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आंतरिक सुरक्षा की चुनौती

जागरण मेहमान कोना
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आज भारत के सामने नक्सलवाद और उग्रवाद बड़ी चुनौती बने हुए हैं। झारखंड में 21 जनवरी को नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में 13 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। माओवादियों द्वारा जबरन उगाही, रेल पटरियों को उखाड़ने, पुलिसकर्मियों और जासूसी के संदेह में नागरिकों को मारने की घटनाएं अब सामान्य बात है। यही कारण है कि अब इनसे निपटने के लिए सेना की मदद लेनी पड़ रही है। सेना केंद्रीय पुलिस बलों को प्रशिक्षित कर रही है ताकि नक्सल विरोधी अभियानों को मजबूत बनाया जा सके। थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने देशवासियों को आश्वस्त किया कि सेना देश के सामने मौजूद किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार है। सेनाध्यक्ष के मुताबिक सामयिक सुरक्षा परिवेश लगातार बदल रहा है और पारंपरिक तथा गैर पारंपरिक रूप से देश पर तरह-तरह के खतरे मंडरा रहे हैं। ये खतरे, हमारी सीमा पर पुराने खतरों से लेकर परोक्ष युद्ध तक विस्तृत हैं। इस दिशा में अपने सुरक्षातंत्र को मजबूत बनाने के अलावा आंतरिक और बाहरी खतरों से निपटना सेना की प्राथमिकता में शामिल है।


आतंकवाद एवं उग्रवाद विरोधी कार्यो में विभिन्न राज्यों की पुलिस तथा अद्धसैनिक बलों में सेना के लोगों की तैनाती पर थलसेनाध्यक्ष की राय है कि आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है, जिसके लिए वे पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को तैनात करते हैं। जब हालात पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के काबू से बाहर हो जाते हैं तभी सेना को आतंकवाद और उग्रवाद विरोधी अभियानों में लगाया जाना चाहिए। सेना का प्रमुख कर्तव्य बाहरी खतरों से सीमा की रक्षा करना है। इसलिए राज्यों को पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र बलों की क्षमता बढ़ाने के प्रयासों में तेजी लानी चाहिए ताकि देश में शांति बनाए रखने के लिए ये एजेंसियां अपनी निर्धारित भूमिका कुशलता से निभा सकें। सीमा प्रबंधन की तैयारी के उच्च मानक बनाए रखने के लिए सेना को आंतरिक सुरक्षा कार्यो से मुक्ति दिलाना जरूरी है। इसके लिए राज्यों, पुलिस बलों और अ‌र्द्धसैनिक बलों से सहयोग मिलना आवश्यक है। आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी मुख्यत: पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की होती हैं। सेना को तभी लगाया जाए जब स्थिति एकदम बेकाबू हो जाए। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व राज्यों में एक संयुक्त सुरक्षा तंत्र की जरूरत है, ताकि स्थिरता लाने के लिए एकजुट प्रयास किया जा सके।


सेना हमेशा से ही केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को आंतरिक सुरक्षा स्थितियों से निपटने हेतु प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिए सहायता देने को तत्पर रही है। हाल के वर्षो में सुरक्षा खतरों में किस प्रकार का बदलाव आया है इसे समझा जा सकता है। आज पारंपरिक खतरों के अलावा आतंकवाद, नशीले पदार्थो और हथियारों की तस्करी, अवैध आव्रजन आदि की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है। इनके चलते हमारे सशस्त्र बलों को कई तरह के खतरों से निपटने के लिए तैयार रहना पड़ता है। दुश्मनों की हथियारों और उपकरणों के हिसाब से क्षमता बढ़ी है, जिस कारण इन बलों की जिम्मेदारी भी काफी बढ़ गई है। पुलिस बलों को भी ऐसी ही क्षमताओं से लैस करना होगा। भारत के सामने पारंपरिक भूराजनीतिक खतरों से लेकर परोक्ष युद्ध के प्रसार तथा दूसरी आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों के खतरे मौजूद हैं। भूराजनीतिक खतरों के लिए कई मोर्चो पर जिम्मेदारी संभालने की आवश्यकता है। इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे में उभरती सुरक्षा चुनौतियों पर विशेष ध्यान देना होगा। आंतरिक सुरक्षा देश के सामने एक बड़ी चुनौती बनी हुई है और इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मिलकर काम करने की जरूरत है। पिछड़े इलाकों में सड़क, पानी, बिजली, स्वास्थ्य तथा अन्य विकास कार्यो से समस्याओं को सुलझाना होगा। तभी शांति बहाल हो सकती है।


लेखक वाईएस बिष्ट स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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