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ईरान पर अमेरिकी हमले का साया!

जागरण मेहमान कोना
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विकसित पूंजीवादी जगत इन दिनों एक अलग तरह की चिंता से परेशान है। इससे निजात पाने के लिए युद्ध के समाचार भी आ रहे हैं। अमेरिका तथा उसके सहयोगी देशों की बेचैनी का कारण है ईरान का परमाणु कार्यक्रम जिसे लेकर हवा फैलायी जा रही है कि वह नाभिकीय हथियार विकसित कर रहा है। ईरान पर प्रस्तावित इजरायली आक्रमण हो सकता है कि महज ंबंदरघुड़की हो, लेकिन राष्ट्रपति ओबामा ने भी किसी देश विशेष द्वारा नाभिकीय हथियार विकसित करने को अमेरिका के खिलाफ एक तरह का आक्रमण माना है। अगर अमेरिका ईरान पर हमला करता भी है तो उसका मकसद अमेरिका पर आक्रमण रोकना नहीं, बल्कि मध्यपूर्व में नाभिकीय हथियारों की दौड़ को रोकना होगा। एक तरफ जहां ओबामा ईरान के बहाने सभी विकल्प खुले रखने की बात करते दिख रहे हैं, इजराइल के प्रधानमंत्री नेतनयाहू को इस मामले में संयम बरतने की सलाह देते दिख रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सीनेटर जान मैक्केन जैसे लोग भी हैं जो न्यूयार्क टाइम्स के अपने आलेख में ईरान पर बमबारी की मांग करते दिख रहे हैं। उनकी मानें तो सीरियाई विद्रोहियों एवं नागरिकों को बचाने के लिए सीरिया पर भी बमबारी होनी चाहिए।


अमेरिका के मुख्यधारा के अखबारों की तरफ से भी जनमानस को युद्ध के लिए तैयार किया जा रहा है। दुनिया में नाभिकीय हथियारों को लेकर व्याप्त दोहरे मापदंड की बात किसी से छिपी नहीं है। हिरोशिमा, नागासाकी में अमेरिका द्वारा प्रयुक्त नाभिकीय हथियारों के बाद 65 साल से अधिक के अंतराल में रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इजराइल जैसे कुछ देशों द्वारा नाभिकीय हथियारों को विकसित किया गया है। स्पष्ट है कि इनके चलते किसी भी मुल्क को बाहरी आक्रमण का सामना नहीं करना पड़ा। यहां तक कि मध्यपूर्व के अपने बेहद सहयोगी मुल्क इजरायल को नाभिकीय कार्यक्रम को विकसित करने में अमेरिका ने आगे बढ़कर मदद की और उसे नाभिकीय हथियारों से संपन्न बनाया। नाभिकीय हथियारों से लैस इन चुनिंदा देशों के अलावा कोई अन्य मुल्क इस स्थिति में न पहुंचे इसके लिए अमेरिका की अगुआई में मध्यपूर्व में यह नया खेल खेला जा रहा है।


ईरान पर प्रस्तावित हमले को लेकर औपचारिक तौर पर यही कारण दिया जा रहा है कि वह नाभिकीय हथियार विकसित करने में लगा है जिसकी वजह से समूचे मध्यपूर्व में अशांति पैदा हो सकती है। दरअसल इक्कीसवीं सदी में मध्यपूर्व तथा आसपास के इलाकों में अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने के लिए अमेरिका बराबर प्रयासरत है। फिर ऐसा चाहे आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के नाम पर अफगानिस्तान पर हमला करने के रूप में हो या इराक पर हमले तथा अपनी शक्तियों को वहां सत्तासीन बनाना रहा है। इसका सबसे अधिक अप्रत्यक्ष लाभ ईरान को ही मिला है। एक क्षेत्रीय शक्ति के तौर पर उसकी ताकत बढ़ी है। इतना ही नहीं शिया बहुल इराक में सद्दाम के हटाए जाने से भी वहां की राजनीति में उसके हस्तक्षेप के अवसर बढ़े हैं। लोग जानते हैं कि कई सारे इराकी मूल के शिया नेताओं को सद्दाम हुसैन के शासनकाल में ईरान ने पनाह दी थी। ईरान में नाभिकीय हथियार तैयार हो रहे हैं, यह हौवा खड़ा करके अमेरिका उसे सबक सिखाना चाहता है। दूसरी अहम बात ईरान के तेल के कुओं से जुड़ी है। ईरान आबादी के मामले में ही नहीं, बल्कि तेल उत्पादन के मामले में भी इराक से बेहतर स्थिति में है। उसकी आय का अच्छा-खासा हिस्सा इसी तेल एवं प्राकृतिक गैस के निर्यात से प्राप्त होता है। ईरान के इस संसाधन की विपुलता का अंदाजा हम इस तरह भी लगा सकते हैं कि भारत के लिए जरूरी 12 फीसदी तेल एवं प्राकृतिक गैस ईरान से ही प्राप्त होती है। 21वीं सदी के इस पूर्वा‌र्द्ध में भू-राजनीतिक परिदृश्य में तेल के कुओं पर नियंत्रण कितना मायने रखता है यह बात अमेरिका से बेहतर कौन जानता है। तीसरी अहम बात वहां के हथियार उद्योग से जुड़ी हुई है। इन दिनों स्थानीय युद्धों को छोड़ दिया जाए तो ऐसा कोई बड़ा युद्ध नहीं चल रहा है। ऐसे में अगर ईरान पर इजरायल-अमेरिकी हमला हो जाता है तो वह मद्धिम पड़ रहे इस उद्योग को भी समृद्धि की स्थिति में ला सकता है। जब हथियार एवं अन्य संबंधित उद्योगों के खरबपति कारपोरेट सम्राटों के हितों का सवाल हो तो युद्ध में मारे जाने वाले कुछ हजार अमेरिकी नागरिक या सुदूर मुल्कों में भुखमरी या किसी और बात से क्या फर्क पड़ता है।


इराक पर लंबे समय तक चले अमेरिकी प्रतिबंधों से वहां जीवनोपयोगी दवाइयों की कमी हुई जिसके चलते हजारों बच्चों के मरने की खबर आई, तब तत्कालीन अमेरिकी विदेश सचिव ने उत्तर दिया था ऐसी चीजें होती रहती हैं। अब जबकि ओबामा अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम वर्ष में है तथा पहले अश्वेत राष्ट्रपति के तौर पर जनता के बड़े हिस्से में दिखा उत्साह ठंडा पड़ चुका है, तब यह कयास लगाए जा रहे है कि इस साल ईरान पर हमला उन्हें सत्ता दिला सकता है। उम्मीद है कि मध्यपूर्व में अमेरिका का सबसे भरोसेमंद साथी इजरायल जो बिना आधिकारिक जानकारी के अपने यहां नाभिकीय हथियार हासिल कर चुका है, वह अप्रैल माह में इस हमले को अमलीजामा पहना देगा। इसकी पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने ईरान एकतरफा पाबंदियों का भी ऐलान किया है। ईरान पर नकेल कसने के अपने इरादों को अंजाम देने के लिए अमेरिका की तरफ से कुछ भी किया जा सकता है। विगत दो सालों में ईरान के चार मशहूर वैज्ञानिकों की हत्या कर दी गई है। जाहिर है कि अमेरिका की सत्ताधारी पार्टियों फिर वह चाहे ग्रेंड ओल्ड पार्टी कही जाने वाली रिपब्लिकन पार्टी हो या डेमोक्रेट पार्टी में एक समानता अवश्य दिखती है। अपनी आंतरिक नीतियों में भले ही वह थोड़ी बहुत भिन्न प्रतीत होती हों, मगर इलाकाई दादा की इमेज चमकाने के लिए छोटे-बड़े मुल्कों पर हमला करने में दोनों एक ही तरीके से सोचती हैं। वह यह भी जानती हैं कि आसन्न राष्ट्रपति पद के चुनावों के पहले उठाए जाने वाले ऐसे कदम मतदाताओं को प्रभावित करने का अच्छा जरिया बनते हैंैं। अगर रिपब्लि्कन पार्टी के बुश ने इराक पर हमले कराए थे तो डेमोके्रटिक पार्टी के ओबामा भी वैसा ही करते दिख रहे हैं। अपनी तरफ से ईरान भी तैयारी में लगा है।


तेहरान में लाखों लोगों के जनसमूह को संबोधित करते हुए ईरान के राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने एक तरफ इस मसले पर वार्ता को आगे बढ़ाने की बात कही तो दूसरी ओर यह भी कहा कि हम हर तरह की परिस्थिति के लिए तैयार हैं। ईरान के सैन्य नेताओं ने यह चेतावनी दी है कि अगर पश्चिमी देश अपनी पाबंदियों को सख्त करते हैं तो ईरान के पास भी यह विकल्प रहेगा कि वह फारस की खाड़ी में स्थित हर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर दे जिससे होकर तेल का बड़ा हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहुंचता है। अगर ऐसा हुआ तो तेल की कीमतें फिर आसमान छू सकती हैं।


लेखक सुभाष गाताडे स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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