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लगभग दस साल की तैयारियों के बाद ब्रिटेन में एक अनोखे जैविक बैंक ने काम शुरू कर दिया है। यूके बायो बैंक में करीब पांच लाख लोगों का स्वास्थ्य संबंधी डेटा एकत्र किया गया है। बायो बैंक ने वर्ष 2004 और 2010 के दौरान 40 और 69 वर्ष की आयु के हर 50 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति का स्वास्थ्य संबंधी विवरण रिकॉर्ड किया है। बैंक के अधिकारियों को उम्मीद है कि दुनिया के वैज्ञानिक इस विशाल जैविक भंडार का भरपूर इस्तेमाल कर सकेंगे। यह बैंक शोधकर्ताओं को डायबिटीज और कैंसर जैसी बड़ी बीमारियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराएगा। इनके आधार पर शोधकर्ता पता लगा सकेंगे कि धूम्रपान और कसरत की आदतों का शरीर पर क्या असर पड़ता है या टेलीविजन देखने की आदत से अधिक शारीरिक वसा या कम शारीरिक वसा वाले लोगों में क्या परिवर्तन होते हैं? बायो बैंक के प्रमुख अधिकारी रोरी कोलिंस का कहना है कि बैंक के पास जमा सैंपल बहुत ही विस्तृत हैं। बैंक लोगों से उनके आहार, जीवन के पिछले अनुभवों और मनोवैज्ञानिक पहलुओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहा है। उनसे यह भी पूछा जा रहा है कि दोस्तों और परिवार के साथ उनका मेलमिलाप कैसा है? बायो बैंक अभी शुरुआती अवस्था में है। इस परियोजना पर लगभग 505 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं और बैंक के अधिकारी अगले पांच वर्षो में इसके विस्तार पर करीब 203 करोड़ रुपये और खर्च करेंगे।
बैंक में शामिल लोगों के रिकॉर्ड में कुछ नई चीजें शामिल की जाएंगी। मसलन, लोगों की गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए उन्हें कलाई पर बांधे जाने वाले एक्स्लेरोमीटर दिए जा सकते हैं। रेडोन जैसी नुकसानदायक गैसों के साथ संपर्क से उत्पन्न प्रभावों को रिकॉर्ड करने के लिए होम मॉनीटर भी स्थापित किए जा सकते हैं। बायो बैंक के लिए नमूने देने वाले वालंटियरों में 26 हजार डायबिटीज पीडि़तों, 11 हजार हृदय रोगियों के अलावा 41 हजार ऐसे लोग थे जो मदिरापान नहीं करते थे। एक लाख वालंटियरों की हाई रेजोल्यूशन आई स्कैनिंग की गई जिसका इस्तेमाल विशेषज्ञों द्वारा यह पता लगाने के लिए किया जाएगा कि हमारी आंखों पर उम्र का असर किस तरह से होता है और आंखों की सामान्य बीमारियां किन कारणों से होती हैं। अगले कुछ वर्षो में डॉक्टर वालंटियरों के एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) टेस्ट भी शुरू कर देंगे।
बायो बैंक के रिकॉर्ड में विभिन्न दवा कंपनियों और स्वास्थ्य संस्थाओं ने दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी है। मसलन, लंदन के एक नेत्र अस्पताल के रिसर्चर बैंक द्वारा लोगों पर किए गए आई इमेजिंग टेस्ट का रिकार्ड मांग रहे हैं। दुनिया के रिसर्चर बायो बैंक की सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें पहले अपनी रिसर्च योजना को मंजूर कराना पड़ेगा। रिसर्चरों को अपने निष्कर्षो को प्रकाशित करना पड़ेगा। उन्हें रिसर्च के नतीजे बायो बैंक को भी सौंपने पड़ेंगे ताकि दूसरे स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी उनसे लाभान्वित हो सकें। बायो बैंक को लेकर शुरू में काफी विवाद था। परियोजना के लिए धन जुटाने वाली ब्रिटेन की मेडिकल रिसर्च काउंसिल को काफी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था। लोगों को इस बात पर ऐतराज था कि काउंसिल ने वैज्ञानिक समुदाय के साथ समुचित विचार-विमर्श किए बगैर ही इतना बड़ा प्रोजेक्ट शुरू कर दिया। कुछ संगठनों का कहना है कि इस तरह के आनुवंशिक और जैविक डेटाबेस सिर्फ सफेद हाथी ही साबित होंगे। इनसे कोई बड़ा वैज्ञानिक लाभ नहीं होगा। भविष्य में इस तरह के आंकड़ों के दुरुपयोग का खतरा भी हो सकता है। बीमा कंपनिया बीमा करवाने से पहले इस तरह के रिकॉर्ड मांग सकती हैं, लेकिन इस प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों का दावा है कि बायो बैंक भावी पीढि़यों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा। इससे हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि हमारी संतानें किस तरह स्वस्थ जीवन के साथ लंबी उम्र प्राप्त कर सकती हैं।
लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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