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चीनी का एक चम्मच आपकी चाय को मीठा करता है, लेकिन साथ-साथ यह आपके ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रोल में भी वृद्धि करती है। चीनी दिल के साथ-साथ लीवर को भी जोखिम में डालती है। चीनी-प्रेमियों को अमेरिकी वैज्ञानिकों की ये कड़वी बात अच्छी नहीं लगेंगी। सैन फ्रैसिस्को स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के रिसर्चरों ने प्रतिष्ठित नेचर पत्रिका में प्रकाशित अपनी अध्ययन रिपोर्ट में चीनी को एक जहर की संज्ञा दी है। रिसर्चरों ने चीनी के बारे में इकट्ठा हो रहे नए वैज्ञानिक साक्ष्यों पर गौर करने के बाद इस बात को जोर देकर कहा है कि यदि जनता के स्वास्थ्य की हिफाजत करनी है तो सरकारों को चीनी पर वैसे ही नियंत्रण लगाने चाहिए, जो इस समय विभिन्न सरकारों द्वारा शराब और तंबाकू पर लगाए जाते हैं। उनका कहना है कि चीनी सहित विभिन्न स्वीटनर मनुष्य के शरीर के लिए इतने ज्यादा टॉक्सिक हैं कि उनके उपभोग पर कड़े नियंत्रण जरूरी है। दुनिया में पिछले 50 वर्षो में चीनी की खपत बढ़कर तिगुना हो चुकी है। विभिन्न देशों में डायबिटीज और मोटापे की बीमारी चीनी के बढ़ते उपभोग की वजह से ही फैल रही है।
विश्व स्वास्थ्य सगठन के मुताबिक दुनिया में मोटापे के शिकार लोगों की संख्या कुपोषित लोगों से बहुत ज्यादा है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। मोटापा अधिकांश देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। मनुष्य के इतिहास में यह पहला अवसर है जब संक्रामक बीमारियों की तुलना में खानपान से जुड़ी बीमारियों से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। इनमें हृदय रोग, डायबिटीज और कैंसर शामिल हैं। यूसीएसएफ़ के रिसर्चरों के अनुसार चीनी शरीर की अंदरूनी क्रियाओं अथवा मेटाबोलिज्म में फेरबदल करती है। यह शरीर के अंदर जरूरी हारमोनों के सामयिक रिसाव को भी प्रभावित करती है। कुछ लोग चीनी को खाली केलोरी मानते हैं, लेकिन रिसर्चरों का कहना है कि चीनी एक ऐसा रसायन है, जो अधिक मात्रा में लेने पर विषाक्त हो जाता है। नए अध्ययन में लीवर पर चीनी के हानिकारक प्रभाव सबसे ज्यादा चौंकाने वाले हैं। हमें खाद्यान्नों में पाए जाने वाले कांप्लेक्स कार्बोहाइड्रेट्स से जो ग्लूकोज मिलता है। उसकी प्रोसेसिंग पूरे शरीर की कोशिकाओं द्वारा की जाती है, लेकिन चीनी के फ्रुक्टोज तत्व की प्रोसेसिंग प्राथमिक तौर पर लीवर द्वारा की जाती है। यहीं से सारी गड़बड़ी शुरू होती है।
लीवर को अधिक काम करना पड़ता है, जिससे फेटी लीवर रोग (लीवर में अत्यधिक चिकनाई का जमाव) उत्पन्न होता है। आगे चलकर इससे इंसुलिन प्रतिरोध पैदा होता है, जो मोटापे और डायबिटीज का मुख्य कारण है। यूसीएसएफ के वैज्ञानिकों का कहना है कि शूगर बुढ़ापे की प्ररिया को भी तेज करती है। लीवर पर इसका असर अल्कोहल जैसा ही होता है। इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि अल्कोहल शूगर के फर्मेंटेशन ( खमीर उठने की प्रक्रिया) से बनती है। प्रारंभिक अध्ययनों ने अधिक चीनी के उपभोग को कैंसर और स्मृति ह्रास के साथ भी जोड़ा है। चीनी के दुष्प्रभावों को सिर्फ व्यक्तिगत परहेज से नहीं रोका जा सकता। सामुदायिक स्तर पर कार्रवाई से ही इसका समाधान निकल सकता है।
जन स्वास्थ्य पर चीनी के हानिकारक प्रभावों और हेल्थकेयर के खर्च को कम करने के लिए वैज्ञानिकों ने ऐसे सभी खाद्य एवं पेय पदार्थो पर ज्यादा कर लगाने का सुझाव दिया है, जिनमें चीनी मिलाई जाती है। एक विकल्प स्कूलों के आसपास ऐसे पदार्थो की बिरी सीमित करने का भी हो सकता है। कुदरत ने फलों और शहद के रूप में चीनी की उपलब्धता को बहुत सीमित रखा था, लेकिन मनुष्य ने इसे सर्वत्र सुलभ बना दिया। चीनी हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। इसके सांस्कृतिक और उत्सवी पहलुओं को नजरंदाज करना मुश्किल है। अत: लोगों को चीनी की बुराई कतई बर्दाश्त नहीं होगी। उन्हें इसकी विषाक्तता के बारे में शिक्षित करना एक बहत बड़ी चुनौती है।
लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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