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अमेरिका में आंदोलन की आहट

जागरण मेहमान कोना
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Devindar sharmaअब अमेरिका की बारी है। इस साल के शुरू में उत्तरी अफ्रीका और खाड़ी के कुछ देशों में विद्रोह और भ्रष्टाचार व कालेधन के खिलाफ भारत में अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के शांतिपूर्ण आंदोलन के बाद अब विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका में जन क्रांति दस्तक दे रही है। पिछले तीन सप्ताह से, अमेरिका में आर्थिक असमानता के खिलाफ स्वत:स्फूर्त आंदोलन चल रहा है। वाल स्ट्रीट विरोधी आंदोलन 147 शहरों में फैल चुका है। आयोजकों का कहना है कि 761 शहरों में उनकी बैठकें जारी हैं। पिछले सप्ताह न्यूयॉर्क में हुए प्रदर्शन में करीब 20,000 लोगों ने भाग लिया था। वाल स्ट्रीट न्यूयॉर्क का वित्तीय केंद्र है। यहीं पर विश्व का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज स्थित है। पिछले कुछ वर्षो में भवन निर्माण वित्तीय शक्ति के संदर्भ में वाल स्ट्रीट अमेरिका में कुख्यात हो गया है। न्यूयॉर्क में वाल स्ट्रीट के सामने कुछ लोगों द्वारा शुरू किया गया प्रदर्शन देखते ही देखते अमेरिका के कोने-कोने में फैल गया। ‘वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो’ के नारे के साथ शुरू हुआ जन आंदोलन लाभ के निजीकरण और घाटे के सामाजीकरण की अवधारणा के खिलाफ गुस्से की अभिव्यक्ति है। आर्थिक नीतियों और राहत पैकेज का लाभ अमेरिका की मात्र एक प्रतिशत जनता को ही मिला है। अनुमान है कि अमेरिका के चार सौ धनी परिवारों का देश की कुल आर्थिक संपदा के 50 फीसदी पर कब्जा है। राजनीतिक दलों और सत्तारूढ़ कुलीन तबके के खिलाफ लोग शांति मार्च निकाल रहे हैं। उद्योगपतियों के हाथों में होने के कारण मीडिया घराने भी इन विरोध प्रदर्शनों को अधिक कवरेज नहीं दे रहे हैं। ‘हम 99 प्रतिशत हैं’ युवाओं में यह नारा लोकप्रिय हो रहा है। दूसरी आर्थिक मंदी के कारण बढ़ती बेरोजगारी लोगों के गुस्से की आग में ईंधन का काम रही है।


वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो अभियान एक ऑस्ट्रेलियन वैज्ञानिक द्वारा मौत की चेतावनी जारी करने के एक साल बाद शुरू हुआ है। ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर फ्रेंक फैनर ने दावा किया है कि मानव जाति जनसंख्या विस्फोट से पैदा हुए बेकाबू उपभोग के कारण अपना अस्तित्व नहीं बचा पाएगी और आने वाले सौ सालों में खत्म हो जाएगी। साथ ही कुछ अन्य जीव-जंतुओं का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। अनियंत्रित उपभोग स्टॉक मार्केट की बुनियाद है। यह प्राकृतिक संसाधनों, जलवायु, प्रकृति और साथ ही मानव जाति के खिलाफ हिंसक व्यवहार करता है। यह प्राकृतिक, भौतिक और वित्तीय संसाधनों को गरीबों से छीनकर अमीरों की झोली में डाल देता है। वैश्वीकरण एकाधिकार नियंत्रण को और मजबूत करने का औजार बन गया है। इन सबके खिलाफ ही अमेरिकी जनता उठ खड़ी हुई है। वित्तीय बाजार पहले अर्थशास्त्रियों को अपने पक्ष में करता है और फिर मीडिया को भी लपेटे में ले लेता है। अर्थशास्त्री नियम बनाते हैं। वे सकल घरेलू उत्पाद को विकास का संकेतक बताते हैं। वे इसे इतनी सफाई से बताते हैं कि हम व्यक्तिगत संपदा को राष्ट्रीय विकास के संकेतक के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। वे हर चीज को यहां तक कि वैश्विक जलवायु को भी खरीद-फरोख्त और दोहन का विषय बना देते हैं।


जब विश्व का जीडीपी में भरोसा कायम हो गया तो बड़े अर्थशास्त्रियों और सलाहकार फर्मो ने स्टॉक मार्केट का हवामहल खड़ा कर दिया। मेरे ख्याल से हालिया वर्षो में अनियंत्रित उपभोग की प्रक्रिया को तीव्र करने में सबसे बड़ा योगदान वाल स्ट्रीट का रहा है। सलाहकार फर्मे यह स्वीकार करने से इंकार करेंगी, किंतु यह कारण स्पष्ट है कि फैनर ने मानव जाति के अस्तित्व के अंत की जो चेतावनी जारी की थी उसका कारण स्टॉक मार्केट ही बनेगा।


मैं स्टॉक मार्केट की कार्यपद्धति को देखकर हैरान हूं। इन बाजारों ने हर चीज का उपभोगीकरण कर दिया है। पर्यावरण की अधिकांश बुराइयों के पीछे भी स्टॉक मार्केट का प्रत्यक्ष हाथ है। स्टॉक मार्केट पानी की हर बूंद और अन्य तमाम प्राकृतिक संसाधनों को चूस लेगा। हर चीज की कीमत है, यहां तक कि जिस हवा में आप सांस लेते हैं उसकी भी। निश्चित तौर पर स्टॉक मार्केट लंबे समय तक नहीं टिक पाएंगे। 2008-09 में जो आर्थिक संकट पैदा हुआ था, वह इसी स्टॉक मार्केट की व्यवस्थित विफलता का नतीजा था, किंतु यह मामला इतनी बड़ी रकम का है कि सबसे ताकतवर सरकारें भी दोषपूर्ण व्यवस्था को बदलने को तैयार नहीं हैं। वैश्विक जगत में आर्थिक राहत पैकेज एक अनिवार्य बुराई बन गया है। आर्थिक संकट के जिम्मेदार भ्रष्ट बैंकर्स और हेज फंड मैनेजरों में से किसी को भी जेल नहीं भेजा गया है। इस तरह का अनियंत्रित उपभोग विश्व के अंत की शुरुआत बन जाएगा। वास्तव में यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। केवल अर्थशास्त्री इसे देखने से इंकार करते हैं, क्योंकि अर्थशास्त्रियों को चुप रहने के लिए पैसा दिया जाता है, इसलिए मीडिया भी इस बुराई को स्वीकार नहीं करता। स्टॉक मार्केट खुद ही आर्थिक विकास के संकेतक बन गए हैं। जब आर्थिक लाभ केवल अमीर लोग ही उठाएंगे तो आम जनता को इसके कारण भड़की हिंसा के बीच ही रहना होगा। न्यूयॉर्क में एक प्रदर्शनकारी डेनियल ब्रूक का कहना है, ‘यह एक ऐसा देश है जहां 90 प्रतिशत संपदा पर मात्र एक प्रतिशत लोगों का कब्जा है।’ इसी अन्याय के खिलाफ आज आम अमेरिकी उठ खड़ा हुआ है। अगर वाल स्ट्रीट पर कब्जा करने में लोग सफल हो गए तो यह आर्थिक स्वतंत्रता और न्याय का चेहरा बदल देगा।


लेखक देविंदर शर्मा आर्थिक नीतियों के विश्लेषक हैं


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