- 1877 Posts
- 341 Comments
हाल ही में अमेरिका के एक थिंक टैंक मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट की तरफ से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान विवादित गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र को 50 वषरें के पट्टे पर चीन को देने का विचार कर रहा है। पाकिस्तान ने यह कदम अमेरिका के साथ चल रहे तनावपूर्ण संबंधों के चलते चीन के साथ संबंध प्रगाढ़ करने के उद्देश्य से उठाया है। रिपोर्ट के अनुसार इसी माह जब पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी चीन की यात्रा पर गए थे, तब दोनों देशों ने गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र को लेकर इस नई रणनीति पर निर्णय लिया था। पाकिस्तान व चीन की सेनाएं गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके में संयुक्त सैन्य प्रबंधन को लेकर पाकिस्तान द्वारा बनाई गई योजना के अनुसार कार्य करने को आगे बढ़ रही हैं। इन पर अमल जून 2012 में शुरू कर दिया जाएगा। चीन के थिंक टैंक ने भी इस संबंध में सकारात्मक राय दी है। चीन यह कार्य तीन चरणों में करेगा। पहले चरण में चीन वहां विकास की योजनाएं बनाएगा। दूसरे चरण में उन पर कार्य प्रारंभ करने के लिए इस क्षेत्र में धीरे-धीरे नियंत्रण स्थापित करेगा और तीसरे चरण में अपने सैनिकों की तैनाती करेगा। इससे पहले नवंबर 2011 के दूसरे सप्ताह में अमेरिका के एक थिंक टैंक ने पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान में चीन की बढ़ती मौजूदगी पर चेतावनी दी थी। उसने कहा था कि अगर चीन के इस अवांछित हस्तक्षेप को चुनौती नहीं दी गई तो इस क्षेत्र का वही हाल होगा जो तिब्बत व पूर्वी तुर्किस्तान का हुआ है।
इंस्टीट्यूट फॉर गिलगित-बाल्टिस्तान स्टडीज नामक इस थिंक टैंक ने इस क्षेत्र के लिए सैनिक हटाने, आत्मनिर्भरता, लोकतंत्र को बढ़ावा देने, वास्तविक स्वायत्तता, उग्रवादी तत्वों की वापसी, प्रांत के कानूनों को पुन: स्थापित करने तथा लद्दाख एवं गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों के बीच आपसी संपर्क को बढ़ावा देने की बात कही थी। थिंक टैंक की ओर से इन मामलों पर नजर रखने वाले सेंगे सेरिंग ने एशिया के मूल नागरिकों पर टॉम लांटोस मानवाधिकार आयोग की सुनवाई में कहा था कि अमेरिका को लद्दाख और गिलगित-बाल्टिस्तान के बीच आर्थिक तथा सांस्कृतिक चैनल खोलने के लिए भारत व पाकिस्तान को रजामंद करना चाहिए। इसके अलावा इस क्षेत्र के लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को भी अपनी भूमिका बढ़ानी चाहिए। मूल रूप से गिलगित-बाल्टिस्तान के रहने वाले सेंगे सेरिंग ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान व चीन ने वहां के मूल निवासियों को अपने ही संसाधनों का लाभ लेने से रोककर क्षेत्र के सामरिक व आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि चीनी कंपनियों को खनन के लाइसेंस दिए जाने के निर्णय से गिलगित-बाल्टिस्तान के निवासियों को अपनी ही जमीन पर अधिकार का खतरा पैदा हो गया है।
सेरिंग ने यह भी बताया कि आइएसआइ इस इलाके का इस्तेमाल पाकिस्तान के तालिबानीकरण का समर्थन करने वाले आंतकवादियों को छिपाने और जमीन मुहैया कराने के तौर पर कर रहा है। इसलिए पाक व चीन की दखलंदाजी कम होनी चाहिए। गिलगित-बाल्टिस्तान में इनका हस्तक्षेप कम होने से वहां की मूल संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा और आतंकवादियों व अरबी कबीलों का प्रभाव कम होगा। उल्लेखनीय है कि गिलगित-बाल्टिस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था व स्वायत्तता के लिए आंदोलन चलता रहता है। यहां के शिया मुसलमानों के इन आंदोलनों को बर्बरतापूर्वक कुचल दिया जाता है। पाक अधिकृत कश्मीर के इन निवासियों को बीते 64 वषरें में कोई बुनियादी हक नहीं प्राप्त हुए, बल्कि यहां की प्राकृतिक संपदा का पाकिस्तान ने भरपूर दोहन किया और अब यही कार्य करने की तैयारी में चीन है।
लेखक डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक हैं
Read Hindi News
Read Comments