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राम भरोसे राम सेतु

जागरण मेहमान कोना
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तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने केंद्र से मांग की है कि वह राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करे। यह मांग सिर्फ जयललिता की ही नहीं है, बल्कि देश की बहुसंख्यक जनता भी यही चाहती है। राम सेतु समुद्रम परियोजना का मामला सुप्रीम कोर्ट में है और उसने भी केंद्र से सवाल किया है कि क्या राम सेतु राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जा सकता है या नहीं? द्रमुक के अध्यक्ष एम करुणानिधि और उनकी पार्टी को छोड़कर कोई नहीं चाहता है कि राम सेतु को तोड़कर राम सेतु समुद्रम परियोजना पूरी की जाए। भारत के पास विश्व की महानतम धरोहर के रूप में मानव निर्मित राम सेतु है। इसे इसलिए भी राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि देश के करोड़ों लोगों की आस्था श्रीराम और राम सेतु में है। लोकतंत्र बहुमत से चलता है और जब बहुसंख्यक हिंदू समाज की राम सेतु में आस्था है तो उसकी उपेक्षा कैसे की जा सकती है? रामायण में वर्णित रामेश्वर की स्थापना वर्तमान इतिहास से भी प्रमाणित होती है। सहस्त्राब्दियों से भारत के कोने-कोने से लोग रामेश्वर का दर्शन करने जाते हैं। पुराणों में इन बातों का विशद वर्णन है। कूर्मपुराण पूर्वभाग के 21वें अध्याय में रामेश्वर की महत्ता तथा प्राचीनता का पता चलता है। इसी प्रकार की बातें स्कंदपुराण तथा अन्यान्य पुराणों में भी मिलती हैं। इन वचनों तथा मान्य ग्रंथों के प्रमाणों के अतिरिक्त रामेश्वर नाम ही रामेश्वर की मूर्ति और मंदिर का भगवान राम के साथ असाधारण संबंध स्थापित करता है। अत: सेतुबंध रामेश्वर की घटना वाल्मीकि रामायण द्वारा वर्णित रामेश्वर से भिन्न वस्तु नहीं हो सकती। सेतु निर्माण की घटना मात्र कल्पना नहीं है। वाल्मीकि रामायण में सेतु निर्माण की प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके प्रारंभ, समाप्ति और नाप-जोख सब पर इस रामायण में प्रकाश डाला गया है।


वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के 22वें सर्ग के 50 से 72 में श्लोक में प्रतिदिन कितना निर्माण हुआ, कितने दिनों में सेतु बनकर तैयार हुआ इसका ब्यौरेवार वर्णन है। पूर्ण सेतु का निर्माण पांच दिनों में हुआ था। प्रथम दिन 14 योजन, दूसरे दिन 20, तीसरे दिन 21, चौथे दिन 22 एवं पांचवे दिन 10 योजन बना। आधुनिक युग में विभिन्न देशों में निर्मित अत्यंत विशाल सेतुओं की उपस्थिति उक्त सेतुबंधन की घटना को वास्तविक मानने को बाध्य करती है। किसी भी निर्माण के सदियों गुजरने के बाद केवल उसका विकृत रूप अर्थात भग्नावशेष ही रह जाता है। फिर राम सेतु को बने तो लाखों वर्ष हो गए हैं। ऐसी दशा में वह अपने मूल स्वरूप में कैसे रह सकता है? वर्ष 1803 में प्रकाशित ग्लोरी ऑफ मद्रास प्रेसीडेंसी के अनुसार इस सेतु से लोग 1480 तक भारत और लंका से आते-जाते थे। इसका अर्थ यह हुआ कि सेतु भारतीय प्रायद्वीप को श्रीलंका से जोड़ता था। वर्ष 1480 में आए भयानक तूफान से सेतु की ऊपरी सतह पर 6 फुट से 30 फुट तक पानी आ जाने से संपर्क टूट गया। यह बात वैज्ञानिक शोध पत्रों से भी स्पष्ट होती है।


महर्षि वाल्मीकि ने भगवान राम के समुद्र तक पहुंचने के विभिन्न मार्गो का विशद वर्णन किया है। आज भी उन्हीं मार्गो से दक्षिण भारत की तीर्थयात्रा होती है। किष्किंधा में बाली को मारकर राम ने चौमासा किया था। वह किष्किंधा दक्षिण भारत में आज भी किष्किंधा नाम से ही प्रसिद्ध है। नासिक का संबंध रामायण की महत्वपूर्ण घटना सूर्पणखा के नासिका छेदन से है। पंचवटी भी वहीं है। रामायण से भी दोनों स्थानों का पास-पास होना प्रमाणित होता है। आधुनिक काल में भी पंचवटी और नासिक एक ही स्थान पर हैं। इन स्थानों का वाल्मीकि रामायण के वर्णन से साहचर्य संबंध प्रतीत होता है। महाकवि ने रामायण में लगभग दो सौ साठ स्थानों का वर्णन किया है। इनमें से अधिकांश स्थान आज भी दक्षिण भारत में ही हैं। गोदावरी, कृष्णा, वरदा आदि नदियां और आंध्र, चोल, पाण्डय, केरल जैसे स्थान दक्षिण भारत में ज्यों के त्यों विद्यमान हैं। यदि रामायण में वर्णित भौगोलिक स्थान पर पर्वत, नदी, तीर्थ आदि आज भी यथास्थान हैं तो उनके द्वारा वर्णित एवं उनसे जुड़ी कृतियां किस प्रकार झूठी हो सकती हैं।


अंतरिक्ष विभाग की हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी द्वारा प्रकाशित पुस्तक इमेजेज इंडिया के मुताबिक उपग्रह से लिए गए चित्र इस बात के साक्षी हैं कि भारत और श्रीलंका के बीच एक प्राचीन पुल है। यह भी कहा गया है कि पुल की उत्पत्ति एक रहस्य है। एक सरकारी एजेंसी ने भी स्वीकार किया है कि राम सेतु मानवनिर्मित है और प्रागैतिहासिक यानी रामायणकालीन है। उधर श्रीलंका के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं ने भी यह माना है कि राम सेतु सुनामी लहरों की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी है, जिसे मिटाना हानिकारक होगा। उनके इस कथन में भी सच्चाई है कि पूर्व में आई सुनामी लहरों से इस सेतु के कारण कोई नुकसान नहीं हो पाया। इसलिए राम सेतु समुद्रम परियोजना के लिए वैकल्पिक उपाय किए जाने चाहिए। संप्रग सरकार को ऐसे मामलों से बचना चाहिए, जिसके सांप्रदायिक सद्भाव को चोट पहुंचती हो। भगवान राम और उनसे जुड़े स्थलों से छेडछाड़ करना सरकार और देश दोनों के हित में नहीं है। युगों-युगों से राम भारतीय जनमानस के आराध्य रहे हैं। हिंदू उन्हें परब्रह्म विष्णु का अवतार मानते हैं।


मनुष्य के जीवन में जो भी श्रेष्ठ और सुंदर है उसकी उत्पत्ति तो रामचरित से ही बताई जाती है। दुनिया में कई प्राचीन सभ्यताओं का जन्म हुआ जो समय के साथ इतिहास के गर्त में खो गई, किंतु युगों-युगों से इस देश में राम का गौरव आज भी कायम है। राम की कथा और उनका चरित्र अमर है, क्योंकि वह कालजयी हैं। यदि भारत में आज कोई ईमानदारी, अतिथि सत्कार, सतीत्व, परोपकार, मूक पशुओं के प्रति दया भाव, पाप से घृणा तथा भलाई की भावना है तो वह जनमानस में रामचरित्र के प्रति आस्था के ही कारण है। पुरानी आस्था तथा संस्कृति केवल हिंदुओं या भारतीयों के लिए नहीं, बल्कि समूचे संसार के लिए सार्थक है। भारत की धार्मिक स्वतंत्रता तथा सहनशीलता की परंपरा अद्वितीय है। इस परंपरा का जन्म उस चेतना के फलस्वरूप हुआ था जिसमें सत्य पर किसी जाति या संप्रदाय विशेष का अधिकार नहीं होता। ऋग्वेद का यह वाक्य विश्व प्रसिद्ध है-आदर्श विचारों को हर दिशा से आने दो। पर वर्तमान युग आध्यात्मिक अज्ञान एवं आत्मा की निर्धनता का युग है। जब मनुष्य अपनी आत्मा को झूठे भौतिक वैभव से धोखा देकर आत्मा के कवित्वमय बोध को नष्ट कर सकता है तो हमें यह स्मरण करना आवश्यक हो जाता है कि सभ्यता आत्मा की ही देन है।


भौतिक उन्नति को आत्मा की उन्नति नहीं समझना चाहिए। जब टेक्नालॉजी नैतिक उत्थान से श्रेष्ठ हो जाती है तो सभ्यता स्थिर रहने के स्थान पर लुप्तप्राय होने लगती है। हमारे पुराने ऋषियों ने किसी राज्य की महानता उसके आकार तथा धन-संपत्ति से नहीं, बल्कि उस राज्य में नागरिकों की भलाई के लिए होने वाले लोक कल्याणकारी कार्यो के आधार पर आंकी थी। मनुष्य का वास्तविक विकास भौतिक तथा शारीरिक आधार पर नहीं किया जाना चाहिए।


लेखक निरंकार सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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