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ऐसे कैसे रुकेंगे तेजाब हमले

जागरण मेहमान कोना
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Alka Aryaहाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति पर तेजाब से हमले को एक अलग अपराध का दर्जा मिल जाएगा। ऐसे अपराधों के लिए अलग कानून होगा और ऐसा जुर्म साबित होने पर अधिकतम दस साल तक की सजा हो सकती है। यह एक स्वागत योग्य कदम है और इसकी मांग एक लंबे अरसे से की जा रही थी। फिर भी यह सवाल अपनी जगह बरकरार है कि तेजाब की खुलेआम बिक्री पर प्रतिबंध कब लगेगा।


देश के तमाम महिला संगठन अलग कानून बनाने के साथ-साथ इसकी खुलेआम बिक्री पर भी रोक लगाने के पक्ष में हैं। जिस तरह से बाजार में आसानी से उपलब्ध तेजाब का इस्तेमाल महिलाओं के खिलाफ किया जा रहा है, उसके मद्देनजर सरकार को तेजाब बेचने के लिए लाइसेंस जारी करना चाहिए, ताकि इसकी खुलेआम बिक्री पर रोक लग सके। एक सवाल यह भी है कि इस तरह के प्रतिबंध के बिना क्या अलग से कानून बनाने का मकसद पूरा हो पाएगा? अपने देश में हालात ऐसे हो गए हैं कि बीते कई सालों से पुरुष लड़कियों और महिलाओं से बदला लेने के लिए तेजाब का इस्तेमाल ज्यादा करने लगे हैं।


एकतरफा प्यार को खारिज करने के दुस्साहस की सजा उसके चेहरे या बदन पर तेजाब फेंक कर दी जा रही है। बेशक ऐसे तेजाबी हमलों से महिलाओं की मौत तो नहीं होती, लेकिन विद्रूपता और विकृति की वजह से उसकी तमाम जिंदगी मौत से कम नहींहोती। पुरातन समाज में मर्द महिलाओं से बदला लेने के लिए उनकी नाक काट देते थे। मर्द महिला को ऐसी क्रूरतम सजा देना चाहते हैं कि पीड़त जिंदा रहते हुए भी जिंदा न रह सके। तेजाब हमला नाक काटने की सजा का नया वर्जन है। हालांकि अपने देश में तेजाब हमलों से पीडि़त महिलाओं के अधिकृत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, पर अखबारों में ऐसी खबरें अक्सर पढ़ने को मिलती हैं। ऐसी घटनाओं के बढ़ने के पीछे एक अहम वजह स्त्री विरोधी हिंसा के इस क्रूर अपराध के खिलाफ अलग से किसी कानून का नहीं होना भी है।


मौजूदा स्थिति यह है कि तेजाब के हमले भारतीय दंड संहिता यानी आइपीसी की धारा 329, 322 और 325 के तहत दर्ज होते हैं। इसके अलावा पीडि़तों के इलाज, पुनर्वास और काउंसलिंग के लिए भी सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि ऐसे हादसों में पीडि़त को अपूरणीय क्षति उठानी पड़ती है। इन हादसों का मन-मस्तिष्क पर लंबे समय तक विपरीत प्रभाव बना रहता है। तेजाब के हमलों के कुप्रभावों पर हुए अध्ययन यह दर्शाते हैं कि तेजाब पीडि़त इंसान की त्वचा के साथ-साथ भीतर भी असर छोड़ता है। आंखों पर तेजाब पड़ने से आंखों की रोशनी चली जाती है।


हड्डियां वक्त से पहले कमजोर पड़ जाती हैं। कई बार सर्जरी कराने से प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। तेजाब से जले हुए इंसान का इलाज बहुत महंगा होता है और कई बार सर्जरी कराने के बाद भी पीडि़त का विकृत चेहरा या बदन पूरी तरह ठीक नहीं हो पाता है। फिर काम करता है हमारे समाज का लैंगिक पूर्वाग्रह। इस मानसिकता के चलते परिजन पीडि़त का पूरा इलाज कराए बिना ही उसे अस्पताल से घर ले आते हैं। समाज में भी ऐसी हिंसा की शिकार लड़कियों के प्रति उतनी संवेदनशीलता नजर नहीं आती, जितनी हिंसा की अन्य अभिव्यक्ति के प्रति दिखाई देती है।


ऐसे ही महतवपूर्ण पहलुओं के मद्देनजर देश के महिला संगठनों और राष्ट्रीय महिला आयोग ने सरकार से तेजाब के हमलों के लिए अलग से कानून बनाने की मांग की थी। राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस सांसद गिरिजा व्यास की राय में भी यह एक क्रूर अपराध है और इसके लिए अलग से कानून होना चाहिए। राष्ट्रीय महिला आयोग ने सरकार से अनुशंसा की थी कि ऐसा अपराध करने वाले को कम से कम 10 और अधिकतम उम्रकैद की सजा मिलनी चाहिए। आयोग ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए यह भी अनुशंसा की थी कि किसी पर तेजाब फेंकने की कोशिश करने वालों को भी कम से कम सात साल की सजा होनी चाहिए।


बावजूद इसके केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जिस प्रस्तावित कानून को मंजूरी दी है, उसमें जुर्म साबित होने पर अधिकतम दस साल की सजा का ही प्रावधान रखा गया है। हमारे देश में ऐसे पीडि़तों का इलाज करने वालों की कमी भी चिंता का पहलू है। देश में करीब सात सौ प्लास्टिक सर्जन और 1000 बिस्तर जले हुए रोगियों के लिए उपलब्ध हैं। गौर करने वाली बात यह है कि अधिकतर पीडि़त महिलाएं हिंसा इस भय और आशंका से चुप्पी साधे रहती हैं कि दोबारा उनके साथ ऐसी ही घटना न हो। हालांकि कुछ महिला संगठन इस खतरनाक चुप्पी को तोड़ने में कामयाब रहे हैं। बेंगलूर की कैंपेन एंड स्ट्रगल अगेंस्ट एसिड अटैक ऑन वुमन नाम का संगठन तेजाब हमलों की शिकार महिलाओं-युवतियों को चुप रहने की बजाय अदालत में जाने की सलाह ही नहीं देता, बल्कि कई तरह से उनकी मदद भी करता है।


महिलाओं के खिलाफ तेजाब का इस्तेमाल हमारे पड़ोसी मुल्कों बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी किया जाता है या यों कहें कि विभाजन से पहले वाला सारा हिंदुस्तान इस संदर्भ में एक जैसा ही है। बांग्लादेश में भी ऐसे हमलों का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहे है। महिलाओं के खिलाफ इस हिंसा को देखते हुए वहां की सरकार पर भी महिला संगठनों ने दबाव बनाया और सरकार ने 2002 में यह अपराध करने वालों के खिलाफ सख्त सजा वाला और तेजाब की खुलेआम बिक्री पर रोक लगाने वाला कानून पारित कर दिया। पाकिस्तान में भी महिलाओं पर तेजाब फेंकने की घटनाएं अखबारों में छपती रहती हैं। इसी साल वहां भी महिलाओं और पर तेजाब फेंकने के जुर्म के खिलाफ एक कानून संसद में पारित हुआ। लेकिन इस कानून के पारित होने के कुछ दिन बाद ही एक खबर आई कि एक पुरुष ने तलाक मांगने वाली अपनी पत्नी पर तेजाब डालकर उसका चेहरा विकृत कर दिया। उसका बयान चौंकाने वाला था कि महिलाएं बेवफाई करेंगी तो उनके साथ ऐसा ही होगा। इस तरह के विचार महिलाओं की मुश्किलें और बढाते हैं और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को शह देते हैं। कानून के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वालों और पीडि़तों पर क्या गुजरती होगी? ऐसे बयान देने वालों पर भी कानून का शिकंजा कसना जरूरी है।


अलका आर्य स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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