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कैसे रुके मानव अंगों का व्यापार

जागरण मेहमान कोना
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Pramod Bhragavमानव अंगों की अवैध खरीद-फरोख्त और इसके लिए गरीबों के अमानवीय शोषण के मामलों में भारी जुर्माने तथा कड़ी सजा देने के प्रावधान से जुडे़ मानव अंग प्रत्यारोपण संशोधन विधेयक 2009 को लोकसभा में पारित करने से एक उम्मीद जगी है। इस विधेयक का मूल उद्देश्य मानव अंग निकाले जाने से लेकर उसके प्रत्यारोपण को पारदर्शी बनाना और मानव अंगों के नाजायज कारोबार पर रोक लगाना है। इस कानून के दायरे में स्टेम सेल के साथ टिशू के व्यापार पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। ऐसे मामलों में अब 10 साल तक की सजा और एक करोड़रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। 1994 में मूल रूप से अस्तित्व में आए इस कानून के तहत अब तक पांच साल की सजा और 10 से 20 हजार तक के आर्थिक दंड का प्रावधान था। अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि लीवर और गुर्दे यानी किडनी का गैर-कानूनी तरीके से प्रत्यारोपण करने वाले चिकित्सा कारोबारी भयभीत होंगे। इसके साथ ही किसी व्यक्ति के निधन के बाद उसके निकटतम परिजनों की सहमति से ही मृत व्यक्ति के महत्वपूर्ण अंग दान करने की भी व्यवस्था इस कानून में है।


देश में फिलहाल 17 केंद्र इस काम में लगे हैं। ऋग्वेद में कहा गया है कि जीव जगत का विकास एक कोशिका से हुआ है और कोशिका के विभाजन से ही विकास आगे बढ़ा। आज दुनिया के चिकित्सा विज्ञानी अपने नए अनुसंधानों से इस निष्कर्ष के इर्द-गिर्द पहंुच रहे हैं। मसलन मानव त्वचा से महज एक स्तंभ या स्टेम सेल को विकसित कर कई तरह के रोगों के उपचार व निदान की पद्धतियां प्रचलन में आ रही हैं। चूंकि कोशिका विभाजित होकर विकसित होने की क्षमता रखती है इसलिए इस प्रक्रिया में पुनर्जीवन की संभावना तलाशी गई है। यदि कोशिकाओं का मानव शरीर के क्षय हो चुके अंग पर प्रत्यारोपित करके विकसित होने का क्रम शुरू हो सके तो ऊतकों की मरमम्त का काम आसान हो जाएगा। ऐसी चमत्कारी उपलब्धि के बावजूद चिकित्सा समुदाय इस प्रणाली को रामबाण नहीं मानता। कई विशेषज्ञों का दावा है कि स्तंभ कोशिका पद्धति को जादुई छड़ी के रूप में पेश नहीं किया जाना चाहिए। शारीरिक अंगों के प्राकृतिक रूप से क्षरण अथवा दुर्घटना में नष्ट होने के बाद जैविक प्रक्रिया से सुधार लाने की प्रणाली में अभी और बुनियादी सुधार लाने की जरूरत है। अलबत्ता इतना जरूर है कि यह एक सर्वोत्तम वैकल्पिक चिकित्सा है और भविष्य में इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ऐसी संशय और असंमजस की स्थिति में जरूरी था कि मानव अंगों की खरीद-फरोख्त और उनके नाजायज कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए एक प्रभावी कानून बनाया जाता। इस संशोधित विधेयक से इसमें मदद मिलेगी।


दरअसल लीवर और गुर्दा यानी किडनी जैसे जीवनदायी अंग यदि पूरी तरह से खराब हो जाते हैं तो इनका सफल उपचार किसी अन्य व्यक्ति के अंगों को बदलकर यानी प्रत्यारोपित करके ही संभव हो पाता है। इसके लिए अंगों की उपलब्धता दो ही तरह से संभव होती है-एक तो अंगदान के जारिये और दूसरे लाचार व्यक्ति का अंग क्रय करके, लेकिन अब लीवर का इलाज रोगी की ही अस्थिमज्जा से स्तंभ कोशिका निकालकर उसके क्षय हो चुके लीवर के हिस्से में प्रत्यारोपित करके किया जा सकता है। इस प्रणाली के अमल में आने पर एक-डेढ़ माह में ही बिना किसी गंभीर आपरेशन के रोग का निदान हो जाता है। इधर वंशानुगत रोगों को दूर करने के लिए महिला की गर्भनाल से प्राप्त स्तंभ कोशिकाओं का भी दवा के रूप में इस्तेमाल शुरू हुआ है। इस हेतु कार्ड ब्लड बैंक भी भारत समेत दुनिया में वजूद में आ रहा है। इस चिकित्सा प्रणाली के अंतर्गत प्रसव के तत्काल बाद गर्भनाल काटने के पश्चात यदि इससे प्राप्त वंश कोशिकाओं का संरक्षण कर लिया जाए तो इनसे परिवार के सदस्यों का दो दशक बाद भी उपचार संभव है। इन कोशिकाओं का उपयोग दंपति की संतान के अलावा उनके भाई-बहन तथा माता-पिता के लिए भी किया जा सकता है। गर्भनाल से निकाले रक्त को क्रायोजेनिक संरक्षण वॉल्ट (कक्ष) में 21 साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है, लेकिन इस बैंक में रखने की शुल्क कम से कम एक लाख रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक है। ऐसे में यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि 20-25 रुपये रोजाना कमाने वाला आम आदमी इन बैंकों का इस्तेमाल कर पाएगा।


सरकारी स्तर पर अभी इन बैंकों को खोले जाने का सिलसिला शुरू ही नहीं हुआ है। यदि होता भी है तो आम आदमी के लिए खाता खोलना भी मुश्किल होगा। हालांकि निजी अस्पताल में इन बैंकों की शुरुआत हो गई है और 75 से ज्यादा बैंक कोशिकाओं के संरक्षण में लगे हैं। इस पद्धति से लीवर, किडनी, हृदय रोग, मधुमेह और स्नायु जैसे वंशानुगत रोगों का इलाज संभव है। नया कानून इन बैंकों की मनमानियों को नियंत्रित करने का काम भी करेगा। महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान निकलने वाले रक्त को अब तक अशुद्ध माना जाता था, लेकिन उसमें जीवन को निरोगी और दीर्घायु बनाने की क्षमता पाई गई है। नए शोधों से पता चला है कि इस रक्त में स्तंभ कोशिकाएं प्रचुर मात्रा में होती हैं। इनका प्रयोग अनेक बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए किया जा सकता है।


मुंबई में तो इन कोशिकाओं के संरक्षण की दृष्टि से मेंस्टुअल स्टेम सेल बैंक भी शुरू हो चुका है। शोधों से पता चला है कि रजस्वला स्त्री के रक्त से मिलने वाली अस्थिमज्जा (बोन मैरो) बाकी कोशिकाओं की बनिस्बत सौ गुना अधिक होती है। इस उपचार पद्धति की सबसे प्रमुख खासियत यह है कि ये आसानी से उपलब्ध हैं और इन्हें एक आसान प्रक्रिया के जरिये इकट्ठा किया जा सकता है। इनके संग्रह के लिए चिकित्सा विशेषज्ञ की भी जरूरत नहीं रहती। इन कोशिकाओं को जमा करने की इच्छुक महिलाओं को महावारी के रक्त को एकत्रित करने के लिए एक विशेष किट बैंक से दी जाती है। इस रक्त से प्राप्त कोशिकाओं से हृदयरोग, मधुमेह, चोट और रीढ़ की हड्डी के इलाज मुमकिन हैं, लेकिन स्तंभ कोशिकाओं से उपचार की ये प्रणालियां अभी शैशव अवस्था में हैं और सीमित हैं। इनसे उपचार भी मंहगा है। इस कारण लीवर और किडनी की बीमारियों को प्रत्यारोपण के जरिये ही दूर करने की सबसे ज्यादा मांग है। इसकी आपूर्ति के लिए सरकार की कोशिश है कि ब्रेन डेड यानी दिमागी तौर पर मृत लोगों के अंगदान से की जाए। भारत में हर साल एक लाख 50 हजार लोगों को गुर्दा प्रत्यारोपण कराना होता है, लेकिन मुश्किल से 5000 लोगों को ही यह संभव हो पाता है। हृदय प्रत्यारोपण के हालात तो बेहद चिंताजनक हैं। देश में हर साल 50 हजार लोग हृदय प्रत्यारोपण के इंतजार में रहते हैं। देश में अंग प्रत्यारोपण के लिए जरूरी चिकित्सा सुविधाओं में हो रही वृद्धि और मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 2009 में संशोधन के बाद अंग प्रत्यारोपण कराने वाले लोगों को काफी मदद मिल सकती है।


लेखक प्रमोद भार्गव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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