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संसद में असंसदीय व्यवहार

जागरण मेहमान कोना
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Raghuvansh Prasad Singhसंसद की कार्यवाही सुचारु रूप से न चलने के कारणों का उल्लेख कर रहे हैं डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह


संसद देश का दर्पण है। देश की हालात का प्रतिरूप संसद में दिखाई देता है। पिछले कुछ समय से संसद में जो गतिरोध और हंगामा हो रहा है, उससे जनमानस में संसद के प्रति नाउम्मीदी घर कर रही है। संसद एक कड़ाही की तरह है जिसमें सब्जियों को काटकर, धो-पोंछकर, कड़ाही में तेल-मसाला डालकर स्वादिष्ट भोजन तैयार किया जाता है। संसद में देश भर से चुने हुए प्रतिनिधि विभिन्न समस्याओं पर बहस-चर्चाएं करते है और कानून बनाते है। संसद की कार्यवाही में बार-बार पड़ने वाली बाधाओं से देश में संसद के खिलाफ वातावरण बनाने की कोशिश होती देखी गई है। संसद में हो रहे खर्च के दुरुपयोग पर सांसदों की जमकर आलोचना की जाती है और काम नहीं तो वेतन नहीं की नसीहत दी जाती है। संसद में सांसदों से विद्यालय के छात्रों की तरह के आचरण की अपेक्षा करना उचित नहीं है, क्योंकि उन्हें अपने क्षेत्र की जनता की अपेक्षाओं और पार्टी की नीतियों के अनुसार कार्य करना पड़ता है।


सदन को सुचारु रूप से चलाने के लिए कड़े नियम बने हुए हैं, जैसे सदन की कार्यवाही में बाधा डालने से सदस्य के तत्काल निलंबन और सदन से निष्कासन आदि के प्रावधान है। विधानसभा के सदनों में इसे कभी-कभार लागू भी किया गया है, लेकिन संसद में ये नियम शायद ही कभी लागू किए जाते है। सदस्यों के समूह के खिलाफ ऐसी कार्रवाई से परहेज करने की परिपाटी रही है। हालांकि पूर्व में कई बार सभी दलों के सदस्यों और नेताओं ने सदन की कार्यवाही में बाधा नहीं डालने और वेल में नहीं जाने का संकल्प भी व्यक्त किया है, लेकिन उसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है। सदन की कार्यवाही में बाधा डालने और सदन के अंदर घोर अव्यवस्था के कारण सदन की कार्यवाही बाधित होने की बड़ी आलोचनाएं होती हैं, लेकिन इसके कारणों पर कभी चर्चा नहीं की जाती। बार-बार सदन की कार्यवाही बाधित होने पर नसीहतें तो दी जाती है, किंतु इसे रोकने के उपाय नहीं तलाशे जाते। देश की जनता चाहती है कि सदन की कार्यवाही सुचारु रूप से चलाने के लिए सभी दलों के नेताओं को नियमों को सख्ती से लागू करना चाहिए।


सदन सुचारु रूप से चले इसके लिए पीठासीन अधिकारी, सरकार, विपक्ष और मीडिया चारो की भूमिका है। यदि ये सब अपना कार्य सही ढंग से करें तो सदन की कार्यवाही में बाधा न्यूनतम हो जाएगी। सरकार [पक्ष], विरोधी दल [विपक्ष], आसन [निष्पक्ष] और मीडिया [निष्पक्ष] सब ठीक कार्य करें तो सदन की कार्यवाही ठीक चलेगी। इन चारों की भूमिका के कार्यो का मूल्यांकन अत्यावश्यक है। सदन की कार्यवाही में बाधा के प्रमुख कारण है सरकार की संवेदनशीलता और जवाबदेही में कमी और सदन के प्रबंधन में कमी। उलझनों के समाधान में नेता अहम भूमिका निभाते है। इसके बिना भी सदन की कार्यवाही में बाधाएं उत्पन्न होती हैं।


यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सदन की साल में सौ दिनों से कम बैठकें न हों। देश में ज्वलंत मुद्दों पर वाद-विवाद के लिए सरकार आनाकानी न करे, सदन में उठाए गए मामलों पर उचित कार्रवाई हो, समस्याओं के समाधान को सरकार मूंछ की लड़ाई न बनाए और अड़ियल रुख न अपनाए तथा विपक्ष को विश्वास में लेकर सदन की कार्यवाही में सहयोग करे।


15वीं लोकसभा का एक संपूर्ण सत्र 2जी घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग को लेकर बाधित होने के पश्चात सरकार ने इस मांग को स्वीकार किया। यह सरकार की अव्यवस्था का उदाहरण है। ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। जो सरकार सदन को सुचारु रूप से चलवाने में अक्षम हो, वह सुशासन कैसे दे सकती है। सदन के सुचारु संचालन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पीठासीन अधिकारी की है। निष्पक्षता का गुण होने के कारण उसकी सभी दलों में स्वीकार्यता अधिक होती है। वह अपनी कार्यकुशलता के बल पर सदन को सुचारु रूप से चलाने में सहयोग दे सकता है।


घोर अव्यवस्था की स्थिति में सदन की कार्यवाही स्थगित करते ही चैंबर में नेताओं की बैठक अनिवार्य रूप से बुलाकर कार्यवाही सुचारु रूप से चलाने के लिए बार-बार प्रयत्न करना उचित नहीं है। देखा जाता है कि 11 बजे पूर्वाह्न से 12.00 बजे फिर 2 बजे से अपराह्न तक या अगले दिन तक सदन को स्थगित कर दिया जाता है, जो उचित नहीं है। मध्यावकाश से पहले 15 मिनट से अधिक और मध्यावकाश के बाद एक घंटा से अधिक तक कार्यवाही स्थगित न हो। ज्वलंत और तात्कालिक मुद्दे उठाने से सदस्य वंचित न हों। इन उपायों के इस्तेमाल से सदन की कार्यवाही में बाधा को न्यूनतम किया जा सकता है।


15वीं लोकसभा में विपक्षी दलों के कारण भी विषम परिस्थिति पैदा हो रही है। तीन दल ऐसे है जो बिना समर्थन मांगें लिखित में समर्थन लेकिन व्यवहार में विपक्ष की भूमिका का निर्वाह कर रहे है। विपक्षी दलों और उनके नेताओं का संपूर्ण विपक्ष को समन्वय में लेकर चलने की जगह केवल अपने दल के नेता के रूप में कार्य करने से भी इस सदन में ज्यादा बाधा पड़ रही है। सदन की कार्यवाही में मीडिया की भूमिका भी कम नहीं है। सदन के अंदर कार्यवाही में बाधा की कार्रवाई को ज्यादा उछालना और सार्थक वाद-विवाद को अधिक तरजीह न देने के कारण भी सदन की कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाने में दिक्कत खड़ी होती है।


इन परिस्थितियों में विपक्ष का कार्य है सरकार की कमियों और जनता की समस्याओं को उजागर करना और कभी-कभी सरकार की कमजोर नस को दबाकर मनचाही मांगें मनवा लेना। उसी क्रम में कभी सदन का बहिष्कार, आक्रामक बहस, सुझाव आदि के साथ सामान्य विवाद, काम रोको प्रस्ताव पर बहस, अविश्वास प्रस्ताव पर वाद-विवाद, मतदान आदि के अलावा कभी-कभी सदन की कार्यवाही में बाधा डालना भी संघर्ष के आयाम हैं।


सदन के बाहर सत्याग्रह, जेल भरो आंदोलन की तरह ही सदन के अंदर नियम का उल्लंघन कर दंडात्मक कार्यवाही भोगने के लिए तैयार रहना विपक्ष अपना धर्म समझता है। तभी जनता उससे विद्यालय के छात्र की तरह व्यवहार की अपेक्षा करती है। यह व्यवहार जीवंत लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली को मजबूत करने वाला नहीं है।


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