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धौनी नहीं बुढ़ाते खिलाड़ी जिम्मेदार

जागरण मेहमान कोना
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Anant Vijayविदेशी धरती पर पिछले छह टेस्ट में लगातार हार से भारतीय क्रिकेट में भूचाल आया हुआ है। एक दो लोगों को छोड़कर तमाम पूर्व क्रिकेटर और दिग्गज भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी को इस शर्मनाक हार का जिम्मेदार मानते हैं। धौनी पर हार का ठीकरा फोड़ने के बाद अब उनके आलोचकों ने उन्हें हटाने का एक अभियान सा छेड़ दिया है। जिस महेंद्र सिंह धौनी ने अब से नौ महीने पहले देश को क्रिकेट विश्व कप का तोहफा दिया था वही धौनी अब क्रिकेट के सबसे बड़े खलनायक करार दिए जा रहे हैं। हमें धौनी की आलोचना के पीछे के मनोविज्ञान और मानसिकता को समझने की जरूरत है। जब से भारत ने क्रिकेट खेलना शुरू किया तब से लेकर अब तक यह खेल अभिजात वर्ग के हाथ में ही रहा। क्रिकेट और इससे जुड़े प्रमुख संस्थाओं पर भी इलीट वर्ग का वर्चस्व रहा। बड़े शहरों के बड़े लोगों खासकर दिल्ली और मुंबई का इस खेल पर लंबे समय तक आधिपत्य रहा, लेकिन धौनी ने इस मिथ को तोड़ा। झारखंड के एक छोटे से शहर रांची से आकर धौनी विश्व क्रिकेट के आकाश पर धूमकेतु की तरह चमके और छा गए।


भारतीय क्रिकेट में धौनी युग की शुरुआत के बाद क्रिकेट दिल्ली-मुंबई से निकलकर अमेठी-मेरठ व हापुड-मेवात तक पहुंचा और वहां के खिलाड़ी सामने आने लगे जिन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया। जब धौनी भारत के लिए तमाम सफलता हासिल कर रहे थे तब भी कई पूर्व क्रिकेटर उसको धौनी की मेहनत नहीं, बल्कि किस्मत से जोड़कर देख रहे थे। उनको धौनी की सफलता रास नहीं आ रही थी। दरअसल इन क्रिकेटरों को धौनी की सफलता से रश्क होने लगा था और उसको पचा नहीं पा रहे थे। इसलिए जैसे ही धौनी की कप्तानी में टीम इंडिया की हार होने लगी तो महानगरीय मानसिकता वाले पूर्व क्रिकेटरों को धौनी पर हमला करने का मौका मिल गया। धौनी की कप्तानी कौशल पर भी सवाल खड़े होने लगे और कुछ लोग तो उनको हटाने की मांग कर रहे है, लेकिन उन्हें हटाने और टीम इंडिया की हार के लिए अकेले धौनी को जिम्मेदार ठहराने वाले इन विशेषज्ञों की टीम के दिग्गज और बुढ़ाते बल्लेबाजों पर चुप्पी आश्चर्यजनक है। जब इतने दिग्गज बल्लेबाजों के रहते टीम इंडिया लगातार हार रही है तो सिर्फ कप्तान पर सवाल खड़े करना ठीक नहीं। टीम इंडिया के चार बड़े और दिग्गज बल्लेबाज- सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण का बल्ला विदेशी पिचों पर चल ही नहीं पा रहा है। क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर पिछले कई मैचों से शतक नहीं लगा पाने की वजह से भारी दबाव में हैं और अपने प्राकृतिक खेल से दूर होते जा रहे हैं। सचिन पर अपने सौंवे शतक का दबाव इतना ज्यादा है कि उसका खामियाजा टीम को उठाना पड़ रहा है।


सवाल उठता है कि सचिन तेंदुलकर को और कितना मौका दिया जाएगा? क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि सचिन को खुद संन्यास लेकर नए लोगों को खेलने का मौका देना चाहिए। अगर सौंवा शतक नहीं बन पा रहा है तो कब तक भारत उसका इंतजार करते रहेगा। धौनी पर आलोचना का तीर चलाने वाले विशेषज्ञों को यह कहने का साहस क्यों नहीं है कि सचिन को संन्यास ले लेना चाहिए। भारत के दूसरे दिग्गज बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग की बात करें तो वहां तस्वीर और भी दयनीय है। सहवाग कभी अच्छी बल्लेबाजी किए होंगे, अभी कुछ दिनों पहले देश में ही उन्होंने तिहरा शतक भी लगाया, लेकिन विदेशी दौरों पर उनका प्रदर्शन दयनीय से भी बदतर है। दक्षिण अफ्रीका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक में सहवाग जब भी ओपनिंग करने आए तो बुरी तरह से फ्लॉप रहे । विदेशी धरती पर ओपनर के तौर पर उनका औसत 16 का है और भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर शतक लगाए हुए उनको चार साल हो गए। धौनी की आलोचना करने वालों को सहवाग का इतना घटिया प्रदर्शन नजर नहीं आ रहा है। क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि सहवाग को टीम से बाहर का रास्ता दिखाया जाए। कब तक अतीत में अच्छे प्रदर्शन के आधार पर टीम इन वरिष्ठ खिलाडि़यों को ढोती रहेगी और इस वजह से हारती रहेगी।


सहवाग के अलावा एक जमाने में टीम इंडिया की दीवार कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ के खेल को देखें तो स्थिति और भी खराब नजर आती है। मेलबर्न से लेकर पर्थ तक की पांच पारियों में द्रविड़ ने 24 रनों की औसत से 121 रन बनाए हैं और चार बार बोल्ड आउट हुए हैं। टीम इंडिया की दीवार अब ढहती नजर आने लगी है। तकनीक के मास्टर माने जाने वाले द्रविड़ जब पांच में चार पारियों में बोल्ड आउट होते हैं तो चयनकर्ताओं के लिए सोचने का वक्त आ गया है। उसी तरह अगर लक्ष्मण की बल्लेबाजी का आकलन करें तो वहां भी निराशा ही हाथ लगती है। ऐसे में सिर्फ धौनी को जिम्मेदार मानना उस शख्स के साथ अन्याय है जिसने देश को वनडे और टी-20 विश्वकप का तोहफा दिया। धौनी की कप्तानी पर सवाल खड़े करने वालों को विश्वकप का फाइनल याद करना चाहिए जहां सहवाग के शून्य और सचिन के अठारह रन पर आउट होने के बाद धौनी ने जबरदस्त फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह की बजाय खुद को बल्लेबाजी क्रम में ऊपर किया और फाइनल में नाबाद 97 रन बनाकर भारत को शानदार जीत दिलाई। हाई वोल्टेज मैच में शानदार छक्का लगाकर मैच जिताने का जिगरा बहुत ही कम बल्लेबाजों में होता है। उसी तरह टी-20 विश्व कप के फाइनल में जोगिंदर शर्मा को आखिरी ओवर देकर धौनी ने जीत हासिल की थी। तब सभी लोग धौनी की कप्तानी और उनकी रणनीति का गुणगान करने में जुटे थे।


सौरभ गांगुली और सचिन ने भी अगल-अलग वक्त पर धौनी को महानतमन कप्तान कहा है। टीम इंडिया के कोच गैरी कर्सटन ने भी रिटायरमेंट के बाद कहा था कि अगर उन्हें युद्ध के मैदान में जाना होगा तो धौनी को अपना सेनापति रखना पसंद करेंगे। दरअसल क्रिकेट एक टीम गेम है और वह महान अनिश्चितताओं का भी खेल है। इसमें किसी एक व्यक्ति के प्रदर्शन पर हार या जीत का फैसला कम ही होता है। अगर हम हाल के दिनों में भारतीय क्रिकेट के खराब प्रदर्शन पर नजर डालें तो उसके लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जिम्मेदार है। इतना अधिक क्रिकेट खेला जा रहा है कि खिलाड़ी बुरी तरह थक रहे हैं उन्हें आराम का मौका बिल्कुल नहीं मिल पा रहा है। चैंपियंस लीग जैसे बेकार के टूर्नामेंट हो रहे हैं जो खिलाडि़यों को तोड़ देते हैं। जरूरत इस बात की है कि बीसीसीआइ क्रिकेटिंग कैलेंडर को थोड़ा कम व्यस्त रखे। इसके अलावा टीम के हालिया खराब प्रदर्शन के लिए चयनकर्ता भी कम जिम्मेदार नहीं है। चयनकर्ताओं ने टीम इंडिया के बुढ़ाते खिलाडि़यों के विकल्प के लिए कोई नीति नहीं बनाई, युवा खिलाडि़यों को तैयार नहीं किया।


आज सचिन, सहवाग, द्रविड़ और लक्ष्मण का विकल्प दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। चयनकर्ताओं में दूरदर्शिता का अभाव साफ तौर पर दिखता है जिसका खामियाजा टीम इंडिया को उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा अगर हम टीम इंडिया के कोच की बात करें तो एक कोच के तौर पर डंकन फ्लेचर बुरी तरह फ्लॉप साबित हुए हैं। गुरु गैरी की विदाई के बाद डंकन फ्लैचर पर यह जिम्मेदारी थी कि वह टीम इंडिया की सफलता के सिलसिले को बरकरार रखते, लेकिन चार सीरीज बीत जाने के बाद भी ऐसा कुछ नहीं हुआ। फ्लैचर को हर महीने तकरीबन 23-24 लाख रुपये वेतन मिलता है। वक्त आ गया है कि बीसीसीआइ इस बारे में सोचे। अंत में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि धौनी को कप्तानी छोड़ने की सलाह देने वालों को अपनी अभिजात मानसिकता से बाहर निकलकर वस्तुनिष्ठता के साथ उनके नेतृत्व पर विचार करना होगा। अगर वह अपनी अभिजात मानसिकता से बाहर निकलकर विश्लेषण करेंगे तो हार के जिम्मेदार सचिन, सहवाग, द्रविड़ और लक्ष्मण होंगे न कि धौनी।


लेखक अनंत विजय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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