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सुधार का उपेक्षित क्षेत्र

जागरण मेहमान कोना
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चुनाव सुधार की चर्चा के बीच राजनीतिक दलों से संबंधित सुधारों की अनदेखी पर निराशा जता रहे हैं नृपेंद्र मिश्र


चुनाव सुधार केंद्र सरकार के एजेंडे में शीर्ष स्थान पर हैं। कानून मंत्रालय ने एक कोर समिति का गठन किया है, जो भारत में चुनाव सुधार पर सुझाव पेश करेगी। महत्वपूर्ण सुधारों पर राष्ट्रीय स्तर पर सर्वसम्मति बनने के इंतजार के बीच हम निर्वाचन तंत्र में सुधार के लिए पहल कर सकते हैं। राजनीतिक दल संबंधी सुधार नाजुक हैं और इस दिशा में जल्द से जल्द कार्रवाई की जानी चाहिए। भारतीय संविधान में राजनीतिक दलों के संबंध में एकमात्र संदर्भ संविधान की दसवीं अनुसूची में ही दिखाई पड़ता है, जिसे 1985 में 52वें संशोधन के जरिए संविधान में जोड़ा गया। यह लोकसभा व राज्यसभा तथा विधानसभा व विधानपरिषद के सदस्यों को दल बदलने के आधार पर अयोग्य घोषित कर सकता है। राजनीतिक दलों से संबंधित कायदे-कानून बनाने का मुख्य दायित्व मुख्य चुनाव आयुक्त का है। यह शक्ति चुनाव आयोग के पास ही है कि वह किसी समूह और व्यक्तियों की इकाई को एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण और इसी के साथ इसे भारत की राजनीतिक पार्टी की मान्यता प्रदान करता है या नहीं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम [आरपीए] के अनुच्छेद 29 ए [1] और [2] के अनुसार कोई भी संगठन या व्यक्तियों की इकाई खुद को राजनीतिक पार्टी कह सकती है अगर वह गठन के तीस दिनों के भीतर चुनाव आयोग के पास राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण के लिए आवेदन करे। अनुच्छेद ए [5] के अनुसार आवेदन के साथ संगठन या इकाई की नियमावली की कॉपी लगाना जरूरी है। इसमें पार्टी के लिए भारत के संविधान का पालन करना और समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों का पालन करना जरूरी है। इस संबंध में चुनाव आयोग का फैसला अंतिम है।


आरपीए के अनुच्छेद 29सी के अनुसार पंजीकृत राजनीतिक दलों को वार्षिक रिपोर्ट चुनाव आयोग को देना जरूरी है। राजनीतिक दल को आयकर से छूट तभी मिलेगी जब वह बीस हजार रुपये से अधिक के सभी अंशदान का विवरण चुनाव आयोग को दे। दूसरा महत्वपूर्ण प्रावधान है कि सभी राजनीतिक दल वार्षिक वित्तीय लेखा-जोखा चुनाव आयोग को पेश करेंगे। तीसरा प्रावधान यह है कि चुनाव आयोग किसी भी विवरण की मांग कर सकता है, जो राजनीतिक पार्टी के पंजीकरण के आवेदन की शर्तो के दायरे में आता हो।


एक गैरसरकारी संगठन पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन [पीआइएफ] ने आरटीआइ के माध्यम से कुछ सूचनाएं मांगी, जिनके जवाब चौंकाने वाले थे। वार्षिक रिपोर्ट में बीस हजार रुपये से अधिक प्राप्तियों के संबंध में चुनाव आयोग ने बताया कि कुल पंजीकृत 1196 राजनीतिक दलों में से मात्र 98 ने ही वार्षिक रिपोर्ट में 20 हजार रुपये से अधिक के अंशदान का ब्यौरा दिया है। यह संख्या कुल पंजीकृत राजनीतिक दलों का करीब आठ प्रतिशत ही है। यही नहीं, चुनाव आयोग ने इन राजनीतिक दलों के खिलाफ आयकर विभाग को कोई निर्देश नहीं दिए। आयोग ने सिर्फ इतना किया कि दलों से प्राप्त वार्षिक रिपोर्ट की कॉपियां आयकर विभाग को भेज दीं। अन्य आरटीआइ में पीआइएफ ने वार्षिक वित्तीय विवरण के संबंध में जानकारी मांगी। वित्तीय वर्ष खत्म होने के छह माह के भीतर चुनाव आयोग को यह जानकारी देना प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए जरूरी है। इसके जवाब में चुनाव आयोग ने बताया कि महज 174 दलों ने 2010-11 का वित्तीय स्टेटमेंट भेजा है। यानी करीब 85 फीसदी दलों ने अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा नहीं किया और चुनाव आयोग ऐसे राजनीतिक दलों को बस स्मरण-पत्र भेजकर चुप बैठ गया।


इन नियमों का पालन न करने वाले दलों को दंडित करने का प्रावधान न होने के कारण चुनाव आयोग लाचार नजर आता है। चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को पंजीकृत करने का तो अधिकार है, किंतु एक बार पंजीकरण हो जाने के बाद आयोग के पास दलों के पंजीकरण पर पुनर्विचार करने का कोई अधिकार नहीं है। केवल एक सूरत में आयोग किसी दल का पंजीकरण रद कर सकता है। अगर आयोग को पता चले कि राजनीतिक दल ने गलत सूचनाओं और तथ्यों के आधार पर पंजीकरण कराया था या फिर कोई राजनीतिक दल खुद ही आयोग को सूचित करे कि उसने काम करना बंद कर दिया है अथवा उसने अपना संविधान बदल लिया है अथवा वह कानून के प्रावधान के मुताबिक काम नहीं कर पाएगा।


इन प्रतीकात्मक शक्तियों से लैस चुनाव आयोग ने जुलाई 1998 में पार्टियों का पंजीकरण करने और पंजीकरण रद करने संबंधी प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। अभी तक सरकार ने आयोग को इन जरूरी शक्तियों से लैस नहीं किया है। अगर राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी के संबंध में सरकार के पास कोई कानून नहीं है तो जवाबदेही से मुक्त राजनीति ही सामने आएगी। कानून में राजनीतिक दलों के न केवल पंजीकरण करने व पंजीकरण रद करने संबंधी प्रावधान होने चाहिए, बल्कि राजनीतिक दलों की गतिविधियां और नियमन भी इसके दायरे में आने चाहिए।


सेंटर फॉर स्टैंड‌र्ड्स इन पब्लिक लाइफ ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एमएन वेंकटचलैया के मार्गदर्शन में पालिटिकल पार्टीज [रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन ऑफ अफेयर्स] एक्ट, 2011 का मसौदा तैयार किया है। इसमें राजनीतिक दलों के गठन से लेकर पंजीकरण, संचालन, जवाबदेही, नियमन और कार्यो के बारे में स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं। इसमें संचालन की शर्ते और 20 हजार रुपये से अधिक के अंशदान के संबंध में सूचना देने के बाध्यकारी प्रावधान हैं। विद्यमान कानूनों के विपरीत, जहां गैरपंजीकृत दल भी चुनाव लड़ सकता है, तमाम दलों के लिए यह अनिवार्य हो जाएगा कि वे चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग में पंजीकरण करवाएं। यही नहीं, इस बिल के माध्यम से रजिस्ट्रार को किसी भी दल का किसी भी समयावधि के हिसाब-किताब के अंकेक्षण का अधिकार मिल जाएगा। मसौदे में स्पष्ट व्यवस्था है कि प्रावधानों का अनुपालन न करने वाले दलों पर दस हजार रुपये प्रतिदिन जुर्माना लगाया जा सकता है और तीन साल तक की सजा और पंजीकरण रद किया जा सकता है। इस विषय पर सरकार की उच्च स्तरीय रिपोर्टो में शामिल हैं लॉ कमीशन की चुनाव सुधार पर 170वीं रिपोर्ट [1999], नेशनल कमीशन फॉर रिव्यू ऑफ द वर्किग ऑफ द कंस्टीट्यूशन रिपोर्ट [2002] और चुनाव सुधार पर चुनाव आयोग की अनुशंसाएं [2004]। इन रिपोर्टो में राजनीतिक दलों के नियमन की वकालत तो की गई है, किंतु इसके लिए अलग से अधिनियम पारित करने के बजाए विद्यमान कानूनों में संशोधन करना ही पर्याप्त माना गया है।


लेखक नृपेंद्र मिश्र ट्राई के पूर्व अध्यक्ष हैं और यह लेख पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन में शोध सहायक तन्नू सिंह के सहयोग के साथ लिखा गया है.


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