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आधी दुनिया के साथ अत्याचार

जागरण मेहमान कोना
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महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के खिलाफ 16 दिनों के एक विशेष अभियान का महत्व बता रहे हैं ए. पीटर बरली


महिलाओं और लड़कियों के प्रति हिंसा का अनुभव भारत में अन्य देशों की ही तरह है। लिग-आधारित हिंसा जाति, वर्ग, सामाजिक, आर्थिक हैसियत और धर्म की सीमाओं से परे एक विश्वव्यापी समस्या है। महिलाओं और लड़कियों को जीवन में हिंसा का सामना कन्या भ्रूण हत्या व शिक्षा की पर्याप्त सुविधा तथा पोषण न मिलने से लेकर बाल विवाह, पारिवारिक व्यभिचार, और कथित ऑनर किलिग के रूप में करना पड़ता है। यह हिंसा दहेज सबधी हत्या या घरेलू हिंसा, दुष्कर्म, यौन शोषण और दु‌र्व्यवहार, मानव व्यापार या विधवाओं का निरादर और निष्कासन के रूप में हो सकती है। दुनिया भर में तीन में से एक महिला को अपने जीवन में यौन आधारित हिंसा का शिकार होना पड़ता है। कुछ देशों में यह सख्या 70 प्रतिशत तक है।


25 नवबर को इंटरनेशनल डे फॉर द एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट वूमेन से शुरू होकर और 10 दिसबर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की समाप्ति तक इस वर्ष हम एक बार फिर ’16 डेज ऑफ एक्टिविज्म अगेंस्ट जेंडर वायलेंस’ मना रहे हैं। यह स्पष्ट है कि महिलाओं व लड़कियों को हिंसा से मुक्ति दिलाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को शब्दों से बढ़कर सक्रियता दिखानी चाहिए। चाहे यह बद दरवाजों के पीछे हो या डराने-धमकाने के रूप में हो, चाहे यह हमारे आसपास की सड़क पर हो या दूरदराज क्षेत्रों में। हमें उन लोगों के विरुद्ध उठ खड़े होना चाहिए जो किसी भी रूप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा करते हैं। हमें दुनिया भर में महिलाओं व लड़कियों की उस स्थिति में सुधार लाना चाहिए जो उन्हें कमजोर व असुरक्षित बना देती है।


ये 16 दिन गभीर विचार के हैं कि लिग-आधारित हिंसा केवल महिलाओं की समस्या नहीं हो सकती, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है। महिलाओं के प्रति हिंसा मात्र मानवाधिकारों और गौरव का निरादर ही नहीं है, बल्कि इसका विपरीत प्रभाव हमारे समुदायों के कल्याण पर पड़ता है। जब महिलाओं और लड़कियों से दु‌र्व्यवहार होता है तो व्यापार बद हो जाते हैं, आय सिकुड़ जाती है, परिवार भुखमरी पर पहुंच जाते हैं और इस वातावरण में पले-बढ़े बच्चे इसे सीख लेते हैं, जिससे हिंसा का चक्र जारी रहता है। इस क्रूरता से उत्पन्न आर्थिक व सामाजिक हानि तथा स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चो का कोई अंत नहीं है। घायल होने और दु‌र्व्यवहार के परिणाम स्वरूप चिकित्सा और कानूनी सेवाओं पर भारी खर्च होता है। घरेलू उत्पादकता की हानि होती है और आय घट जाती है, क्योंकि बहुत सी महिलाएं प्राय: परोक्ष रूप से आय का स्रोत होती हैं। वे बाजार की वस्तुएं बेचती हैं या घरेलू रूप में कार्य करती हैं। उदाहरण के लिए युगाडा में लगभग 12.5 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि वर्ष में हिंसा की घटनाओं से लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं का औसतन 11 कार्यदिवस का नुकसान होता है।


इस नुकसान का प्रभाव बहुत से परिवारों में बढ़ जाता है जिनमें एक महिला मुख्य या अकेली रोटी कमाने वाली है। बांग्लादेश में दो तिहाई से अधिक परिवारों में सर्वेक्षणों से पता चला है कि घरेलू हिंसा से एक सदस्य के काम पर औसतन 5 से 4.5 डॉलर प्रतिमाह का असर पड़ता है। यह नुकसान शेष समुदाय को प्रभावित करता है। शारीरिक हिंसा महिलाओं में गभीर स्थितियों का भारी जोखिम लाती है। व्यक्तिगत पीड़ा और कष्ट के परे लिग-आधारित हिंसा के राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से आर्थिक कुप्रभाव हैं, जैसे विदेशी निवेश व निर्धारित देश में सस्थानों में आत्मविश्वास की कमी। कोई भी देश या दुनिया का कोई भाग इस नुकसान से बचा हुआ नहीं है। कनाडा में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की एक साल में न्यायिक, पुलिस और परामर्श की लागत अनुमानत: 1 अरब डॉलर से अधिक है। इंग्लैंड में घरेलू हिंसा के कारण होने वाली हानि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 23 अरब पाउंड प्रतिवर्ष या 440 पाउंड प्रति व्यक्ति आकी गई है।


अमेरिका में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर अकेले 5.8 अरब डॉलर से अधिक का खर्च होता है। इसके अलावा 4.1 अरब डॉलर सीधे चिकित्सा एव स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय होता है। तनावपूर्ण आर्थिक स्थिति के दौर में कुछ लोग इन प्रयत्नों को बेहद खर्चीला समझ सकते हैं। यद्यपि महिलाओं के विरुद्ध आक्रमण रोकने और अभियोजन में ससाधनों के निवेश से खर्च बढ़ अवश्य सकता है, लेकिन आगे चलकर बड़ा लाभ होगा। अमेरिका का वायलेंस अगेंस्ट वूमेन एक्ट, जिसने ऐसे अपराधों की जाच करने और अभियोजन करने के प्रयासों को मजबूत बनाया है, 1994 से लगभग 16 अरब डॉलर से अधिक बचा चुका है। इन बचतों में अधिकतर बचत वह है जो संभावित हिंसा को टाल कर की गई है। भारत सरकार और भारत के जीवत नागरिक समाज के सदस्य भारत में लिग-आधारित हिंसा से लड़ने के लिए नई रणनीतियों को लागू कर रहे हैं।


जो भी हो, हमारे अभियान के 16 दिन महिलाओं और लड़कियों को हिंसा के भयावह अनुभव से मुक्त कराने के लिए पुन: संकल्प लेने का एक अवसर है, चाहे यह दु‌र्व्यवहार बद दरवाजों के पीछे होता हो या खुले मैदान में सघर्ष के दौरान। वे देश प्रगति नहीं कर सकते जिनकी आधी जनसख्या हाशिए पर हो या उससे दु‌र्व्यवहार और पक्षपात होता हो। जब महिलाओं और लड़कियों को उनके अधिकार और शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी के समान अवसर मिलते हैं तो वे अपने परिवारों और समुदायों तथा देशों को ऊपर ले जाती हैं। जैसा कि हाल ही में विदेश मंत्री हिलेरी क्लिटन ने कहा है कि दुनिया की महिलाओं व लड़कियों की सभावनाओं में निवेश दुनिया भर में आर्थिक उन्नति, राजनीतिक स्थिरता और पुरुषों और महिलाओं के लिए वृहद समृद्धि प्राप्त करने का सबसे सुनिश्चित तरीका है।


लेखक ए. पीटर बरली भारत में अमेरिका के प्रभारी राजदूत हैं


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