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देश की आजादी के 64 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी अखबार में सेना के दिल्ली कूच को हेडलाइन बनाया गया। इसके बाद तो रक्षामंत्री को प्रेस कांफ्रेंस बुलानी पड़ी, जिसमें कहा गया कि सेना देश के प्रति वफादार है। ऐसी कोई बात नहीं है। सेना की देशभक्ति पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। इसके बाद प्रधानमंत्री का भी बयान आया कि ऐसी कोई बात नहीं है। पर इन बयानों के बाद कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। पहली बात तो यह है कि क्या यह मामला वास्तव में इतना महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री ओर रक्षामंत्री को बयान देना पडे़? सेना द्वारा भी खुलासा किया गया है कि सेना में किसी प्रकार के विद्रोह की जरा भी गुंजाइश नहीं है। इस खुलासे के बाद कई नए सवाल सामने आते हैं, जिसका जवाब खोजा जाना चाहिए। यदि दिल्ली की दिशा में सेना कूच कर रही है तो इसकी सूचना रक्षा मंत्रालय को क्यों नहीं दी गई? दूसरा सवाल यह है कि क्या केवल ट्रॉयल के लिए सेना को दिल्ली के इतने करीब आना चाहिए? तीसरा सवाल यह है कि इसकी सूचना क्या वायु सेना को भी देना मुनासिब नहीं समझा गया? चौथा सवाल यह है कि यदि यह मामला इतना ही सीधा है तो रक्षा सचित शशिकांत शर्मा की मलेशिया यात्रा क्यों रद्द कर उन्हें रातोरात बुला लिया गया? पांचवां सवाल यह है कि यदि यह रूटीन का मामला था तो फिर सेना को तुरंत वापस क्यों बुला लिया गया? प्रेस कांफे्रंस में रक्षामंत्री एके एंटोनी इन सवालों का जवाब नहीं दे पाए। उनका खुलासा बिटवीन द लाइंस की तरह ही है।
रक्षामंत्री इस खबर को निराधार बता रहे हैं। उन्होंने यह विश्वास व्यक्त किया है कि सेना देश के लोकतंत्र को हानि पहुंचाने का कभी कोई प्रयास नहीं करेगी। राजनीति का नियम यह है कि खंडन उसी अफवाह का ही किया जाए, जिसकी छोटी से छोटी संभावना हो। ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी अखबार में प्रकाशित खबर को निराधार बताने के लिए रक्षामंत्री को प्रेस काफे्रंस बुलानी पड़ी हो। रक्षामंत्री ने यह भी विश्वास व्यक्त किया कि भारतीय सेना विद्रोह कर सकती है, इसकी कोई भी गुंजाइश नहीं है। यहां भी यह सवाल उठ खड़ा होता है कि यदि सेना में ही भ्रष्टाचार हो रहा है तो क्या सेना उसे मजबूत करने के लिए अपना योगदान देगी? उस अंग्रेजी अखबार की मानें तो जिस दिन जनरल वीके सिंह ने अपनी जन्म की तारीख के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, उसी रात यानी 16 जनवरी को गुप्तचर संस्थाओं द्वारा यह सूचना दी गई कि दिल्ली से 150 किलोमीटर दूर हरियाणा के हिसार से एक सैन्य टुकड़ी बिना किसी पूर्व सूचना के दिल्ली की दिशा में आगे बढ़ रही है। कुछ समय बाद दूसरी सूचना यह मिली कि आगरा से भी एक सैन्य टुकड़ी दिल्ली की दिशा में आगे बढ़ रही है। इस सूचना को तुरंत ही रक्षामंत्री एके एंटनी को दी गई। तुरंत ही दिल्ली की तरफ बढ़ते यातायात को धीमा करने के लिए पुलिस से बाधा उत्पन्न करने के लिए कहा गया। चेकिंग तेज करने का आदेश दिया गया।
17 जनवरी की सुबह इसकी जानकारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी दी गई। रक्षा सचित शशिकांत शर्मा उस समय मलेशिया यात्रा पर थे, उन्हें तुरंत बुलाया गया। खैर, अभी की देखें तो देश में सेना की छवि गैर राजनीतिक और सरकार की वफादार के रूप में है। पाकिस्तान के इतिहास में सेना ने बार-बार विद्रोह किया है। हमारे देश में सैन्य विद्रोह की कल्पना करना भी मुश्किल है। फिर भी अखबार की एक खबार ने हमारे राजनेताओं की हालत क्यों खराब कर दी? इस खबर को सुनकर हमारे प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री का ब्लड प्रेशर बढ़ गया। इस खबर को सेनाध्यक्ष वीके सिंह से जोड़कर देखा जा रहा है। इतना तो तय है कि जिस तरह से सेना में इन दिनों भ्रष्टाचार का खुलासा हो रहा है, उससे यही लगता है कि भ्रष्ट राजनेताओं से देश को मुक्ति दिलाने के लिए सेना कभी भी देश की सत्ता अपने हाथ में ले सकती है। बात इतनी ही होती तो माना भी जा सकता था, किंतु इसके निहितार्थ बहुत ही व्यापक हैं। हमारे देश में सेना देशप्रेमी है। इस बात में कोई शंका नहीं है। आज की तारीख में हमारी सेना सरकार के प्रति पूर्णत: वफादार है, किंतु देशप्रेमी होना और सरकार के प्रति वफादार होने में अंतर है। सरकार स्वयं देश के प्रति वफादार रहे, तब तक सेना भी वफादार हो सकती है।
लेखक महेश परिमल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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