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अब इमरान से है लोगों को उम्मीद

जागरण मेहमान कोना
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पाकिस्तान में जो राजनीतिक गुट हैं, उनमें सबसे असरदार वडेरे हैं। वडेरे जमींदारों को कहते हैं, जिनका न सिर्फ बड़ी-बड़ी कृषि भूमि पर नियंत्रण है, बल्कि वोटों पर भी ऐसा असर है कि जिसके पक्ष में चाहते हैं, मतदान करा देते हैं। इसी कारण पाकिस्तान में राजनीति के नाम पर बड़े-बड़े परिवारों का ही बोलबाला है। कहीं भुटटो परिवार है तो कहीं खार परिवार और कहीं शरीफ परिवार। इसके अलावा धर्मिक गुट भी बहुत मजबूत हैं, जिनका राजनीति में अच्छा-खासा हस्तक्षेप रहता है। इस सबसे बढ़कर बात यह है कि बिना सेना के पाकिस्तान में राजनीति करना संभव नहीं। तहरीके इंसाफ पार्टी के मुखिया इमरान खान का इन गुटों में से किसी एक से भी सीधे संपर्क नहीं था। पश्चिमी शिक्षा प्राप्त और प्लेब्वॉय की इमेज वाले इमरान खान को न वडेरे अपना समझते थे और न ही मुल्लाओं से उन्हें कोई सरोकार था। लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले इमरान पर सेना भरोसा कर ही नहीं सकती थी। साथ ही अमेरिका, जिसका पाकिस्तान की राजनीति में जबरदस्त दखल है, को इमरान पर दांव लगाने लायक विश्वास नहीं था। लेकिन जिस प्रकार से क्रिकेट में इमरान खान ने अपना लोहा मनवाया, उसी प्रकार से पाकिस्तान की राजनीति में उनका महत्व इतना अधिक बढ़ गया है कि केवल वही अपने देश के लिए एकमात्र उम्मीद की किरण नजर आ रहे हैं।


इमरान खान की रैलियों में जो सुनामी जैसी भीड़ नजर आ रही है, अगर वह वोट में भी तब्दील हो जाती है तो यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि अगले आम चुनावों के बाद उनकी पार्टी ही सत्ता में होगी। दरअसल, ऐसे अनेक कारण हैं, जो फिलहाल इमरान खान की राजनीतिक स्थिति मजबूत कर रहे हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि आसिफ अली जरदारी की सरकार अपने ही विरोधाभासों में फंसी हुई है। मेमोगेट इतना विकराल रूप धारण करता जा रहा है कि सरकार, सेना और न्यायपालिका टकराव के कगार पर पहंुच गए हैं। ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद जरदारी को अपनी कुर्सी के जाने का इतना ज्यादा खतरा हो गया था कि उन्होंने अमेरिका स्थित अपने राजदूत से एक मेमो अमेरिकी रक्षा मंत्रालय को भिजवाया था कि ऐसी व्यवस्था की जाए, जिससे सेना उनकी सरकार का तख्ता पलट न कर सके। यह विवाद इतना बढ़ गया है कि अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी और आइएसआइ चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अहमद सुजा पाशा ने सुप्रीम कोर्ट में अपने बयान दर्ज कराए हैं। इन बयानों को प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी असंवैधनिक और अवैध मानते हैं। भ्रष्टाचार और मेमोगेट को लेकर न्यायिक विवादों में फंसी जरदारी सरकार के लिए पूर्व सैनिक शासक परवेज मुशर्रफ की स्वदेश वापसी भी सिरदर्द बनी हुई है।


गौरतलब है कि वीडियो लिंक के जरिये दुबई में बैठे परवेज मुशर्रफ ने कराची में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि वह जनवरी 27 और 30 के बीच पाकिस्तान लौटेंगे। बावजूद इसके कि जरदारी सरकार ने उनके खिलाफ बेबुनियाद और झूठे मुकदमे दर्ज कर रखे हैं। इसके जवाब में सिंध प्रांत के गृहमंत्री मंजूर वासन ने कहा है कि केंद्र सरकार से उन्हें मुशर्रफ के खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट मिले हैं कि जैसे ही मुशर्रफ कराची आएं, उन्हें गिरफ्तार करके सी क्लास जेल में बंद कर दिया जाए। दूसरे शब्दों में जरदारी सरकार हड़बड़ाहट में मुशर्रफ को जेल भेजकर अपने लिए एक और मुसीबत खड़ी करना चाहती है। हालांकि इमरान खान ने इस बात से स्पष्ट इनकार किया है कि उनकी सरकार मुशर्रफ की पार्टी से समझौता नहीं करेगी, लेकिन लगता यही है कि सेना मुशर्रफ और इमरान को ही जरदारी के खिलाफ इस्तेमाल करेगी। बहरहाल, जरदारी के लिए मुशर्रफ से भी बड़ा खतरा इमरान खान हैं। इमरान खान की जनसभाओं में जो सैलाब उमड़ रहा है, उससे सबसे बड़ा खतरा जरदारी को यह है कि अगर वह चुनावों को टालने या उनमें गड़बड़ी करने का प्रयास करते हैं तो कहीं अरब जैसी जनक्रांति लाहौर और कराची की सड़कों पर भी शुरू न हो जाए। दरअसल, इमरान खान मुशर्रफ का साथ इसलिए नहीं चाहते, क्योंकि सियासत में आने के बाद जो उन्होंने अपनी छवि विकसित की है, पाकिस्तान के अंदर और बाहर वह धूमिल हो सकती है। आज पाकिस्तान का युवा इमरान खान में एक ऐसा व्यक्ति देख रहा है, जिस पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं हैं और जो अपने दिल में जनता का दर्द रखता है।


लेखक लोकमित्र स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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