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गरीब प्रदेश का अमीर पार्क

जागरण मेहमान कोना
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उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने नोएडा में 3,32,000 वर्ग मीटर में फैले और तकरीबन 700 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित अपने ड्रीम पार्क का विधिवत उद्घाटन कर ही दिया। इस पार्क का नाम राष्ट्रीय दलित स्थल रखा गया है। उनका यह ड्रीम पार्क अपनी शैशव अवस्था से ही विवादों में रहा है, मगर मायावती ने तमाम विरोधों के बावजूद इसका विधिवत उद्घाटन कर विरोधियों को बोलने का मौका तो दे ही दिया है। और हो भी क्यों नहीं, आखिर प्रदेश के विकास और प्रदेशवासियों की मूलभूत आवश्यकताओं की अनदेखी कर उन्होंने इसका निर्माण करवाया है। हालांकि डॉ. आंबेडकर की जिस विचारधारा को ध्यान में रखकर इस पार्क को बनाया गया है, वह इस हाई-प्रोफाइल पार्क में कहीं नजर नहीं आती।


धन की चकाचौंध और खुद के महिमामंडन से इतर इस पार्क में कुछ नजर नहीं आता। मायावती देश की एकलौती महिला नेता हैं, जिन्होंने दलित उत्थान के नाम पर स्वयं की आदमकद मूर्तियां बनवाने से गुरेज नहीं किया। मायावती ने पार्क का उदघाटन करते वक्त कांग्रेस, भाजपा और सपा पर जमकर निशाना साधा। दलित राजनीति की आड़ में उन्होंने स्वयं को दलितों का सबसे बड़ा रहनुमा साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं विपक्षी पार्टियों के इस आरोप का भी उन्होंने खंडन किया कि पार्क को बनाने में प्रदेशवासियों के कल्याण में खर्च होने वाले पैसे का दुरुपयोग हुआ है। उन्होंने दलितों को कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों से सावधान रहने के लिए आगाह किया कि वे किसी के प्रलोभन में न आएं। अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार मायावती ने अपना और अपनी सरकार का बखूबी बखान किया।


खैर, अपनी बुराई कोई नहीं करता और राजनीति में खुद की बुराई करना पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। मगर इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मायावती ने अपने ड्रीम पार्क को पूरा करने की जिद में न जाने कितने दिलों से निकली आह ली है। पूरा प्रदेश इस वक्त अराजकता के माहौल से जूझ रहा है। बढ़ते अपराध, गुंडागर्दी, सरकारी योजनाओं में सरेआम हो रही धांधली आदि से आम जनता हलकान है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मायावती अपने आधा दर्जन मंत्रियों को हटा चुकी हैं और आधा दर्जन पर अब भी लोकायुक्त जांच की आंच है। जो काम मायावती पांच वर्षो में नहीं कर पाई, उन्होंने चुनाव पूर्व के पांच महीनों में कर दिखाया। उन पर भी आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज है, जिसकी जांच सीबीआइ कर रही है। जिस सुशासन का दावा मायावती करती हैं, उसकी बानगी तो देखिए कि डॉ. सचान सहित दर्जन भर हत्याओं का मामला राजनीति में उलझकर रह गया है। समाजवादी पार्टी के शासन की जिन विसंगतियों का जिक्र कर मायावती 2007 में सत्ता पर काबिज हुई थीं, अपने शासनकाल में उन्हें रोकने में बुरी तरह नाकामयाब रही हैं। फिर उनका दलितों का मसीहा होने का दावा भी उनके शासनकाल में दलितों पर हुए अत्याचार से इतर कहानी कहता है। यदि इतनी विसंगतियों के बावजूद मायावती कहती हैं कि प्रदेश तरक्की कर रहा है तो आप और हम कुछ नहीं कह सकते। अपने पांच वर्ष के शासनकाल में मायावती का पूरा ध्यान खुद की मूर्तियां बनवाने और पार्को के विकास में लगा रहा। जो 700 करोड़ रुपये उन्होंने अपने ड्रीम पार्क को पूरा करने में लगा दिए हैं, यदि उसका थोड़ा-सा भी हिस्सा ईमानदारी से प्रदेश के विकास में खर्च होता तो प्रदेश की तस्वीर दूसरी होती।


सबसे बड़ी बात तो यह है कि मायावती ने प्रदेश में थोड़े-बहुत जितने भी विकास कार्य करवाए हैं, सभी एक्सप्रेस-वे कॉरिडोर के आस-पास हैं। इससे यह सवाल भी उठाना लाजमी है कि एक ओर तो मायावती प्रदेश के किसानों की जमीन कम कीमत पर अधिग्रहीत कर रही हैं तो दूसरी ओर बिल्डरों और उद्योगपतियों को जमकर लाभ पहुंचा रही हैं। जाहिर है, इससे उनका और उनकी पार्टी का आर्थिक गुणा-भाग जरूर बढ़ा होगा। मायावती ने अपने पारंपरिक दलित वोट बैंक को रिझाने के लिए चुनावी माहौल में दलितों को समर्पित पार्क का उद्घाटन कर दूसरी अन्य पार्टियों को भी सजग कर दिया है। जैसे-जैसे चुनाव की घड़ी नजदीक आएगी, उनके पिटारे से न जाने कितनी आकर्षक योजनाएं निकलेंगी? फिर भी कहना होगा कि मायावती ने प्रदेश और केंद्र के धन की जितनी बर्बादी मूर्तियों और पार्को को बनवाने में की है, उससे प्रदेश का कोई भला नहीं होने वाला। सोशल इंजीनियरिंग की जिस राजनीति पर सवार हो मायावती सत्ता के शिखर तक पहुंची थीं, उसमें भी अब घुन लगने लगा है।


लेखक सिद्धार्थ शंकर गौतम स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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