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दुनिया भर के देशों में टीबी और कैंसर के खिलाफ जंग जारी है। दुनिया में टीबी और कैंसर के सबसे ज्यादा मरीज भारत में ही हैं। भारत में टीबी के मरीजों की संख्या पिछले साल 20 से 25 लाख के बीच थी जबकि चीन में यह आंकड़ा दस लाख, दक्षिण अफ्रीका में चार लाख, इंडोनेशिया में तीन लाख और पाकिस्तान में तीन लाख था। दुनिया में टीबी के कुल मरीजों के 26 फीसदी भारत में ही हैं। वैश्विक स्तर पर टीबी के मरीजों की संख्या में कमी आना उत्साहजनक कहा जा सकता है। पिछले साल दुनिया में 88 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आए, जबकि 2005 में यह आंकड़ा 90 लाख था। टीबी से होने वाली मौतों में भी विश्व स्तर पर कमी दर्ज की गई है। 2010 में इस बीमारी ने 14 लाख लोगों की जान ली जबकि 2003 में 18 लाख लोगों को टीबी के चलते अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। पिछले दशक में इसके इलाज में काफी प्रगति हुई है। विश्र्व स्वास्थ्य संगठन-डब्ल्यूएचओ द्वारा शुरू किए गए टीबी रोको अभियान ने दिखा दिया है कि निरंतर एवं व्यवस्थित इलाज से लाभ हो सकता है। डब्ल्यूएचओ ने यह अभियान देशों को 2015 सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य प्राप्त करने तथा 2015 तक टीबी के मामले घटाने में मदद के लिए चलाया है। डाट्स-प्रत्यक्ष प्रेक्षण से सीधे व संक्षिप्त इलाज के विस्तार से वैश्विक स्तर पर सफलतापूर्वक इलाज कराने वालों का प्रतिशत बढ़कर 86 हो गया है। हालांकि दुनिया भर में चिकित्सक इस लड़ाई की कठिनाई अनुभव कर रहे हैं। औषधि प्रतिरोधी टीबी ने खतरे की घंटियां बजा दी हैं।
पिछले साल दुनिया भर के 60 देशों में विभिन्न प्रकार की दवाओं के प्रति टीबी प्रतिरोध की घटनाएं सामने आई हैं। इससे भारत जैसे विकासशील देशों में चिंता व्याप्त हो गई है जहां भारी संख्या में मरीजों द्वारा इलाज के दौरान दवा लेना छोड़ देने या अनियमित रूप से दवाएं लेने के कारण जोखिम बहुत बढ़ जाता है। ऐसे व्यवहार से औषधि के प्रति प्रतिरोध बढ़ता है तो भारत को बहुऔषधि प्रतिरोधी यानी एमडीआर-टीबी महामारी के प्रति अत्यधिक जोखिम में डाल देता है। वर्तमान समय में डॉट्स की गुणवत्ता बनाए रखने तथा नए मामले उभरने से रोकने के लिए टीबी व एचआइवी-एड्स के बीच संबंधों पर ध्यान देना होगा। इसके साथ ही टीबी निगरानी व्यवस्था को मजबूत कर औषधि-प्रतिरोधी टीबी जांच के लिए प्रयोगशाला क्षमता को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। खास दवाओं से प्रतिरोध विकसित करने वाले मरीजों की कल्चर जांच होनी चाहिए कि उनके ऊपर कौन सी दवाएं काम करती हैं। इलाज शुरू करने के पहले यह प्रक्रिया अपनाने से एमडीआर-टीबी पर अंकुश लगाने में बहुत मदद मिलेगी। टीबी के बाद दूसरी सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी कैंसर है। पूरी दुनिया में लगभग 12 फीसदी मौतें कैंसर से होती हैं। विकसित देशों में मृत्यु का पहला दूसरा बड़ा कारण कैंसर है जो सभी मौतों का 21 फीसदी है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और दवाओं ने कई असाध्य रोगों पर विजय प्राप्त कर ली है और कुछ को रोक दिया है। लेकिन खतरनाक कैंसर सभी चिकित्सा विधियों को चकमा देकर आगे बढ़ने वाला रोग साबित हुआ है। पिछले 20 सालों में दुनिया भर में कैंसर के मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है।
भारत में कैंसर दूसरी सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी है जो हर साल 11 फीसदी की दर से बढ़ रही है। सन 2001 में देश में विभिन्न प्रकार के कैंसर के 8 लाख मरीज थे, अब इनकी संख्या 25 लाख के ऊपर पहुंच रही है। विशेषज्ञों के अनुसार देश में अगले दस सालों में कैंसर के पंाच गुना फैलने की आशंका है। इसकी कई वजह हैं। इनमें लोगों में तंबाकू सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति और देश की तेजी से बढ़ती वृद्धों की आबादी प्रमुख है। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के अनुसार भारत में तंबाकू सेवन से होने वाला कैंसर और सर्वाइकल कैंसर महामारी की तरह फैल रहा है। देश में जहां पहले प्रति लाख की आबादी पर स्तन कैंसर के 10-20 लाख मामले मिलते थे वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 30-40 प्रति लाख हो गई है।
लेखक निरंकार सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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