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नोट के बदले वोट कांड में अमर सिंह की गिरफ्तारी राजनीति में शुद्धिकरण की दृष्टि से एक अच्छी शुरुआत है। इससे दलाल संस्कृति पर अंकुश लगेगा। राजनीति को प्रबंधन का खेल मानने वाले गैर राजनीतिकों तथा बिना निर्वाचन के राजनीति में धन और वाक्-चातुर्य के बूते दखल बढ़ाने वाले दलाल चरित्र के सांसद हाशिए पर आएंगे। ऐसे लोगों के संसद के बाहर रहने से उन नीतियों के निर्माण पर भी अंकुश लगेगा, जो कॉरपोरेट जगत के हित साधने की दृष्टि से बनाई जा रही थीं। बड़बोले और बेवजह बोलने वाले अमर सिंह की गिरफ्तारी कोई आश्चर्य में डालने वाली बात नहीं है। देर-सबेर गिरफ्तारी तय थी। अब लालकृष्ण आडवाणी के निकटतम रहे सुधीर कुलकर्णी की बारी है। फिलहाल विदेश में होने के कारण कुलकर्णी हिरासत से बचे हुए हैं, लेकिन बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी। अमर सिंह, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा की गिरफ्तारी के बाद अब संकट में संप्रग सरकार आएगी, क्योंकि वोट खरीदने के मकसद से जुड़े सभी सवाल फिलहाल अनुत्तरित हैं। भाजपा, वामपंथी और समाजवादी पार्टी समेत कुछ अन्य विपक्षी दल संसद नहीं चलने देंगे।
संसद में जो सवाल उठाए जा रहे हैं, वे सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की मुश्किलें बढ़ाएंगे। किस मकसद से वोट खरीदे गए और किसे फायदा पहुंचा, इस मकसद की पड़ताल के लिए सुप्रीमकोर्ट से भी गुहार लगाई जा सकती है। इसमें कोई राय नहीं कि मनमोहन सिंह की सरकार नहीं चाहती थी कि नोट के बदले वोट कांड की ठीक से तफ्तीश होने के बाद अदालत में आरोप-पत्र पेश हो। दिल्ली हाईकोर्ट ने बार-बार दिल्ली पुलिस को फटकार न लगाई होती तो इस मामले से जुड़े तीन एजेंट और भाजपा के दो पूर्व सांसद तिहाड़ जेल न पहुंचे होते। चूंकि दिल्ली पुलिस सीधे-सीधे केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के मातहत काम करती है, इसलिए उसकी तहकीकात और आरोप-पत्र संदेह के दायरे में हैं। क्योंकि पुलिस ने जो चालान अदालत में पेश किया है, उसमें केवल तीन बिंदुओं पर विचार कर कार्रवाई को अंजाम दिया गया है। एक, पैसा किसने दिया। दो, पैसा किसने लिया और तीन पैसे की आमद का स्रोत क्या है। इस प्रकरण में इस तथ्य को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है कि विश्वास मत हासिल करने के बाद सरकार किसकी बची और फायदा किसे हुआ? भारतीय पुलिस के इतिहास में राजनीति से जुड़े किसी बड़े मुद्दे पर यह पहली बार हुआ है कि भंडाफोड़ करने वाले सांसदों को भी पुलिस ने न केवल आरोपी बनाया, बल्कि हिरासत में लेकर सीखंचों के पीछे भी कर दिया।
हिरासत में लिए गए फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा भाजपा के पूर्व सांसद हैं। इन्हें आरोपी इसलिए बनाया गया, क्योंकि ये बिकने को तैयार हो गए। मुरैना से भाजपा सांसद अशोक अर्गल को हिरासत में लेने की पुलिस ने अदालत से इजाजत मांगी है। यहां सवाल उठता है कि अमर सिंह इन सांसदों को संप्रग सरकार के मुखिया के इशारे पर लालच दे रहे थे या सरकार बचाने का श्रेय लेकर सरकार के करीब पहुंचने की कवायद में लगे थे? इन अनुत्तरित सवालों के जबाब तलाशे जाने चाहिए। अमर सिंह का आरोप-पत्र में नाम आने के बाद ही उनकी गिरफ्तारी की उम्मीद बढ़ गई थी। इस मामले में सांसदों का संसद के प्रति दायित्व और निष्ठा को खरीदने का काम जिन दो एजेंटों सुहैल और संजीव सक्सेना ने किया था, इन एजेंटों से 21 और 22 जुलाई 2008 को अमर सिंह से मोबाइल पर हुई बातचीत के कॉल रिकॉर्ड को दिल्ली पुलिस ने सबूत के रूप में पेश किया है। संजीव और अमर का रिश्ता जगजाहिर है। वह गोपनीय कभी नहीं रहा।
अदालत में पेश आरोप-पत्र में सुहैल के उस बयान को तरजीह नहीं दी गई है, जिसमें उसने कहा है कि अमर सिंह सोनिया के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल और मनमोहन सिंह के दिशा-निर्देश पर काम कर रहे थे। अगर संसद में विपक्ष के दबाव के बाद इस मामले की किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराए जाने को बल मिलता है और निष्पक्ष जांच होती है तो यह तथ्य अनुसंधान के बाद सामने आ सकता है कि अमर सिंह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाए रखने के लिए काम कर रहे थे। इस तह तक पहुंचते ही अहमद पटेल पर तो शिकंजा कसेगा ही, संप्रग सरकार भी दीवार की तरह भरभरा कर ढह जाएगी।
प्रमोद भार्गव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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