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ऐसे थे अपने बाबा साहब

जागरण मेहमान कोना
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Sheoraj Singhडॉ. अंबेडकर स्मरणीय हैं। उन्होंने देश की एकता कायम करने के लिए पूना पैक्ट किया और जिन्ना की तरह दलितों के लिए देश के विभाजन की जिद नहीं की। धर्म परिवर्तन के मौके पर अछूतों को हिंदू धर्म से दूर ले जाने वाले ईसाई धर्म या इस्लाम को उन्होंने नहीं चुना था। इस प्रश्न पर अंबेडकर ने स्वामी अछूतानंद के आदि हिंदू और आदि धर्मी, जिसे 1929 की जनगणना में जगह मिल चुकी थी, उसे भी नहीं अपनाया था। मराठी समाचार पत्र दैनिक मराठा ने नौ दिसंबर 1956 के अंक में डॉ. अंबेडकर की मृत्यु के दो दिन बाद एक कविता प्रकाशित की थी- अग्निवर आजन्म प्रकाशनु, अग्निवर चिरनिद्राघेशी/विझेलही चिता परंतु, प्रकाश राहिल तुझा चिरंतन। यानी जीवन भर आग पर ही प्रकाशित होते रहे, आग पर ही चिर निद्रा ले रहे हो, यह चिता तो बुझ जाएगी, लेकिन तुम्हारा प्रकाश चिरंतन बना रहेगा। 14 अप्रैल 1891 को महू छावनी, महाराष्ट्र (अब मध्य प्रदेश में) जन्मे बालक भीमराव की परवरिश सैनिक पिता की देख-रेख में हुई। अंग्रेजी विधा का महत्व उनके पिता ने ही उनके जेहन में डाला था। डॉ. अंबेडकर ने आगे चलकर देश के स्वतंत्रता आंदोलन को गंभीरता से समझा और पाया कि चौथाई भारत की आजादी तो छुआछूत की भावना रखने वाले स्पृश्य हिंदुओं के पैरों तले दबी है। अस्पृश्यता और गैरबराबरी के रहते दलित भाइयों को कोई आजादी नहीं मिलेगी। इसलिए मनसा वाचा कर्मणा, अपना जीवन तो सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध ही लगना है।


सामूहिक चेतना का निम्न स्तर


अंग्रेजों से लड़ने वाले नेताओं की तो भारत में कोई कमी नहीं है, लेकिन अछूत बनाकर गुलामों से भी बदतर रखने वालों के जुल्म और उनकी ज्यादतियां रोकने वाला कोई नहीं है। पर अछूत मुक्ति कोई बाहर से आकर नहीं करा सकता। इसके लिए इन लाखों मूक-बहिष्कृतों को अपनी स्थिति का बोध करना होगा। दुखद यह कि अस्पृश्यता की भयंकरता ने उन्हें अक्षर ज्ञान तक नहीं होने दिया है। जो थोड़े बहुत पढ़े हैं, वे मातृभाषा मराठी तक ही सीमित हैं। डॉ. अंबेडकर ने मराठी में ही अखबार निकालने का निश्चय किया। 1920 से 40 का यह वही समय था, जब हिंदी में स्वामी अछूतानंद अपना आदि हिंदू पत्र प्रकाशित कर रहे थे और पंजाब में बाबू मंगूराम मंगोवालिया आदिडंका अखबार निकाल रहे थे। शूद्र राजा क्षत्रपति शाहू महाराज के ढाई हजार के एकमुश्त अनुदान से मूकनायक पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ। महाराज की अंबेडकर से मुलाकात कराने वाला महराज का ही एक कर्मचारी था। महाराज ने 1902 में अपने राजसंस्थान में अछूतों को आरक्षण लागू किया था, उस नीति के तहत दत्तोबा संतराम पवार नामक एक अछूत ने मुलाकात कराई थी और उसी की सलाह पर महाराज ने न केवल मूकनायक को आर्थिक मदद दी थी, बल्कि महराज अंबेडकर को अपने साथ माण गांव की विशाल सभा में ले गए। उनका भाषण सुनकर कहा कि अब अछूतों को उनका सच्चा नेता मिल गया है। प्रवेशांक 31 जनवरी-1920 को आया। यह पत्र मराठी पाठकों की ही सेवा कर सका, वह भी अधिक दिन नहीं चल पाया। वर्ष 1927 में बहिष्कृत भारत पत्र आरंभ किया और उसके बाद समता और आखिर में प्रबुद्ध भारत पत्र प्रकाशित किया।


देश को जब आजादी मिलने का अवसर आया, तब डॉ. अंबेडकर ने कम्युनल अवार्ड के तहत अछूतों के अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के सवाल पर अछूतों को पृथक निर्वाचन की मांग कर दी। अंग्रेजों ने कहना शुरू किया कि पहले आप अपने देश वालों के मानवीय अधिकार दो, उसके बाद आजादी की मांग करो। गोलमेज सम्मेलन लंदन के बाद गांधीजी हरिजन अखबार 1933 निकालने को मजबूर हुए। उसी वक्त डॉ.अंबेडकर अपना जनता अखबार निकाल रहे थे। दोनों पत्रों में एक ही विषय अस्पृश्यता पर स्पष्ट अंतर आ रहे थे। प्रह्लाद केशव आत्रे ने 13 अप्रैल 1947 को अपनी मराठी पत्रिका अंबेडकर विशेषांक प्रकाशित किया। उन्होंने स्वीकार किया कि हम पत्रकारों ने अंबेडकर को गलत समझा और उनका साथ नहीं दिया। पर अंबेडकर ने पूना पैक्ट करके देश को टूटने से बचा लिया। यों उनकी देशभक्ति पर उंगली नहीं उठाई जा सकती। अब बाबा साहब के साथ कहानियां जोड़ दी हैं। मसलन, एक पत्रकार ने देश के हालात पर बात करने के लिए गांधीजी से समय मांगा तो उन्होंने सुबह 11 बजे का समय दिया और मोहम्मद अली जिन्ना से वक्त मांगा तो उन्होंने सायं तीन बजे का समय दिया और जब डॉ. अंबेडकर से समय मांगा तो उन्होंने कहा, जब आ सकें, तब आइए। मैं आधी रात भी जागता और काम करता हुआ मिलूंगा। इस घटना का जिक्र करते हुए माना यह जाता है कि यह इसलिए संभव था कि गांधी जी और मोहम्मद जिन्ना का समाज जागा हुआ था। इसलिए उनका नेतृत्व सो रहा था।


अंबेडकर का अछूत समाज सोया पड़ा था, इसलिए नेतृत्व जाग रहा था। असल बात यह थी कि अंबेडकर को भी मुख्यधारा के मीडिया की जरूरत थी। उनके पास अनुभव था। जब मूकनायक का विज्ञापन पैसे देकर भी एक हिंदू अखबार ने नहीं छापा था। डा. अंबेडकर ने देश को आधुनिक और डेमोक्रेटिक बनने में बड़ा योगदान दिया। संविधान के वे जनक कहे जाते हैं। हिंदू महिलाओं को संपत्ति, समाज और परिवार में समानता दिलाने तथा तलाक और पुनर्विवाह के लिए कानून बनाने, हिंद कोड बिल संसद में पेश करने और उसके लिए कानून मंत्री पद से त्यागपत्र देकर अपनी प्रतिबद्धता सिद्ध करना हमारे आधुनिक भारत की बड़ी घटनाएं हैं। अफसोस के साथ उन्होंने कहा कि चार साल जीने के बाद इसकी हत्या कर दी गई और उस पर किसी ने आंसू नहीं बहाए। हालांकि दलितों की विवाह व्यवस्था, तलाक और भरण-पोषण के सवाल दलितों घरों के समाधान सिद्ध नहीं हुए। हमारे लोकतंत्र में जैसे-जैसे संविधान का महत्व बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे डॉ. अंबेडकर की प्रासंगिकता भी बढ़ती जा रही है।


श्‍यौराज सिंह बेचैन दिल्ली विवि में प्रोफेसर हैं


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