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यूरोप की महासेल

जागरण मेहमान कोना
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गरज यूरोप की मौज तीसरी दुनिया के नए अमीरों की! बिकवाल सरकारें और खरीददार भी सरकारें! माल चुनिंदा और बेशकीमती! कीमत बेहद आकर्षक। …. यूरोप में दुनिया की सबसे नायाब सेल शुरु हो चुकी है!! बिजली, तेल, गैस कंपनियां, वाटर वर्क्‍स, हवाई अड्डे, द्वीप, बैंक जैसी यूरोपीय संपत्तियों से सजा यह बाजार देखते ही बनता है । जहां तीसरी दुनिया के अमीर मुल्‍क यूरोप के कर्ज मारे देशों की अनमोल संपत्तियां खरीद रहे हैं। सॉवरिन डेट (संप्रभु कर्ज) से तबाह यूरोप को एशिया की सॉवरिन वेल्‍थ उबार रही है। अकूत मुद्रा भंडारों से लैस चीन और अरब देशों के लिए यह दोबारा न मिलने वाला मौका है, इसलिए इनके सॉवरिन (सरकारी) वेल्‍थ फंड इन बाजारों में चुन चुन कर माल उठा रहे हैं। इस खरीद के बाद जो बचेगा उसे साफ करने के लिए वित्‍तीय बाजार के गिद्ध तैयार हैं। अमेरिका के तमाम वल्‍चर फंड भी यूरोप पर मंडरा रहे हैं। परेशान हाल देशों व बैंकों की टोह ली जा रही है ताकि संपत्तियों को कौडि़यों के मोल खरीदा जा सके। कर्ज की कटार अब यूरोपीय प्रगति की जडे काट रही है।


कौड़ी मोल

पुर्तगाल की सबसे बड़ी बिजली कंपनी ईडीपी में 21 फीसदी हिस्‍सा चीन के पास पहुंच गया है। चीन की सार्वजनिक कंपनी थ्री गॉर्जेस (दुनिया की सबसे बड़ी प‍नबिजली परियोजना की मालिक) ने पुर्तगाल में यह शानदार हाथ मारने के लिए बीते साल के अंत में करीब 3.5 अरब डॉलर खर्च किये। कर्ज के मारे पुर्तगाल को यूरोपीय समुदाय व आईएमएफ ने जो मदद दी थी उसमें यह शर्त शामिल थी कि पुर्तगाल अपनी बिजली कंपनियों में हिस्‍सेदारी बेच कर पैसे जुटायेगा। पुर्तगाल अपने नेशनल बिजली‍ ग्रिड के 40 फीसदी हिस्‍से का बिकवाल भी है और चीन की स्‍टेट ग्रिड कार्पोरेशन खरीददारों की दौड़ में आगे है। सरकारी संपत्तियों की बिक्री, यूरोपीय कर्ज संकट इलाज का अहम हिससा है। इसलिए यूरोप के कई देश अपनी सार्वजनिक कंपनियों, प्रतिष्‍ठानों, सेवाओं में हिस्‍सेदारी बेच रहे हैं। कीमतें कम हैं, बिकवालों को तत्‍काल पैसा चाहिए और संपत्तियां शानदार हैं यानी कि बाजार की जबान में ट्रॉफी एसेट्स। चीन, हांगकांग, सिंगापुर और मध्‍य पूर्व के तेल समृद्ध मुल्‍कों में ही इतनी कुव्‍वत है कि वह यह खरीदारी कर सकें। इन देशों के सॉवरिन वेल्‍थ फंड यूरोपीय रत्‍नों के सबसे बड़े ग्राहक हैं। सॉवरिन वेल्‍थ फंड सरकारें नियंत्रित करती हैं जिनमें विदेशी मुद्रा या अन्‍य कारोबार से जुटाई बचत रखी जाती है, जो सीधे या अपनी सरकारी कंपनियों के जरिये विदेश में निवेश में काम आता है। यूं तो दुनिया तीस अधिक देशों के सॉवरिन वेल्‍थ फंड सक्रिय हैं, मगर सॉवरिन वेल्‍थ फंड इंस्‍टीट्यूट के मुताबिक 75 अरब डॉलर से ऊपर के फंड कुछ ही देशों (चीन, संयुक्‍त अरब अमीरात, नॉर्वे, सऊदी अरब, सिंगापुर, हांगकांग, कुवैत, रुस, कतर) के हैं। 410 अरब डॉलर के फंड के साथ चीन इस बाजार में सबसे ज्‍यादा सक्रिय है। सिर्फ पुर्तगाल या ग्रीस ही नहीं घाटे के पेरशान ब्रिटेन को भी अपने जवाहरात बेचने पड़ रहे हैं। चीन के सॉवरिन फंड ने लंदन के वाटर नेटवर्क थेम्‍स वाटर में हिस्‍सा खरीद लिया है। ग्रीस अपने गैस नेटवर्क, पोस्‍टल बैंक, बंदरगाह, आयरलैंड सरकारी कंपनी, स्‍पेन सरकारी लॉटरी और दो एयरपोर्ट में हिस्‍सेदारी बेचने वाला है। इस साल के मध्य तक यूरोप को एक और झटका लगेगा जब बैंकों व सरकारों की कर्ज देनदारियां निकलेंगी। इसलिए सॉवरिन वेल्‍थ फंड नए ईंधन के साथ तैयार हो रहे हैं। हाल में बैंक ऑफ चाइना ने चीन के सॉवरिन फंड (चाइनीज इन्‍वेस्‍टमेंट कार्पोरेशन) में निवेश किया है। कुल मिलाकर इस साल यूरोप में बहुत कुछ बिकेगा और हर बिक्री के साथ दुनिया में अमीर और गरीब की परिभाषा बदलती जाएगी।


अर्थव्यवस्था की असलियत


गिद्ध भोज

तैयारी कहीं दूसरी जगह भी चल रही है। वित्‍तीय बाजार के सबसे निर्मम निवेशक यानी वल्‍चर फंड्स लंदन और पेरिस में सक्रिय हो गए हैं। वल्‍चर फंड संकट या युद्ध में फंसे देशों या बैंकों का कर्ज कौडि़यों में खरीदते हैं। इन देशों को बाद में जब कर्ज माफी मिलती है और अच्‍छे दिन लौटते हैं तो वल्‍चर फंड मोटे ब्‍याज पर कर्ज की वसूली करते हैं। इनका संचालन निजी निेवेशक और वित्‍तीय संस्‍थायें करती हैं। वसूली गलादाब होती है क्‍यों कि वल्‍चर फंड लंबी कानूनी लडाई के महारथी होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में इन फंड ने विभिन्‍न देशों व कंपनियों से कर्ज के बदले करीब एक अरब डॉलर वसूले हैं। यूरोप में करीब 4000 अरब डॉलर के कारपोरेट कर्ज व बांड का भुगतान, अगले चार वर्षों के दौरान सर पर खड़ा होगा। बैंकों को अगले कुछ वर्षों में करीब 1000 अरब डॉलर का कर्ज घटाना है यानी कि सस्‍ते मोल पर कर्ज खरीदने का यह सुनहरी मौका है। वल्‍चर फंड का कुनबा 2010 से तैयारी में लगा है। डिस्‍ट्रेस डेट (मुश्किल में फंसा कर्ज) को खरीदने वाले कई फंड पिछले दो साल में करीब सात अरब डॉलर जुटा चुके हैं और नौ अरब डॉलर और जुटाने की तैयारी है। ग्रीस इनके निशाने पर सबसे पहले है। गरीब अफ्रीकी देशों में वल्‍चर फंड की कारगुजारियां वित्‍तीय बाजार के लोमहर्षक किस्‍सों में शामिल हैं। वलचर फंड के खिलाफ अभियान चलाने वाले जुबली डेट कैम्‍पेन की मानें तो विश्‍व के करीब 12 देशों पर इन फंड का शिकंजा कसा है। इन फंड के तार टैक्‍स हैवेन से भी जुड़ते हैं जहां की अदालतों के आदेश के सहारे यह फंड वसूली करते हैं। इसलिए देशों ने अपने यहां वल्‍चर फंड को अदालतों की मदद लेने पर रोक लगा दी है। अलबत्‍ता जैसे जैसे यूरोप की मुसीबतें बढेंगी, कर्ज राहत पैकेज आएंगे, वल्‍चर फंड के लिए मौके बढ़ते जाएंगे। हालांकि यूरोप अफ्रीका नहीं है लेकिन यह क्‍या कम है कि वल्‍चर फंड अब वहीं शिकार के लिए निकल पड़े हैं, जहां उनका जन्‍म हुआ था।


यूरोजोन में इस समय थकान भरी शांति हैं। केंद्रीय बैंकों की तरफ से‍ मिले पैसे और बेल आउट के सहारे बाजारों को ढाढस बंधा है। यूरोप की राजनीति फ्रांस, ग्रीस व स्‍पेन के चुनावों की तरफ देख रही है। निवेशक ब्रिटेन की रेटिंग में गिरावट अथवा पुर्तगाल और स्‍पेन के लिए नए सहायता पैकेज के झटकों के लिए साहस जुटा रहे हैं। यूरोप के बांड और शेयर सूचकांक स्थि‍र हैं, क्‍यों कि कर्ज संकट की सर्जरी शुरु हो गई है। संपत्तियों की बिक्री और घाटा कम करने के लिए जन सुविधाओं में कमी सबसे बड़े इलाज हैं। यूरोप को भली प्रकार मालूम है कि इन उपचारों से कई सामाजिक आर्थिक चुनौतियां पैदा होंगी और एक लंबी मंदी हाथ लगेगी। मगर कर्ज की फांस से निकलने का और कोई दूसरा रास्‍ता भी तो नहीं है। यूरोजोन की कर्ज कथा का पार्ट टू शुरु हो गया है। कहानी का शीर्षक है यूरोप बिकता है बोलो खरीदोगे ?


इस आलेख के लेखक अंशुमान तिवारी हैं


विदेशी धन की सरपरस्ती में खेल!


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