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आतंकी संगठन लश्करे तैयबा के सरगना और जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद के सिर पर अमेरिका द्वारा एक करोड़ अमेरिकी डॉलर (करीब पचास करोड़ रुपये) के इनाम की घोषणा के साथ ही बहस तेज हो गई है कि इस कवायद के पीछे अमेरिका की मंशा क्या है? क्या वह वाकई हाफिज मोहम्मद सईद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना चाहता है या उसके बहाने नाटो के लिए बंद किए गए आपूर्ति के रास्ते की बहाली के लिए पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है? ढेरों ऐसे सवाल हैं, जो केचुल छोड़ सांप की तरह रेंगने लगे हैं। पर यह समझना कठिन है कि जब हाफिज मोहम्मद सईद पाकिस्तान में खुलेआम देखा जा रहा है और उसे पाकिस्तानी सरकार का संरक्षण हासिल है तो फिर उसके सिर इनाम घोषित करने का क्या मतलब है? इनाम तो उस पर घोषित किया जाता है, जो छिपा हो और दुनिया को पता न हो। मजे की बात तो यह है कि हाफिज सईद खुद ताल ठोक रहा है कि वह किसी गुफा में नहीं छिपा है। अब देखना यह है कि अमेरिका की इस नई चाल से डरकर पाकिस्तानी सरकार अपने पाले आतंकी सईद के खिलाफ कार्रवाई करती है या उसका बचाव करती है। लेकिन शीशे की तरह साफ है कि फिलहाल पाकिस्तान नाटो की आपूर्ति के लिए बंद रास्ते को खोलने नहीं जा रहा है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री गिलानी ने साफ कर दिया है कि नाटो के आपूर्ति के रास्ते खोलना राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है और वह फिर से कोई भी फैसला लेते वक्त राजनीतिक दलों से आम सहमति जरूर बनाएंगे। पाक की मंशा पाकिस्तानी सरकार फिलहाल अमेरिकी हुकूमत के इशारे पर दुम हिलाने को तैयार नहीं है। हो सकता है कि मोल-तोल में जब उसे अपना फायदा दिखे तब वह अमेरिका के आगे दंडवत हो, लेकिन जहां तक इनाम की घोषणा के बाद हाफिज सईद पर कार्रवाई का सवाल है तो वह अभी दूर की कौड़ी है। पाकिस्तान भी अच्छी तरह समझ रहा है कि अमेरिका की असली मंशा क्या है। हाफिज मोहम्मद सईद पाकिस्तान के लिए कितना जरूरी है, इसी से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान सरकार उसे तीन बार गिरफ्तार करने के बाद छोड़ चुकी है।
अमेरिका पाकिस्तान से कभी नहीं जानना चाहा कि वह ऐसा क्यों किया। आज भी पाकिस्तान सीना ठोंककर कह रहा है कि देश में हाफिज सईद के खिलाफ एक भी मुकदमा नहीं है। इसलिए उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती। ऐसे में भारतीय हुक्मरान को हाफिज सईद के सिर इनाम घोषित किए जाने से बहुत प्रफुल्लित होने की जरूरत नहीं है। इस मुगालते में भी नहीं रहना चाहिए कि सईद पर घोषित इनाम भारत की विदेश कूटनीति का कमाल है। सच तो यह है कि हाफिज सईद को लेकर अगर अमेरिका की भौंहे तनी हैं तो उसके पीछे उसका अपना निहित स्वार्थ और हताशा दोनों है। किसी से छिपा नहीं है कि हाफिज सईद नाटो आपूर्ति मार्ग के फिर से खोले जाने के विरोध में पाकिस्तान में रैलियां और धरना-प्रदर्शन कर अमेरिका के खिलाफ माहौल बना रहा है। पिछले साल नवंबर में सीमा पार से हुए हमले में 24 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे और कट्टरपंथियों के दबाव में आकर पाकिस्तान सरकार को नाटो आपूर्ति का मार्ग बंद करना पड़ा था। अमेरिकी रुख का सच हाफिज सईद पाकिस्तान में कट्टरपंथियों और आतंकियों का सबसे बड़ा सर्वमान्य चेहरा है और मुंबई हमले का गुनहगार भी। इस नाते अमेरिका उस पर इनाम घोषित कर एक तीर से दो शिकार कर लेना चाहता है। एक, तो वह भारत सहित दुनिया को दिखाना चाहता है कि आतंकवाद को लेकर उसके दो माथे नहीं हैं। वहीं, पाकिस्तान को इशारों में बता देना चाहता है कि अफगानिस्तान की लड़ाई में उसके विकल्प के तौर पर भारत भी मौजूद है, लेकिन सच यह है कि अमेरिका पाकिस्तान से चूहे बिल्ली का खेल खेल रहा है। अगर वाकई वह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को लेकर गंभीर होता तो हाफिज सईद पर पहले ही कार्रवाई कर चुका होता। अमेरिका को किसी प्रमाण की जरूरत भी नहीं थी।
पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी नागरिक डेविड कोलमैन हेडली यह कबूल कर चुका है कि 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए हमले के साजिशकर्ताओं में आइएसआइ, उसके मुखिया मेजर इकबाल और लश्करे तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद की मुख्य भूमिका रही है। भारत भी कई बार अमेरिका को दस्तावेज दे चुका है कि मुंबई हमले का मास्टर माइंड हाफिज सईद ही है। बावजूद इसके अमेरिका न तो पाकिस्तान पर दबाव बनाते देखा गया और न ही हाफिज सईद की धर-पकड़ की उसने कोई कोशिश की। अब जब पाकिस्तान नाटो आपूर्ति मार्ग खोलने के लिए तैयार नहीं है तो अमेरिका द्वारा हाफिज सईद पर इनाम घोषित किया जाना समझ के बाहर नहीं है। सवाल अब यह है कि अगर पाकिस्तान अमेरिका के दबाव में हाफिज सईद पर कार्रवाई नहीं करता है तो क्या अमेरिका उसे जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए एबटाबाद जैसी कार्रवाई करेगा? क्या उम्मीद किया जाए कि अमेरिका पाकिस्तान पर दबाव बनाएगा कि वह हाफिज सईद को भारत के सुपुर्द करे? अगर अमेरिका ऐसा नहीं करता है तो संदेह नहीं होना चाहिए कि उसकी नीयत आतंकवाद को रोकना नहीं, बल्कि हाफिज सईद को मोहरा बनाकर पाकिस्तान से मोल-भाव करना है। भारत का मुगालता दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि हाफिज सईद पर इनाम घोषित होने के बाद अब भारत की भूमिका क्या होगी? क्या वह अमेरिका की तरह पाकिस्तान में शरण ले रखे मुंबई हमले के मास्टर माइंड को मार गिराने के लिए एबटाबाद की तरह कमांडो कार्रवाई करेगा या पाकिस्तान की नंगी होती पीठ पर पड़ रहे अमेरिकी चाबुक से संतुष्ट हो जाएगा? फिलहाल पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करना भारत के बूते की बात नहीं है। याद होगा, पिछले दिनों भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत अमेरिका नहीं है, जो एबटाबाद की तरह कार्रवाई करेगा। उसके तत्काल बाद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ प्रमुख शुजा पाशा ने प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि अगर भारत एबटाबाद में अमेरिकी हमले जैसे किसी हमले को अंजाम दिया तो पाकिस्तान भी उसके ठिकानों पर धावा बोल देगा। साथ ही यह भी कहा कि आइएसआइ हमले के लिए भारत में लक्ष्यों की पहचान कर चुकी है और भारतीय ठिकानों को कैसे तबाह करना है, उसका अभ्यास भी हो चुका है। लेकिन इतनी कड़ी प्रतिक्रिया के बाद भी भारत सरकार ने मौन बनाए रखना जरूरी समझा। ऐसे में उससे यह उम्मीद करना कि वह दो कदम आगे बढ़कर हाफिज सईद जैसे आतंकी को धर दबोचेगी, आश्चर्य होगा।
गृहमंत्री चिदंबरम का यह कहना भी कोई मायने नहीं रखता कि भारत सरकार हाफिज सईद की भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में पाकिस्तान को दस्तावेज दे चुकी है और उसे कार्रवाई करनी चाहिए। भारत सरकार की यह अपेक्षा ही उसकी कमजोरी है और पाकिस्तान के लिए ढाल। भारत फिर उम्मीद लगाए बैठा है कि अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करे, लेकिन भारत सरकार को भ्रम नहीं पालना चाहिए। हाफिज सईद पर इनाम घोषित करने का मतलब यह नहीं हुआ कि अमेरिका पाकिस्तान की रीढ़ तोड़ने जा रहा है। सच तो यह है कि अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ कोई कदम उठाने से पहले दस बार सोचता है। यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान आतंक का सबसे बड़ा अड्डा है। पाकिस्तान अमेरिका के लिए तब तक उपयोगी और प्रासंगिक बना रहेगा, जब तक कि वह अफगानिस्तान की लड़ाई को पूरी तरह जीत नहीं लेता है। तालिबान को नेस्तनाबूद करना अमेरिका की प्राथमिकता में है और इस खेल में पाकिस्तान अब भी उसके लिए सबसे बड़ा मददगार मोहरा बना हुआ है। वह इसे आसानी से खोना नहीं चाहेगा। अमेरिका अगर पाकिस्तान पोषित आतंकवाद को लेकर चिंतित होता तो डेविड हेडली मामले में सभी जानकारियां भारत से साझा करता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। भारत को समझना चाहिए कि हाफिज सईद पर घोषित इनाम अमेरिकी कूटनीति की एक नई रणनीति है। इससे भारत को बहुत लाभ होने वाला नहीं है। भारत को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी।
लेखक अभिजीत मोहन स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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