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सवाल सम्मान की गरिमा का भी

जागरण मेहमान कोना
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अब खेल की दुनिया में उत्कृष्ट योगदान देने वाले खिलाडि़यों को भी भारत रत्न दिया जाएगा। सरकार की तरफ से किए गए हालिया फैसले के बाद अब यह तय लग रहा है कि अपने खास और चहेते खिलाडि़यों को भारत रत्न दिलवाने के लिए जमकर खेल होगा। अभी कुछेक ही दिन गुजरे हैं, जबकि सरकार ने नियमों में फेरबदल करके देश के इस सर्वोच्च सम्मान से खेल की दुनिया की नामचीन शख्सियतों को भी पुरस्कृत करने का अहम फैसला लिया। बस, सरकार के फैसले के तुरंत बाद से मांग शुरू हो गई कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद और सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिले। मतलब यह की क्रिकेट के भगवान को भी पुरस्कार देने की मांग हो रही है। यानी उनकी महानता तब ही साबित होगी, जब उन्हें भारत रत्न से नवाजा जाएगा। गांधी जी को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला तो क्या इससे वे कम महान माने जाएंगे? महत्वपूर्ण यह है कि नोबेल पुरस्कार देने वाली कमेटी ने उन्हें इस सम्मान से नवाजने के लिए नामित करने के बाद भी उन्हें इसके लायक नहीं माना। बापू को 1937, 1938 और 1939 में लगातार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया।


पुरस्कार नहीं मिला तो क्या बापू छोटे हो गए? 125 से ज्यादा देशों की राजधानियों के मुख्य चौराहों पर लगी उनकी आदमकद मूर्ति या अर्ध प्रतिमा पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को उनके शांति और अहिंसा के सिद्धातों के प्रति सोचने के लिए बाध्य करती है। मेजर ध्यानचंद के हक में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और हॉकी के प्रशंसक शिवराज सिंह चौहान सबसे बुलंद आवाज में मांग करते रहे हैं। अब मेजर के हक में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन भी सामने आए हैं। वह भी कह रहे हैं कि सचिन से पहले मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दो। उधर, टीम इंडिया के साथ ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गए सचिन को भारत रत्न देने की मांग करने वालों की तादाद ध्यानचंद से अधिक है। केंद्रीय मंत्रियों से लेकर तमाम खेल समीक्षक और दूसरे लोग उनके पक्ष में सामने आ रहे हैं। अब नई मांग अभिनव बिंद्रा को लेकर शुरू हो गई। नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने केंद्रीय खेलमंत्री अजय माकन को पत्र लिखकर कहा है कि चूंकि बिंद्रा ने ही देश को ओलंपिक खेलों में पहला स्वर्ण पदक दिलवाया, इसलिए उन्हें भारत रत्न देने में विलंब नहीं होना चाहिए। बहरहाल, अभी इंतजार कीजिए। आप देखेंगे कि दूसरे बहुत से खिलाडि़यों को लेकर भी इसी तरह की मांग होगी। कुछ खेल समीक्षक गुजरे दौर के महान बिलियर्ड खिलाड़ी विल्सन जोन को भारत रत्न देने की मांग करने लगे हैं। दरअसल, वे भारत के पहले खिलाड़ी थे, जिन्होंने किसी खेल में विश्व चैंपियनशिप जीती थी।


विल्सन जोन बिलियर्ड के उम्दा खिलाड़ी थे। जोन के हक में कहा जा रहा है कि जब मरणोपरांत भी किसी खिलाड़ी को भारत रत्न देने का फैसला हो गया तो फिर इसकी शुरुआत जोन से ही हो। वे एंग्लो इंडियन समुदाय से संबंध रखते थे। विल्सन जोन ने 12 बार राष्ट्रीय बिलियर्ड चैंपियनशिप और दो बार विश्व खिताब जीता। उन्होंने विश्व खिताब पर साल 1963 और 1964 में कब्जा जमाया। जाहिर है, यह कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है। पर इस तमाम बहस के बीच आश्चर्य इसलिए भी हो रहा है कि विश्वनाथन आनंद को भारत रत्न देने की कोई मांग नहीं कर रहा।


शतरंज के ग्रैंड मास्टर आनंद वर्तमान में विश्व शतरंज चैंपियन हैं। वे साल 2007 से शतरंज की दुनिया के निर्विवाद चैंपियन हैं। उन्होंने साल 2008 में व्लादिमिर क्रेमिक और साल 2010 में वेसिलिन तोपालोव को हराकर अपने खिताब को अपने पास ही रखा। अब अगले साल उन्हें अपने खिताब को फिर से बचाना होगा, जब उन्हें बोरिस गेलफेंड से टक्कर मिलेगी। जिस खेल को सारी दुनिया खेलती और देखती है, उस खेल के चैंपियन को लेकर हम बात भी नहीं कर रहे। यह तो अन्याय है। मेजर ध्यानचंद, सचिन तेंदुलकर, विल्सन जोन और आनंद की उपलब्धियों पर पूरे देश को नाज है। इनके अलावा भी बहुत से अन्य खिलाडि़यों ने अपने जौहर दिखाकर तिरंगे को बुलंद रखा है। मिल्खा सिंह, श्रीराम सिंह, राहुल द्रविड़, चुन्नी गोस्वामी, बलबीर सिंह, माइकल फरेरा समेत तमाम खिलाड़ी इस सूची में शामिल हो सकते हैं। बेहतर यह होगा कि हम अपने यहां किसी खिलाड़ी को भारत रत्न देते वक्त न तो किसी खिलाड़ी के हक में सियासत करें और न ही पैरवी। अगर हमने यह किया तो इतने बड़े सम्मान की गरिमा धूल में ही मिल जाएगी।


लेखक विवेक शुक्ला स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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