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एक झूठ को छिपाने के लिए कई बार विचित्र तर्को का सहारा लिया जाता है। 2जी मामले में संप्रग सरकार के जिम्मेदार लोगों ने इसकी मिसाल कायम की है। सुप्रीम कोर्ट ने संप्रग कार्यकाल में 2जी स्पेक्ट्रम के 122 लाइसेंसों को अवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। अब जब एक अदालत ने 2जी मामले में तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम को यह कहते हुए क्लीनचिट दी कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं दिखता तो केंद्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि राजग सरकार देश से माफी मांगे। संप्रग सरकार के कार्यकाल में आवंटित किए गए स्पेक्ट्रम रद्द और माफी मांगे पूर्ववर्ती राजग सरकार! सिब्बल के तर्क के आधार पर यह मानना पड़ेगा कि संप्रग सरकार राजग के बनाए नियमों पर चलने के लिए कटिबद्ध थी। वह उसे आदर्श मानती थी। उसमें किसी प्रकार का बदलाव या उसकी समीक्षा नहीं कर सकती थी। वस्तुत: सिब्बल ने इस मसले पर दिए जा रहे तर्को की फेहरिस्त को ही आगे बढ़ाया। यह झूठ को दबाने, छिपाने का ही एक प्रयास था। इसके पहले सिब्बल ने 2जी में कोई घोटाला मानने से इनकार कर दिया था। प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री सभी खुद को अनजान बता रहे थे।
प्रधानमंत्री तो 2जी घोटाले के आरोपी तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा को क्लीन चिट दे चुके थे। इस घोटाले में राजा के साथ कौन कितना हिस्सेदार था, यह तो जांच का विषय है, लेकिन प्रधानमंत्री, उनका कार्यालय और वित्तमंत्री अपनी जबाबदेही से नहीं बच सकते। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए राजा का राज-हठ रिकॉर्ड में दर्ज है। वह किसी भी सूरत में अपने ढंग से स्पेक्ट्रम आवंटन करने को तत्पर थे। सभी आपत्तियों को उन्होंने नकार दिया था। बाद में प्रधानमंत्री ने कहा भी कि गठबंधन राजनीति की मजबूरियां होती हैं। यह क्यों न माना जाए कि द्रमुक के साथ गठबंधन बनाए रखने के लिए जान-बूझकर आंखें बंद की गई? प्रधानमंत्री कार्यालय सब कुछ जानते हुए भी खामोश रहा। तत्कालीन वित्तमंत्री चिदंबरम ने अपने सचिव की आपत्ति को नकार दिया, जिसमें उन्होंने आवंटन की प्रक्रिया को दोषपूर्ण मानकर रोकने का सुझाव दिया था। फिर सरकार के मौजूदा वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के उस नोट को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है, जिसमें उन्होंने चिदंबरम पर सीधा आरोप लगाया था? प्रणब मुखर्जी का कहना था कि चिदंबरम चाहते तो 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को रोक सकते थे। यह प्रणब का व्यक्तिगत विचार नहीं था, बल्कि अन्य मंत्रालयों के रिकॉर्ड्स के आधार पर तैयार किया गया विचार था। इसके बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चिदंबरम के प्रति अपना विश्वास व्यक्त किया। सुप्रीम कोर्ट ने 2जी आवंटन की पूरी प्रक्रिया को ही अनुचित करार दिया है। संप्रग का नीति निर्माण गैरकानूनी था।
वर्ष 2008 में 2002 की दर पर स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया। यह बाजार की चालू दर पर होना चाहिए था। सरकार ने जान-बूझकर ऐसा नहीं किया। आवंटन प्रक्रिया भी दूषित थी। राजग सरकार ने निर्णय लिया था कि आवंटन की कीमत वित्तमंत्री और संचार मंत्री तय करेंगे। वित्तमंत्री राष्ट्रीय खजाने का जिम्मेदार होता है। खजाने में लूट या घाटा रोकना उसकी जिम्मेदारी है। पहले वित्त मंत्रालय ने इस जिम्मेदारी का निर्वाह किया। फिर भी 11 जनवरी 2008 को आवंटन हो गया। पहले आओ, पहले पाओ की नीति में बड़ी अनियमितता हुई। इसके चार दिन बाद चिदंबरम ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। प्रधानमंत्री का वक्तव्य इससे अलग है। उनका कहना था कि राजा और चिदंबरम के बीच मतभेद नहीं थे। फिर कहा कि उन्हें चिदंबरम पर विश्वास है। महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में भी गड़बड़ी उजागर की गई। कैबिनेट का निर्णय गलत था। इसका कुप्रभाव पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
विश्व का भारत की अर्थव्यवस्था पर अविश्वास उत्पन्न करने वाला मुद्दा है। बाहरी और आंतरिक निवेश पर भी प्रतिकूल असर हो सकता है। यह सच है कि स्पेक्ट्रम आवंटन में पहले आओ, पहले पाओ की नीति राजग शासन में तैयार की गई थी, लेकिन इसमें यह नहीं लिखा होगा कि संचार मंत्री की मर्जी निरंकुश होगी। वह प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री की अवहेलना करेगा। प्रधानमंत्री आवंटन प्रक्रिया को नियमानुसार चलाने का पत्र लिखकर अपना दायित्व पूरा समझ लेंगे। वित्तमंत्री अपने सचिव की आपत्ति को रद्दी की टोकरी में फेंक देंगे। अगर ये बातें राजग की नीति में समाहित रही हों तो जरूर ही उसे माफी मांगनी चाहिए। अन्यथा प्रधानमंत्री, उनके कार्यालय, वित्तमंत्री चिदंबरम को कम से कम अपनी नैतिक जिम्मेदारी अवश्य स्वीकार करनी चाहिए।
लेखक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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