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एक लंबे इंतजार के बाद आखिरकार वायुसेना के लिए बहुउद्देश्यीय भूमिका वाले 126 लड़ाकू विमानों के खरीद की रक्षा सौदे पर सरकार ने अपनी सहमति दे दी। इसका ठेका फ्रांस की विमान निर्माता कंपनी दसाल्ट को मिला है। इन विमानों के लिए जारी अनुरोध प्रस्ताव के मुताबिक इस सौदे को हासिल करने वाली कंपनी को 18 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति हस्ताक्षर होने के बाद तीन वर्षो के अंदर करनी होगी। बाकी 108 विमान हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, बेंगलूरु में तैयार किए जाएंगे। राडार की पकड़ में न आने वाले ये विमान मिग-21 विमानों की जगह लेंगे। यह सौदा लगभग 52 हजार करोड़ रुपये का है। यह सौदा लगभग दस अरब डॉलर की लागत अनुमान के साथ शुरू हुआ था, लेकिन जब खरीदारी को व्यावहारिक रूप में अंजाम दिया जाएगा तो अंतिम विमान की आपूर्ति होने तक यह राशि बढ़कर 20 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है जो लगभग एक लाख करोड़ रुपये के लगभग बनता है। वर्ष 2001 में वायुसेना ने बहुउद्देश्यीय उपयोग वाले 126 लड़ाकू विमान खरीदे जाने की इच्छा जताई थी। वर्ष 2005 में रक्षा मंत्रालय ने खरीद के लिए टेंडर जारी किए, लेकिन बाद में कुछ परिस्थितियों के कारण टेंडर वापस ले लिए गए।
अगस्त 2007 में पुन: टेंडर जारी किए गए जिसके उत्तर में विश्व की छह बड़ी विमान निर्माता कंपनियों ने अपनी तरफ से निविदाएं भेजी। इनमें स्वीडिश कंपनी साब का 39 ग्रिप्पन , अमेरिकी कंपनी बोइंग, नार्थ रोप ग्रुमन, जनरल इलेक्टि्रक व ह्यूज का एफ/ए-18 हार्नेट व एफ-16, रूसी कंपनी मिग-35 के अलावा ब्रिटेन, जर्मनी, इटली व स्पेन की कंपनियों द्वारा मिलकर बनाई गई यूरोपीय कंसोर्टियम कंपनी की यूरोफाइटर तथा फ्रांस की दसाल्ट एविएशन कंपनी की ओर से राफेल निविदाकर्ताओं में शामिल था। इन कंपनियों की निविदाओं को अप्रैल 2010 से अप्रैल 2011 तक वायुसेना ने 643 पैमानों पर परखा व जांचा। इस प्रकिया में सभी प्रतिस्पर्धी लड़ाकू विमानों को सर्वाघिक ऊंचाई वाले लेह क्षेत्र में, अधिक तापमान वाले जैसलमेर व बेहद उमस वाले इलाके बेंगलूरु में परीक्षण किया गया। इन परीक्षणों के बाद यूरोफाइटर व राफेल मुकाबले में सबसे आगे आए। इन कंपनियों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में 4 नवंबर, 2011 को विमानों के लिए दिए गए निविदा मूल्य वाले लिफाफे खोले गए और कीमतों का आकलन विमान की प्रति यूनिट कीमत, इंजन की शक्ति, तकनीकी हस्तांतरण तथा 40 साल के रखरखाव पर आने वाले खर्च को ध्यान में रखते हुए किया गया। इस प्रक्रिया में अंतिम बाजी फ्रांस की कंपनी के हाथ लगी।
राफेल की रफ्तार 2,390 किलोमीटर प्रति घंटा तथा उड़ान की क्षमता 40 से 60 हजार फीट ऊंचाई तक है। इसकी लंबाई 15.27 मीटर, ऊंचाई 5.34 मीटर व इसके विंगस्पैन 35.4 फीट है। दो सीट वाले इस विमान का वजन 14,016 किलोग्राम व रेंज एक हजार नॉटिकल मील है। यह 24,500 किलोग्राम तक के विस्फोटक या वजन ले जाने में सक्षम है। इसमें आरबीआइ 2 राडार लगा हुआ है जिसकी रेंज 150 किलोमीटर तक है। दसाल्ट कंपनी रेंज सीमा को बढ़ाकर 170 किलोमीटर तक करने को तैयार है। इसके पंखे अधिक बड़े नहीं हैं इसलिए यह कम ऊंचाई पर ज्यादा तेज गति से उड़ सकता है। यह किसी भी मौसम में उड़ने भरने में सक्षम है जो वायुसेना तथा नौसेना दोनों के लिए उपयोगी है और जमीन से हवा और हवा से जमीन पर हमला करने वाली मिसाइलों से सुसज्जित है। इसमें ईधन भरने के पांच टैंकों के अलावा रिफ्यूलिंग सिस्टम भी लगा हुआ है। इसमें अत्याधुनिक स्टील्थ विमानों की तरह राडार सिस्टम है और इनमें आधुानिक वायस कंट्रोल सिस्टम लगा हुआ है। इसके डैने इस तरह के हैं कि विमान को कभी भी किसी तरफ मोड़ा जा सकता है। निश्चित है कि इन विमानों के शामिल होने से वायु सेना मजबूत होगी और इसकी मारक क्षमता काफी बढ़ जाएगी।
लेखक लक्ष्मीशंकर यादव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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