- 1877 Posts
- 341 Comments
ट्राई वैली विश्वविद्यालय में भारतीय छात्रों के साथ हुई धोखाधड़ी के बाद एक बार फिर अमेरिका के ही वाशिंगटन शहर में भारतीय छात्रों के साथ धोखाधड़ी का नया मामला सामने आया है। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्दर्न वर्जीनिया में करीब 2400 छात्र पढ़ते हैं जिनमे से करीब 90 फीसदी भारत के हैं। इनमें से भी ज्यादातर छात्र आंध्र प्रदेश के हैं। इस विश्वविद्यालय में अमेरिकी अधिकारियों द्वारा की गई छापेमारी में बड़े स्तर पर गड़बडि़यां पाई गई हैं। यह विश्वविद्यालय केवल 50 विदेशी छात्रों को प्रवेश देने के लिए पात्रता रखता था, लेकिन इसने हजारों छात्रों को धन कमाने के लालच में प्रवेश दे दिया जिस कारण इन छात्रों के भविष्य पर अब ग्रहण लग गया है। इमीग्रेशन एंड कस्टम एनफोर्समेंट और एफबीआइ के अधिकारी भरोसा जता रहे हैं कि छात्र परेशान न हों इसलिए उन्हें दूसरे विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाने की कोशिश की जाएगी, क्योंकि उनके पास वैध दस्तावेज हैं। अधिकारी कुछ भी कहें, फिलहाल छात्रों का भविष्य अंधकार में दिखाई दे रहा है। वैश्वीकरण और बाजारवाद जैसी वजहों से उच्च शिक्षा के अध्ययन-अध्यापन में तेजी आई है।
कई यूरोपीय देशों की डूबती अर्थव्यवस्था को संवारने का आधार भी विदेशी शिक्षा बन रही है। इस कारण शिक्षा के व्यापारीकरण और बाजारीकरण को अमेरिका जैसा सख्त मिजाज देश भी प्रोत्साहित कर रहा है। नतीजतन वहां के कैलीफोर्निया जैसे मशहूर शहर में ट्राई वैली नामक एक विवि. कुछ समय पहले फर्जी पाया गया था। यह विवि. विज्ञापन देकर विदेशी छात्रों को रिझाने में वर्षो से लगा हुआ था। बाद में पता चला कि विवि. फर्जी था। वह उच्च शिक्षा के बहाने विदेशी मुद्रा कमाने के गोरखधंधे में लगा हुआ था। विदेशी शिक्षा की मृगतृष्णा ने हजारों भारतीय व एशियाई देशों के छात्रों के भविष्य पर ग्रहण तो लगाया ही वहां की सरकार ने भारतीय छात्रों के पैरों में रेडियो कॉलर पहनाकर अमानवीय व्यवहार भी किए। कमोबेश ऐसा ही आचरण जंगली जानवरों पर नजर रखने के लिए वनाधिकारी करते आए हैं। अमेरिकी अधिकारी इन मामलों को परदेशगमन यानी इमीग्रेशन में धोखाधड़ी का मामला बता रहे हैं, लेकिन सवाल है इसमें छात्रों का दोष किस तरह चिह्नित होता हैं? यह तो संबंधित विवि. का दोष है। शिक्षा के वैश्विक बाजार में इस समय उछाल आया हुआ है जो कई यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था को समृद्ध बना रही है। विकासशील देशों में हर साल हजारों छात्र अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, जापान, जर्मनी और कनाडा उच्च शिक्षा हासिल करने जाते हैं। भारत और चीन के छात्र विदेशी पढ़ाई में सबसे ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। विदेश जाने वाले विद्यार्थियों में से 81 प्रतिशत छात्रों के पसंदीदा देश अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया हैं।
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा लूट में आहुति देने में प्रमुख योगदान भारत और चीन का है। 2006 के आंकड़ों का आकलन करें तो ऐसे छात्रों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 18 अरब डॉलर और आस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था में करीब 8 अरब डॉलर का योगदान किया था। मंदी के दौर में लड़खड़ाती अर्थव्यवस्थाओं को स्थिरता देने में इस विशाल धनराशि का महत्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान में करीब 24 लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं। इनकी संख्या में और इजाफा हो इसलिए कई नामचीन देश अपनी शिक्षा नीतियों को तो शिथिल कर ही रहे हैं शिक्षा के लिए आने वाले छात्रों हेतु वीजा को भी आसान बना रहे हैं। लिहाजा विदेश पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। ये मामले संस्थागत अपराध के हैं। ये विश्वविद्यालय बाकायदा विज्ञापन देकर गैर-कानूनी शिक्षा व्यापार में एक दशक से भी ज्यादा समय से छात्रों को छलपूर्वक ठगने में लगे थे, लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने अपने देश के इन दोषियों को अब पकड़ने में सफल हो पा रहा है। इन विश्वविद्यालयों के बारे में भूल से भी यह नहीं सोचा जा सकता कि अमेरिका जैसे देश में भी अनेक विश्वस्तरीय फर्जी विश्वविद्यालय अस्तित्व में हो सकते है।
इन विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों को बाकायदा विश्वविद्यालय ने प्रतिस्पर्धा परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद दाखिला दिया था। इसी आधार पर अमेरिकी दूतावास ने तय अवधि के लिए शिक्षा वीजा भी दिया था। ये वीजा जारी करने में अमेरिका जितनी सख्ती बरतता है उतनी सख्ती वह इन विश्वविद्यालयों में अमेरिकी कानून व्यवस्था लागू करने में क्यों नहीं बरत रहा यह किसी के भी समझ से परे है? दस साल से ये विश्वविद्यालय कायम रहकर आवश्यकता से अधिक छात्रों को प्रवेश दे रहे थे। अब तक न जाने कितने छात्र इन विश्वविद्यालयों की फर्जी डिग्री हासिल कर अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देशों में नौकरी भी पा चुके होंगे। अब इस धोखाधड़ी के खुलासे के बाद उनके भविष्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे होंगे। इन घटनाओं के लिए वह भारतीय मानसिकता भी दोषी है जो हर हाल में विदेशी शिक्षा को सर्वश्रेष्ठ मानती है। इसी सोच व आकांक्षा का लाभ छोटे-बड़े विदेशी शिक्षा संस्थान उठा रहे हैं। आज विदेशों में पढ़ाई एक ऐसी होड़ बन गई है कि वहां के शिक्षा संस्थानों में प्रवेश दिलाने के लिए भारत में कई एजेंसियां भी वजूद में आ गई हैं। ये एजेंसियां दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूरू और हैदराबाद जैसे महानगरों में छात्रों को दाखिला दिलाने से लेकर पासपोर्ट व वीजा बनाने तक का काम ठेके पर करती हैं। अमेरिका अथवा आस्ट्रेलिया में कौन सा महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय फर्जी है इसकी जानकारी इन एजेंसियों के कर्ताधर्ताओं को भी नहीं होती। लिहाजा बिचौलिए इनकी हैसियत का मूल्यांकन बढ़ा-चढ़ाकर करके विदेशों में पढ़ने की ख्वाहिश रखने वाले छात्रों की मंशा को सरलता से भुना लेते हैं।
बड़े-बड़े विज्ञापन भी छात्रों को लुभाते हैं। यही नहीं आस्ट्रेलिया में तो ऐसे संस्थान भी वजूद में हैं जो विदेशियों को सिलाई, कढ़ाई, बाल कटाई, रसोई जैसे कार्यो के कौशल दक्षता के पाठ पढ़ा रहे हैं। मोटर मेकैनिक और कंप्यूटर के बुनियादी प्रशिक्षण जैसे मामूली पाठ्यक्रम भी यहां विदेशी पूंजी कमाने के लाभकारी माध्यम बने हुए हैं। हैरानी तो तब है जब आस्ट्रेलिया और अमेरिका में भारतीय छात्रों पर लगातार जानलेवा हमलों के बावजूद भारतीय छात्र इन देशों में पढ़ने के लिए उतावले हो रहे हैं। यदि आस्ट्रेलिया की ही बात करें तो पिछले साल ही करीब एक दर्जन से ज्यादा छात्र यहां नस्लभेदी हमलों का शिकार होकर अपनी जान खो चुके हैं। भारतीय छात्रों के साथ इसी तरह के कुछ हादसे अमेरिका में भी हुए हैं। दरअसल भारतीयों की श्रमसाध्य कर्तव्यनिष्ठा का लोहा हरेक देश मान रहा है, लेकिन भारतीयों की यही शालीनता और समर्पित भाव का गुण इन देशों के कुछ स्थानीय चरमपंथी समूहों के लिए नागवार हालात पैदा करती रही है। नतीजतन वे इसे स्थानीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के हनन के रूप में देखते हैं और हिंसक बर्ताव के लिए तैयार हो जाते है। बहरहाल भारतीय छात्रों और उनके अभिभावकों को ही विदेशी शिक्षा के अंधे मोह से न केवल मुक्त होने की जरूरत है, बल्कि ऐसे फर्जी संस्थानों की पूर्व जानकारी करने की भी आवश्यकता है।
लेखक प्रमोद भार्गव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
Read Comments