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अन्ना के विचार से भी आगे निकल गए हम

जागरण मेहमान कोना
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B.C Khanduriदिल्ली स्थित उत्तराखंड भवन के सीएम सूइट की बैठक और अंत:कक्ष तक सब कुछ अन्नामय है। मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण के दो घंटे के भीतर ही अन्ना हजारे के जनलोकपाल के मुताबिक उत्तराखंड में लोकायुक्त की नियुक्ति का फैसला ले लेने वाले भुवन चंद्र खंडूड़ी ने टीम अन्ना के साथ ही अपनी फोटो लगाई है। टीम अन्ना के समर्थन से अभिभूत खंड़ूड़ी क्या चुनावी वैतरणी पार करने के लिए पूरी तरह अन्ना के सहारे हैं? संघ पर अन्ना का वार, टीम अन्ना और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच तकरार और हालिया कर्ण प्रयाग रेलवे लाइन के शिलान्यास पर केंद्र और राज्य के बीच विवाद जैसे मुद्दों पर राजकिशोर ने मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी से बात की। पेश हैं प्रमुख अंश:


मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही आपने उत्तराखंड में जनलोकपाल लागू करने का फैसला कर लिया। क्या आपको लगता है कि उत्तराखंड में इससे भाजपा को फायदा मिलेगा?

यह मेरी प्रवृत्ति नहीं। राजनीतिक फायदे के लिए न मैं कुछ कर सकता हूं और न ही करना चाहता हूं। शायद फौज की वजह से। जो नहीं हो सकता या नहीं कर सकता, उसे सीधे-सीधे मना करता हूं।


मगर न कोई विमर्श और न ही चर्चा, बस अन्ना के विचार के तहत लोकायुक्त की नियुक्ति के पीछे कुछ तो वजह होगी.शायद सियासी.?

ऐसी बात नहीं है। हमने अन्ना के विचार से आगे जाकर काम किया है। सफाई में मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि 2007 में मुख्मयंत्री बनते ही एक माह के भीतर ही भर्ती घोटाले में डीजी को निलंबित कर दिया था और पूरी भर्ती नीति बदल दी थी। न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में ऐसी नीति नहीं है। आस-पास कोई चुनाव नहीं था, लेकिन यह सब राजनीति के तहत नहीं, बल्कि प्रशासन और सुशासन के मद्देनजर किया गया।


तो क्या आपने लोकायुक्त के तमाम मॉडलों का अध्ययन करने के बाद अन्ना के जनलोकपाल को सबसे बेहतर पाया, इसलिए इसे लागू किया?

मैं कोशिश करता हूं कि जो बेहतर है वह करूं। इसी नजरिये से अन्ना का विचार पसंद आया। बाकी मुझे न तो कोई माडल देखने का मौका मिला और न ही जरूरत समझी। जो हमें ठीक लगा वह किया। ध्यान रहे कि पृथक उत्तराखंड आंदोलन के जो चार-पांच मुद्दे थे, उनमें सबसे पहला भ्रष्टाचार था। उसी नजरिये से मैंने मुख्यमंत्री बनते ही दो घंटे के भीतर कैबिनेट बुलाई और तीन-चार बड़े-बड़े काम किए। लोकपाल के साथ-साथ सिटिजन चार्टर लाना, बेनामी संपत्ति जब्त करने और मुख्यमंत्री से लेकर अधिकारी तक सभी के लिए संपत्ति घोषित करना। इतना ही नहीं तबादलों में भी घपला होता था। लिहाजा हमने तबादला नीति नहीं, अधिनियम बनाया और पूरे देश में कहीं इस तरह का तबादला कानून नहीं है।


आप पर आरोप है कि ये हड़बड़ाहट चुनावों के मद्देनजर है। क्या कहेंगे आप?

देखिए.विधानसभा में भी कांग्रेस ने आरोप लगाए कि यह चुनावी स्टंट है। इस पर मेरा जवाब था कि अगर मैं अच्छा काम करता हूं और लोग मुझे समर्थन करते हैं तो यह अच्छी बात है। मगर यह सिर्फ चुनावी दृष्टिकोण से नहीं है, लेकिन अगर इसमें राजनीतिक फायदा होता है तो गलत क्या है।


बिहार में भाजपा गठबंधन वाली नीतीश सरकार के लोकायुक्त को टीम अन्ना ने खारिज कर दिया है तो नीतीश ने उनके जनलोकपाल को। आपने तो जनलोकपाल को अक्षरश: लागू किया है, क्या आप अपने सहयोगी दल को भी इसके लिए राजी करने का प्रयास करेंगे?

देखिए.मैंने न तो नीतीशजी का लोकपाल देखा है और न ही इस पूरे प्रकरण पर ध्यान दिया। मैं नहीं समझता कि मैं इस स्थिति में हूं कि किसी पर टिप्पणी करूं। नीतीशजी बहुत योग्य व्यक्ति हैं। उन्हें जो प्रदेश के हित में लगा वह कर रहे हैं। इसलिए न मुझे उन पर टिप्पणी का अधिकार है और न ही योग्यता।


अन्ना आपको सम्मानित करने जा रहे हैं। जाहिर है कि इस कानून को आप बेहतर मानते हैं तो अपने सहयोगी दल से इस मुद्दे पर आप बात क्यों नहीं करते?

देखिए मन साफ है और मजबूत चीज बनानी है तो फिर कोई बात नहीं। मैंने लोकायुक्त की स्वायत्तता के लिए पूरे आर्थिक, प्रशासनिक अधिकार दिए हैं। अगर कोई समझता है कि यह ज्यादा है तो उसका अपना दृष्टिकोण है। अब नीतीशजी की क्या सोच है, मैं उस पर क्या कहूं। वह बहुत योग्य प्रशासनिक व्यक्ति हैं और बड़े राजनीतिज्ञ हैं।


आपके पितृसंगठन आरएसएस पर भी अन्ना ने उनके आंदोलन को पटरी से उतारने का आरोप लगाया है। संघ ने इस पर ऐतराज जताया है..?

इस पर मुझे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। यह उस स्तर की बात है जिसमें मैं कहीं बीच में नहीं आता। फौज की तरह संघ में भी अनुशासन सर्वोपरि है। हम उनका बहुत सम्मान करते हैं और वे हमारे मार्गदर्शक हैं।


अन्ना पर राजनीति का आरोप भी लग रहा है। आपको सम्मानित करना क्या इसे पुष्ट नहीं करता?

चुनाव का वातावरण है तो आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैं। अन्नाजी हमसे क्या फायदा उठाएंगे। यह भावना की बात है। अगर वह सम्मान करना चाहते हैं तो उनका बड़प्पन है। वह यहां आए थे और सराहना की, मैं आभारी हूं। चूंकि कोई उनके विचारों के आधार पर चल रहा है इसलिए उनका प्रशंसा करना स्वाभाविक है, इसमें राजनीति क्यों लाना?


अभी उत्तराखंड में कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के उद्घाटन में आपने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने आमंत्रित नहीं किया, लेकिन कांग्रेस का कहना है कि आपको बुलाया गया। क्या सच है?

मुझे आश्चर्य है कि कोई ऐसी बात कर रहा है। मुझे अभी तक कोई पत्र नहीं मिला है। प्रधानमंत्री से मैंने शिकायत की है। तब रेल मंत्री से भी बात हुई है। मैंने उनसे यही बताया कि मेरे मुख्य सचिव ने बात की है। उनसे कोई जवाब नहीं मिला है। हमें आमंत्रण नहीं मिला। यह बहुत हल्की बात है। हमको न बुलाने से अगर उन्हें लगता है कि कोई फायदा हुआ तो वे गलत हैं। यह भी बिल्कुल असत्य है कि किसी ने हमसे या हमारे किसी स्टाफ से संपर्क किया।


प्रधानमंत्री ने आपसे क्या कहा और रेल मंत्री से इस बारे में आपकी क्या बात हुई?

प्रधानमंत्रीजी ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि आपको सूचित नहीं किया गया। प्रधानमंत्री से फोन पर वार्ता के बाद रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी का भी फोन आया था। उनका अपना दृष्टिकोण था और उनका कहना था कि स्थानीय विधायक को आमंत्रित किया गया था।


आपने इस घटना पर केंद्र सरकार पर संघीय ढांचे का अपमान करने का आरोप लगाया है। जवाब में कांग्रेस ने इसी साल निशंक सरकार के दौरान भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से बिना किसी संवैधानिक पद के राच्य की परियोजनाओं का उद्घाटन कराने और अखबारों में सरकारी विज्ञापन का मुद्दा उठाया है। आप क्या कहेंगे?

देखिए, उस समय क्या सही-गलत हुआ, यह अलग बात है। मगर क्या कांग्रेस यह कहना चाह रही है कि एक गलती होगी तो दूसरी हम करेंगे। किसी ने गलती की तो उसे आप इंगित करिए, लेकिन यह तो कोई बात नहीं कि हम भी वही गलती करेंगे। और फिर भाजपा अध्यक्ष के आने में संघीय ढांचे का सवाल नहीं था। यहां (कर्णप्रयाग रेलवे लाइन) तो केंद्र निर्णय ले रहा है और जिस राज्य की मदद से करना है उसकी सरकार को नकार रहा है।


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