसकी पुष्टि की है। अन्ना हजारे और भाजपा को एक साथ दिखाने के इस प्रयास से टीम अन्ना अच्छी तरह वाकिफ है। टीम अन्ना का हौसला इसलिए भी बुलंद है कि मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें संसद में जनलोकपाल विधेयक का समर्थन करने का पत्र सौंप चुकी है। अन्ना की असली नारजगी कांग्रेस से है। उन्होंने नाराजगी की वजह बताते हुए कहा है कि उन्होंने हिसार उपचुनाव की घोषणा के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर जनलोकपाल विधेयक पर उनके विचार जानने की कोशिश की थी। पत्र के उत्तर में सभी दलों का जवाब आया लेकिन कांग्रेस ने कोई उत्तर नहीं दिया। भाजपा भी अन्ना के कांग्रेस विरोध से खुश है, लेकिन जब बात गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की होती है तो भाजपा भी गोलमोल जवाब देती है।
बावजूद इसके कम से कम भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार के सवाल पर मजबूती के साथ अन्ना हजारे के साथ तो खड़ी है। उसे अच्छी तरह पता है कि जिन पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं वहां अन्ना अगर जनलोकपाल बिल को लेकर कांग्रेस की खिलाफत करते हैं तो सर्वाधिक लाभ उसी को मिलेगा। अन्ना ने घोषणा भी है कि उत्तर प्रदेश में वह जनजागरण के लिए मतदान से तीन दिन पहले लखनऊ में अनशन शुरू करेंगे। अपने अभियान के बारे में उन्होंने साफ किया कि केंद्र यदि सशक्त लोकपाल बिल बनवाती है तो उसे सभी राज्यों को मानना होगा फिर चाहे वह मायावती हों या कोई अन्य। इस तरह मतलब साफ है कि अन्ना हजारे के निशाने पर मुख्य रूप से केंद्र में सत्ताधीन कांग्रेस पार्टी को ही रहना है।
लेखक अरविंद जयतिलक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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