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खेलों में सरकारी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं

जागरण मेहमान कोना
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Vijay Malhotraपहले आइपीएल विवाद तो बाद में कामनवेल्थ घोटाले ने सबको चौंका दिया है। ऐसे में खेल मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल विधेयक लाकर लगाम लगाने की कोशिश की तो सरकार के अंदर ही उसे खारिज कर दिया गया। बीसीसीआइ के पास सरकार से फंड न लेने का तर्क है तो खेल संघों के पास ओलंपिक चार्टर का कवच। साथ ही यह आरोप कि सरकार खेल संघों पर कब्जा जमाना चाहती है। खेल संघों पर सरकारी नियंत्रण की कोशिशों और विवाद के बीच दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता आशुतोष झा ने भारतीय ओलंपिक संघ (आइओए) के अध्यक्ष व दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष वीके मल्होत्रा से इस मसले पर बात की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश-


कामनवेल्थ घोटाले के बाद अब सरकार राष्ट्रीय खेल विधेयक लाकर खेल संघों को पारदर्शी बनाना चाहती है तो इसका विरोध क्या उचित है?

यह एक बहुत बड़ा दुष्प्रचार फैलाया जा रहा है। सभी खेल संघों में सूचना का अधिकार लागू है। जिसे जो जानकारी चाहिए हमसे ले सकता है। अपने स्तर पर हमने पूर्व न्यायाधीशों की भी एक कमेटी बना रखी है, जो शिकायतों की सुनवाई करती है। इसके अलावा एथिक्स कमेटी मौजूद है। हमारे एकाउंट कैग द्वारा जांचे जाते हैं। फिर यह दुष्प्रचार क्यों किया जा रहा है कि हम पारदर्शिता के खिलाफ हैं। हम पूरी तरह पारदर्शिता चाहते हैं और उसे निभा रहे हैं। सच्चाई यह है कि सरकार खेल जगत के कायदे-कानून को नजरअंदाज कर अपना कब्जा जमाना चाहती है।


बीसीसीआइ सूचना के अधिकार का भी विरोध कर रहा है। बतौर आइओए अध्यक्ष आप क्या कहेंगे?

हमें उस बारे में कुछ नहीं कहना। मैं उन खेल संघों की बात कर रहा हूं, जो सरकार से फंड लेते हैं।


सरकार फंड देती है तो क्या उसे हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए?

खेल संघों की परेशानी यही है कि उनके खिलाफ दुष्प्रचार ज्यादा है। हम तो उस फंड के लिए भी जिम्मेदार होते हैं, जो सीधे हमारे खाते में आता ही नहीं है। फिर भी हम उफ नहीं करते हैं, लेकिन चोट हमीं पर की जा रही है। सच्चाई यह है कि खिलाड़ी बाहर जाते हैं तो सरकारी एजेंसी बामर लारी से उसे टिकट दिए जाते हैं। पैसा हमारे खाते में जुड़ता है, लेकिन जाता सीधे एजेंसी को है। विदेशों में हर खिलाड़ी के रहने-खाने के खर्च के लिए संबंधित एजेंसी को सरकार सीधे पैसा भेजती है। वह भी हमारे खाते में जुड़ता है। हमारा उस पर भी विरोध नहीं है। हस्तक्षेप की बात करें तो खिलाड़ियों के चयन में सरकारी नुमाइंदे ही महत्व रखते हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि हर संस्था कानून-कायदे से चलती है। खेल संघ इंटरनेशनल ओलंपिक चार्टर से बंधे हैं। उसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। यहां प्रशासन में सरकारी हस्तक्षेप संभव ही नहीं है।


खेल विधेयक के बाबत आपका मुख्य विरोध किन मुद्दों पर है?

सरकार चाहती है कि खेल संघों को मान्यता देने का अधिकार उसके पास हो। ऐसा सोचना भी घातक होगा। सरकारें आती-जाती रहती हैं। अगर वे किसी को मान्यता देने लगेंगी तो हर बदलती सरकार के साथ खेल संघ बदलेगा। राज्य में केंद्र से अलग सरकारें होती हैं। उनका रुख कुछ और होगा। यह हमें मंजूर नहीं है। आइओए को आइओसी से मान्यता मिलती है और हम राज्यों में खेल संघों को मान्यता देते हैं। फिर भी कोई विवाद हो तो नौ जजों की एक समिति है। अंतरराष्ट्रीय खेल संघ ने भी एक समिति बना रखी है। सरकार को याद रखना चाहिए कि 202 देशों में कतर और घाना ने ऐसा कानून बनाने की कोशिश की थी। कतर की मान्यता रद्द हो चुकी है।


सरकार का तर्क है कि अच्छे प्रशासन के लिए पदाधिकारियों की उम्र व कार्यकाल की समय सीमा तय होनी चाहिए। आप दशकों से खेल संघ में मौजूद हैं।

इस सवाल का जवाब तो खेल मंत्री को कैबिनेट के अंदर ही मिल गया। प्रधानमंत्री समेत सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री हैं जो सत्तर की उम्र पार कर चुके या उसके पास हैं। सबसे चुस्त और तेजतर्रार मंत्री प्रणब मुखर्जी हट जाएं तो सरकार ध्वस्त हो जाएगी। फिर प्रशासन के नाम पर यह खेल हमारे साथ क्यों खेला जा रहा है। सभी के लिए नियम बनाएं तो खेल संघ भी तैयार हो जाएगा। चार्टर में स्पष्ट है कि यह खेल संघों को ही तय करना है। सरकार कोई पाबंदी नहीं लगा सकती है।


सिर्फ सरकार ही नहीं, उच्च न्यायालय का भी कुछ ऐसा ही मानना था।

कोर्ट को किसी ने गलत जानकारी दे दी। कोर्ट ओलंपिक चार्टर से अनभिज्ञ था। सरकार ने उन्हें पूरी जानकारी नहीं दी थी। उनका निर्णय इस आधार पर था कि सरकार फंड देती है तो उसे हस्तक्षेप का अधिकार है। मामला अभी कोर्ट में चल रहा है। कोई बताए कि सरकारी फंड से चलने वाले किस एनजीओ या शैक्षिक संस्थान में इस तरह की शर्त लागू है? माकन साहब को लगता है कि दो कार्यकाल के बाद स्वार्थ आ जाता है तो सबसे पहले उन्हें हट जाना चाहिए। अब किसी और को सेवा का मौका दें। एक उदाहरण तो पेश करें।


खेल संघ जिस आइओसी की दुहाई दे रहे हैं वहां तो 70 साल की उम्र की समय सीमा तय है।

यह सच है, लेकिन वहां चुनाव नहीं होते हैं, नामांकन होता है। जब चुनाव होते थे तो कोई सीमा नहीं थी। उन्होंने आपस में तय किया है कि 70 की उम्र रखेंगे, लेकिन चार्टर में यह तय नहीं किया गया। किसी इंटरनेशनल बाडी में यह नहीं है।


ऐसी ही कवायद आपकी सरकार के समय भी हुई थी। आखिर सरकार की क्या मंशा है?

(थोड़ा मुस्कराते हुए) इसके पीछे लंबी कहानी है। 1975 में सरकार ने शिक्षा को समवर्ती सूची में डाल दिया लेकिन खेल को भूल गए। वर्ष 1986 से लगातार इस पर कब्जा जमाने की कोशिश हो रही है। बहाना ढूंढा गया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले मामले में केंद्र का दखल होना चाहिए। यह हास्यास्पद है। राज्य सूची का कौन सा विषय है, जिस पर अंतरराष्ट्रीय बैठकें नहीं होती हैं। सभी राज्यों ने इसका विरोध किया है। हम प्रधानमंत्री से भी मिले थे। वह भी हमसे सहमत थे, लेकिन जिस तरह माकन जुटे हैं उससे यह तो साफ है कि उनका बस चला तो भारत ओलंपिक, कामनवेल्थ और एशियन गेम्स से बाहर हो जाएगा।


खेल के प्रति राजनीतिज्ञों में इतनी दीवानगी क्यों है?

पहले माकन जी से पूछिए कि उन्होंने कब और कौन सा खेल खेला है, जो खेल मंत्री बने हुए हैं। दूसरी बात, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देख लीजिए कि प्रशासन किसके हाथ में है। चुनाव होता है, उसमें खिलाड़ी भी खड़े हो सकते हैं। यह भी सच्चाई है कि राजनीतिज्ञ खेलों के विकास के लिए जरूरी हैं।


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