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पचास के दशक के अंत में फिल्मी संगीतकारों से अनबन के कारण सरकार ने जब अपने रेडियो पर फिल्मी गीतों के प्रसारण में काफी कमी कर दी तो श्रोता वर्ग अपने मनोरंजन के लिए रेडियो सीलोन की ओर मुखातिब हो गया। तब श्रोताओं की विमुखता को देखते हुए भारत सरकार ने मनोरंजन के लिए एक नया रेडियो चैनल विविध भारती के नाम से लांच किया। विविध भारती आज यानी सोमवार को पूरे 54 बरस की हो गया। टूटे श्रोता वर्ग को फिर से जोड़ने के मकसद से तीन अक्टूबर 1957 को पंडित नरेंद्र शर्मा की अगुवाई में विविध भारती का प्रसारण शुरू किया गया था, जिसमें वांछित सफलता भी मिली। तब से लेकर आज तक विविध भारती श्रोताओं के बीच अपनी पैठ बनाने में सफल रहा है। विविध भारती की लोकप्रियता की सबसे बड़ी भूमिका यह है कि उसने समय की नजाकत को भांपते हुए खुद को ढाला। यही कारण है कि मोबाइल और इंटरनेट जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं के बीच आज भी इसकी लोकप्रियता बरकरार है। साथ ही पूरे देश में हर जगह इसके कार्यक्रमों को बड़े चाव से सुना जाता है।
विविध भारती को लोकप्रिय बनाने में इसके उद्घोषकों का भी बड़ा योगदान रहा है। इस चैनल के एंकरों की प्रस्तुति स्तरीय होती है, जो श्रोताओं को हर समय अपने से बांधे रखता है। इन उद्घोषकों में आवाज की दुनिया का सबसे बड़ा नाम रहा है अमीन सयानी का। अपने बड़े भाई हामिद सयानी के बीमार होने के कारण उद्घोषक बने अमीन सयानी भी काफी समय तक विविध भारती से जुडे़ रहे हैं और रेडियो सीलोन पर उनका बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम बिनाका गीतमाला बाद में विविध भारती पर 1989 से 1994 तक प्रसारित होता रहा। आज की तारीख में यूनुस खान, ममता सिंह, रेनू बंसल और कमलेश जैसे उद्घोषक अपने-अपने अंदाज से श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं। आज एफएम रेडियो का जमाना है और देश के ज्यादातर इलाकों में इसकी खासी लोकप्रियता है, लेकिन इन सब के बीच विविध भारती अपनी पहचान बचाए रखने में सफल रहा है। विविध भारती में आज फिल्मी संगीत के अलावा संवादात्मक, व्यंग्यात्मक व लघु नाटक आदि कई कार्यक्रमों का प्रसारण निर्बाध रूप से होता है।
विविध भारती पर आज भी कई ऐसे कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है, जिन्हें शुरू हुए लंबा अरसा हो गया है। लेकिन अपनी खूबसूरती से अभी तक अपनी पहचान बनाए रखा है। इस चैनल पर प्रसारित होने वाले सबसे पुराने कार्यक्रमों में संगीत सरिता, छाया गीत, भूले-बिसरे गीत, त्रिवेणी, विशेष जयमाला और इनसे मिलिए शामिल हैं। इन पुराने कार्यक्रमों के अलावा कुछ नए कार्यक्रमों की भी शुरुआत की गई है, जिसे युवा श्रोताओं ने खूब पसंद किया है। युवाओं को चैनल से बनाए रखने के लिए हर सुबह चित्रलोक नाम से कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें ताजातरीन फिल्मों के गाने सुनाए जाते हैं। रोजाना शाम चार बजे से एक कार्यक्रम पेश किया जाता है, जिसे पिटारा नाम से उद्घोषित किया जाता है और हर दिन कुछ न कुछ अलग प्रस्तुति होती है, जिसमें बाइस्कोप की बातें, सरगम के सितारे, सेल्युलाइड के सितारे, सेहतनामा और हैलो फरमाइश आदि शामिल हैं। इन कार्यक्रमों को समाज का हर तबका खूब पसंद भी करता है। हर दिन आने वाले पिटारा कार्यक्रम में हैलो फरमाइश सप्ताह में दो बार आता है, जिसमें पूरे भारत से हर जगह से लोग फोन करते हैं। इनमें कई ऐसे श्रोता भी होते हैं, जिन्हें ठीक से हिंदी बोलने नहीं आती, वे भी टूटी-फूटी हिंदी में अपनी भावना व्यक्त करने का प्रयास करते हुए अपने पसंदीदा फिल्मी गाने की फरमाइश करते हैं। आलोचकों का कहना कि रेडियो सिर्फ ग्रामीण या छोटे-छोटे कस्बों में ही सुना जाता है, पूरी तरह से भ्रामक और तथ्यों से परे है। हैलो फरमाइश में ही बड़े-बड़े शहरों से कई फोन आते हैं।
महिलाओं से संबंधित कार्यक्रम सखी सहेली को न सिर्फ महिलाएं ही सुनती हैं, बल्कि पुरुष वर्ग भी उतना ही चाव से सुनता है। कई बार पुरुष श्रोता विविध भारती में इस कार्यक्रम में पुरुषों के पत्र शामिल नहीं किए जाने की शिकायत भी कर चुके हैं। सेहतनामा में हर हफ्ते किसी न किसी बीमारी के बारे में संगीतमय प्रस्तुति के बीच विस्तार से बताया जाता है। जिससे कि श्रोता इसे सुनते समय बोरियत महसूस न करे। भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के इस सबसे बड़े मनोरंजक रेडियो चैनल पर अपने घर से बहुत दूर देश की सुरक्षा में तैनात जवानों को प्रोत्साहित करने के लिए सैनिकों से संबंधित कार्यक्रम विशेष जयमाला के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें सिर्फ सैनिकों के ही फरमाइशी गाने सुनाए जाते हैं। साथ ही सैनिक अपनी बातें भी लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं।
आज मनोरंजन के अनगिनत साधन हमारे पास हैं, लेकिन रेडियो पर मनोरंजन करने का अपना ही अलग अंदाज है। तेजी से लोकप्रिय हो रहे फेसबुक और गूगल प्लस के अलावा इंटरनेट पर यू-ट्यूब जैसी ढेरों मनोरंजन के साधनों की उपलब्धता के बावजूद रेडियो सुनने वालों की कमी नहीं है। भारत में रेडियो युग की शुरुआत मैसूर रियासत में 1935 में ही हो गई थी। उस समय रेडियो हर किसी के पास नहीं होता था और जिसके पास होता, उसकी समाज में प्रतिष्ठा काफी बढ़ जाती थी। लगभग तीन-चार दशक पहले जब कुछ लोगों के पास ही रेडियो हुआ करता था, तब गांव व आसपास के लोग एक साथ बैठकर रेडियो सुना करते थे। बीबीसी तो समाचारों के लिए था, लेकिन मनोरंजन के लिए रेडियो सीलोन और विविध भारती ही उपलब्ध थे। बाद में विविध भारती ने अपने कई शानदार कार्यक्रमों के दम पर देश में अपनी पकड़ बना ली। विविध भारती को जिस मकसद से स्थापित किया गया था, वह उसे पूरा करने में पूरी तरह से सफल रहा है। विविध भारती के पितामह कहे जाने वाले महान कवि व प्रशासक पंडित नरेंद्र शर्मा ने 54 साल पूर्व जिस बीज को रोपा था और आज पूरी तरह से मनोरंजन का विशाल वट वृक्ष बन गया है। उम्मीद है कि आगे भी इस मनोरंजन रूपी वृक्ष की छांव हम सबको निर्बाध रूप से मिला करेगी।
इस आलेख के लेखक सुरेंद्र कुमार वर्मा हैं
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