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कौन लेगा इस हमले की जिम्‍मेदारी

जागरण मेहमान कोना
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awdhesh kumarमुंबई हमले को आतंकवादी घटना साबित करने के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। इसलिए गृहमंत्री पी चिदंबरम द्वारा इसे आतंकवादी घटना करार देना एक औपचारिकता मात्र था, लेकिन चिदंबरम की इस बात से सहमति व्यक्त करने का कोई कारण नहीं है कि हमारे पास इसकी सूचना नहीं थी। मुंबई आतंकववादियों के शीर्ष रडार पर है, यह भयानक तथ्य कोई रहस्य नहीं है। मुंबई केवल भारत की वर्तमान अर्थव्यवस्था की व्यावसायिक राजधानी नहीं, सांप्रदायिक दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील नगरी भी है। 1993 के विस्फोटों के बाद यहां के भयावह दंगे और उसका देश के अन्य हिस्सों में प्रसार के बाद से भारत विरोधियों की कुटिल दृष्टि इस शहर पर लगी है। इसलिए आतंकवादी इस शहर को निशाना बनाते हैं। हमारे लिए राहत की बात यही है कि उनकी तमाम कोशिशों के बाद मुंबई सांप्रदायिक संघर्ष से अछूती रही है। इस दृष्टि से विचार करें तो निष्कर्ष यही आएगा कि आतंकवादी अपने लक्ष्य में हमेशा विफल रहे हैं, किंतु इसका सेहरा वहां के नागरिकों के सिर जाता है, जो अपने अंदर के भय, क्षोभ और गुस्से को नकारात्मक मोड़ नहीं देते। आतंकवादी तो अपनी कोशिश में सफल हो ही जाते हैं। 15 मिनट के अंदर हुए तीनों विस्फोट में टाइमर का प्रयोग हुआ।


वस्तुत: विस्फोटों में प्रयुक्त सामग्री एवं इसके लिए इस्तेमाल तरीके ही यह साबित करते हैं कि यह कोई औचक या अफरातफरी में किया गया हमला नहीं है। पहला विस्फोट दक्षिण मुंबई की शकील मेमन स्ट्रीट स्थित झवेरी बाजार के जिस खाऊ गली में हुआ, वहां शाम को काम से निपटकर लोग नाश्ते के लिए आते हैं और इस कारण भारी अव्यवस्थित भीड़ रहती है। करीब 50 हजार लोग वहां प्रतिदिन आते हैं और करोड़ों के आभूषण का कारोबार होता है। दूसरे विस्फोट का स्थल दादर बस पड़ाव था, जहां स्कूल बसों की कतारें होतीं हैं और शाम को छात्रों की भारी भीड़ होती है। इसी प्रकार विस्फोट का तीसरा स्थल ओपेरा हाउस का महत्व हीरा व्यवसाय से था। तो कुल मिलकार विस्फोट का तात्कालिक निशाना अधिकाधिक लोग एवं कारोबार था तथा सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की आकांक्षा इससे जुड़ी थी। गृहमंत्री कह रहे हैं कि तीनों विस्फोट छोटे थे, लेकिन दादर का विस्फोट कुछ मिनट पहले हुआ होता तो न जाने कितनों की जानें जातीं और कितने घायल होते।


यह कहने में कोई अतिवाद नहीं है कि आंतरिक सुरक्षा विशेषकर वैश्विक जेहादी आतंकवादी हमलों के संदर्भ में सर्वाधिक ध्यान देने, सुरक्षा ढांचा सशक्त करने तथ सतत सतर्क रहने के बावजूद सरकार आतंकवादियों से आम नागरिक के जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित करने मे विफल है। चिदंबरम कुछ भी कहें, ये हमले बिल्कुल सुरक्षा चूक के प्रमाण हैं। आतंकवादी हमला करने वाले हैं, यह खबर कुछ ही दिनों पूर्व खुफिया के हवाले से ही देश भर के समाचार पत्रों प्रकाशित हुई थी। यानी खबर सामने आने के बाद आतंकवादियों ने हमला करके खून और विध्वंस का कोहराम मचा दिया।


आखिर इसकी जिम्मेवारी किसकी होगी? किसी को तो इतनी क्षति की जिम्मेवारी लेनी होगी। 26 नवंबर 2008 के बाद खुफिया तंत्र में आमूल बदलाव का दावा किया गया और यह सच है कि खुफिया ढांचे में बदलाव हुआ। मल्टी एजेंसी केंद्र को साकार करना एक महत्वपूर्ण कदम था। इससे उम्मीद की गई थी कि किसी कोने की एक छोटी सूचना भी नजर से बच नहीं पाएगी और बहुएजेंसी केंद्र के कारण यह उपयुक्त स्थान पर पहुंच जाएगा। हम यह न भूलें कि पिछले साल दिसंबर में वाराणसी विस्फोट के बाद चिदंबरम ने ही खुफिया सूचना पर कार्रवाई न करने का आरोप उत्तर प्रदेश सरकार पर लगाया था। इसलिए यह संदेह पैदा होना स्वाभाविक है कि महाराष्ट्र में अपनी सरकार होने के कारण उन्होंने ऐसा बयान दिया। हालांकि गृहमंत्री का बयान अपने बचाव के अलावा कुछ नहीं है, किंतु मान लीजिए उनके अनुसार खुफिया सूचना नहीं थी तो क्यों? देश को इसका जवाब मिलना चाहिए कि नवंबर 2008 के बाद बदला गया हमारा खुफिया महकमा क्या कर रहा था? अगर वह ऐसे सुनियोजित साजिश को पकड़ नहीं सका तो फिर ऐसे खुफिया तंत्र के होने का कोई अर्थ नहीं है। वास्तव में इस बीच आतंकवाद के संदर्भ में खुफिया सूचना क्या-क्या आई, इन्हें किस प्रकार विश्लेषित कर कहां और कब भेजा गया, इन सबकी जानकारी देश को चाहिए। उसने जो भी सूचनाएं भेजी उस पर क्या कार्रवाई हुई?


इस आलेख के लेखक अवधेश कुमार हैं.


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