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तर्क की कसौटी पर कांबली के दावे

जागरण मेहमान कोना
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Satyendra Rajanविनोद कांबली निस्संदेह एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे। स्टाइलिश बल्लेबाज थे। उन्हें टेस्ट क्रिकेट के माफिक बल्लेबाज माना जाता था। यह भी कहा जा सकता है कि उनमें महान खिलाड़ी बनने की संभावना थी, लेकिन किसी भी खेल में महान बनना सिर्फ कुदरती हुनर से नहीं होता। इसके लिए उतने ही लगन, अनुशासन और आत्मसंयम की जरूरत पड़ती है। कांबली इन सभी बातों में पिछड़ गए। यह बात उन्हें जरूर चुभती होगी कि जिस गुरु ने सचिन तेंदुलकर को ढाला, उन्हीं रमाकांत अचरेकर के सांचे में वे भी ढले थे। लेकिन सचिन कहां से कहां पहुंच गए और कांबली कुछ समय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने के बाद कहीं के नहीं रहे। अचरेकर के तीन शिष्यों ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में प्रवेश किया था। सचिन को कांबली और प्रवीण आमरे से पहले मौका मिला, लेकिन कांबली और आमरे को भी ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। आमरे ने भी बड़ी संभावनाएं जगाई थीं, लेकिन वे भी ज्यादा समय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में टिक नहीं पाए। अभी सचिन खेल ही रहे हैं, जबकि आमरे कब के कोच बन चुके हैं और कांबली टीवी चैनलों पर जाकर अपने को चर्चा में बनाए रखने का भरसक प्रयास करते नजर आते हैं।


कांबली को चैनलों पर यह मौका मिला तो उसकी एक वजह टीवी चैनलों में पूर्व खिलाडि़यों को गेस्ट बनाकर अपने प्रोग्राम की रेटिंग बनाने की होड़ है। लेकिन उनके जितना ही खेलने वाले बाकी खिलाडि़यों से उन्हें ज्यादा अहमियत मिली, तो इसीलिए कि उनकी छवि सचिन तेंदुलकर के दोस्त या गुरुभाई की है। सचिन जैसे-जैसे ऊंचाइयों पर चढ़ते गए, टीवी चैनलों में उनके करीबियों की तलाश बढ़ती गई। वैसे लोगों की, जो उनके बचपन, उनके आरंभिक क्रिकेट करियर के बारे में कुछ बोल पाएं। सचिन से निटकता कांबली के बहुत काम आई। बोलकर चर्चा में बने रहने की यह कला कांबली ने खूब सीख ली है।


हमें नहीं मालूम ऐसा वे अपनी बुद्धि से करते हैं या उनके कुछ सलाहकार हैं, जिनका अपना स्वार्थ कांबली को चर्चा में बनाए रखने में है। मगर कांबली इस खेल में कोई हद नहीं पहचानते। इसकी एक मिसाल तब देखने को मिली थी, जब उन्होंने सच का सामना जैसे भ्रामक टीवी कार्यक्रम में गए और सचिन पर ही फब्ती कस दी। उनका कहना था कि सचिन ने उनकी मदद नहीं की। जैसे कांबली को टीम में बनाए रखना सचिन की जिम्मेदारी थी! कांबली ने यह नहीं बताया कि जब उन्हें शोहरत मिली तो वे कैसे अपने जीवन में बहक गए, जो उनके टीम से बाहर होने का कारण बना। लेकिन भारत में सचिन की प्रशंसा कर आप चर्चा में आ सकते हैं तो उससे भी ज्यादा चर्चा में उन पर तीर चलाकर आ सकते हैं। शायद आपको याद हो, ऑस्ट्रेलिया के पूर्व विकेट कीपर एडम गिलक्रिस्ट, जिन्हें वैसे तो सज्जन क्रिकेटर माना जाता था, मगर रिटायर होने के बाद जब उन्होंने किताब लिखी तो सचिन पर नकारात्मक टिप्पणियां कर उसे बेचने का जुगाड़ भिड़ाया। वही फॉर्मूला कांबली ने भी अपनाया था। अब विनोद कांबली ने मैच फिक्सिंग का जो नया शिगूफा छोड़ा है, उसे इस पूरे संदर्भ में देखना उचित होगा। अब उनका निशाना पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन हैं, लेकिन शायद सिर्फ वही नहीं हैं।


अगर 1996 के विश्वकप का सेमीफाइनल फिक्स्ड था तो वह अकेले अजहर ने नहीं किया होगा। उसमें टीम के बाकी खिलाड़ी भी शामिल रहे होंगे या कम से कम उन्हें इसकी भनक रही होगी। तो जाहिर है, सचिन तेंदुलकर समेत तमाम खिलाड़ी या तो मैच फिक्सिंग या उस पर परदा डालने के दोषी ठहरते हैं। कांबली को सलाह देने वाले जरूर मीडिया के गतिशास्त्र की बेहतर समझ रखने वाले लोग हैं। कांबली ने यह नया बखेड़ा खड़ा करने के लिए उस मैच को चुना, जो बहुत से लोगों को इसलिए याद है कि जब भारत हार के करीब था, तब कांबली रोते हुए मैदान से बाहर निकले थे। कांबली ने सोचा होगा कि लोग उन आंसुओं को टीम के प्रति उनकी निष्ठा का सबूत समझेंगे। इसलिए उन पर तो कोई अंगुली नहीं उठाएगा। तो पहले से ही बदनाम अजहर पर वे एक और तीर चलाकर फिलहाल एक विवाद छेड़ देंगे और कुछ समय तक चर्चा में बने रहने का इंतजाम कर लेंगे। ऐसा करने के लिए माहौल तैयार था। पाकिस्तान के तीन खिलाडि़यों सलमान बट्ट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमिर को स्पॉट फिक्सिंग के लिए सजा होने के बाद फिक्सिंग का मामला ज्यादा विश्वसनीय ढंग से, ठोस सबूतों के साथ पहली बार सामने आया। उसके बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की एंटी करप्शन यूनिट के पूर्व प्रमुख पॉल कॉन्डन ने बयान दिया कि 1990 के दशक में मैच फिक्सिंग आम बात थी और इसमें सभी देशों के खिलाड़ी शामिल थे। यह रहस्यमय है कि कॉन्डन ने यह बयान क्यों दिया, क्योंकि इतना तो जाहिर है कि ऐसा करके उन्होंने किसी के ज्ञान में कोई बढ़ोतरी नहीं की।


1990 के दशक की कथा भारत, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में तब हुई जांच से पहले ही विस्तार से लोगों को मालूम है। शेन वॉर्न और मार्क वॉ जैसे खिलाड़ी भी सट्टेबाजों के संपर्क में आए और खेल के नैतिक मानदंड लांघे, यह बात न सिर्फ आम जानकारी में है, बल्कि दस्तावेजों में दर्ज है, क्योंकि इसके लिए उन पर जुर्माना लगा था। उसी जांच का नतीजा था कि अजहर पर पांच साल का प्रतिबंध लगा था। शायद आपको याद हो कि जब अजहर पर प्रतिबंध लगा तो उस वक्त तक वे 99 टेस्ट मैच खेल चुके थे। वे सौवां टेस्ट नहीं खेल पाए, जो किसी भी खिलाड़ी का बड़ा सपना होता है। लेकिन मोहम्मद अजहरुद्दीन का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। और न ही उनसे किसी को हमदर्दी होगी। उन्होंने क्रिकेट प्रेमियों के ऐतबार का सौदा किया और इसलिए उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए थी। लेकिन सवाल यह है कि आज डेढ़ दशक बाद उस बात को उभारकर आखिर कांबली क्या बताना चाहते हैं?


प्रश्न यह भी है कि पॉल कॉन्डन ने इस वक्त यह शिगूफा क्यों छोड़ा? क्या सलमान बट्ट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमिर के स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में जेल जाने से बने माहौल में उन्हें भी चर्चा में आने का मौका नजर आया? वरना, उन्हें मैच फिक्सिंग रोकने के लिए बनी यूनिट में इसीलिए तो नियुक्त किया गया था कि दुनिया को यह सच्चाई बताएं। तो फिर आज तक वे किस बात का इंतजार कर रहे थे? और यह सवाल उनसे जरूर पूछा जाना चाहिए कि उस पद पर रहते हुए आखिर उन्होंने मैच फिक्सिंग के बारे में क्या सबूत इकट्ठे किए? अगर नहीं किए तो जितनी बातें सबको पता हैं, उन्हीं को दोहरा कर क्या उन्होंने गैर-जिम्मेदारी का परिचय नहीं दिया है? यह अच्छी बात है कि कॉन्डन के बयान से क्रिकेट की दुनिया में कोई भूचाल नहीं आया है। यह भी अच्छी बात है कि अजहर, तब के बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया, मैनेजर अजित वाडेकर और उस मैच में खेले स्पिनर वेंकटपति राजू ने एक स्वर से कांबली को झुठला दिया है। राजू का यह कहना तार्किक है कि अगर वह मैच फिक्स्ड था तो उसमें कांबली भी शामिल थे।


अजहर की इस बात से भी इत्तेफाक रखा जा सकता है कि अगर ऐसा हल्कापन कांबली में नहीं होता तो वे कहीं बड़े खिलाड़ी बनते। कांबली बड़े खिलाड़ी नहीं बने तो आज बड़बोलापन दिखाकर टीवी चैनलों पर अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम करते हैं। कॉन्डन अपने कार्यकाल में किसी मैच फिक्सर को नहीं पकड़ पाए तो अब अनावश्यक बयान से शायद यह याद दिलाना चाहते हैं कि आइसीसी में कभी इस नाम का भी कोई व्यक्ति था। लेकिन एक गंभीर मसले पर अगंभीर बातें करना किसी भी रूप में वांछित नहीं है। मैच फिक्सिंग एक बेहद गंभीर अपराध है। इसे लेकर अगंभीर और अप्रासंगिक बातें नहीं कही जानी चाहिए। इसीलिए कॉन्डन और कांबली की बातों ने बहुत से क्रिकेट प्रेमियों में गुस्सा पैदा किया है।


लेखक सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं


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