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साहित्य के नए मंच

जागरण मेहमान कोना
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Peeyush Pandeyसचिन तेंदुलकर ने महाशतक जड़ा तो सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर सचिन छा गए। सचिन के सैकड़े पर सैकड़ों कविताएं चमकने लगीं। उनकी शख्सियत को लेकर कई नए शेर अचानक फेसबुक-ट्विटर पर उभर गए। इसी तरह बजट पर व्यंग्य के तीखे बाण भी सोशल मीडिया पर जमकर चले। निश्चित तौर पर देश के जनमानस को प्रभावित करने वाले मसले अब सोशल मीडिया की नब्ज का स्पर्श करते हैं लिहाजा ट्विटर पर ट्रेंडिंग टॉपिक से लेकर यूट्यूब पर सबसे ज्यादा शेयर होने वाले वीडियो इन्हीं मुद्दों से संबंधित होते हैं। फेसबुक, ट्विटर जैसे मंचों पर बड़े मुद्दों पर व्यक्त होती प्रतिक्रियाओं को देखते हुए एक बात समझ आती है कि यह मंच नए किस्म के साहित्यकार गढ़ रहे हैं।


व्यंग्य, कविताएं, शायरी, लघु कहानी जैसी साहित्यिक विधाएं सोशल मीडिया के मंचों पर अलग रूप में सामने आ रही है। खांटी साहित्यकार इन मंचों पर कहे-लिखे जा रहे शब्दों को भले हल्का कहकर खारिज कर दें, लेकिन इस बात से इंकार करना अब लगभग नामुमकिन है कि इन मंचों पर लिखे जा रहे साहित्य में प्रयोगधर्मिता है। मोबाइल फोन के लिए कंटेंट निर्मित करने वाली एक कंपनी में सलाहकार अरविंद जोशी की लिखी कविताएं चंद दिनों पहले तक डायरी के पन्नों से बाहर नहीं झांक पाती थीं। अरविंद ने एक दिन अचानक सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक पर कविता की कुछ पंक्तियां प्रकाशित की। इन पंक्तियों को उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली और कवि अरविंद जोशी की कविताएं लगातार फेसुबक के जरिए दुनिया पढ़ने लगी। अनूठे बिंब और खास प्रयोगों के साथ। अरविंद जोशी कहते है इस्माइली आपको संदेश के साथ संवेदनाएं भेजने की इजाजत देते हैं तो कविताओं में इनका प्रयोग क्यों नहीं किया जा सकता? इंटरनेट की भूमि प्रयोगों के लिए सबसे उर्वर है और साहित्य का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है।


महत्वपूर्ण यह कि इन मंचों के जरिए लोग अपने भीतर की प्रतिभा के अलग आयाम तलाश रहे हैं। अर्थशास्त्र के प्राध्यापक और व्यंग्यकार आलोक पुराणिक फेसबुक पर इन दिनों नए किस्म की शायरी कर रहे हैं। आलोक पुराणिक कहते हैं शुरुआत तो निहायत शौकिया अंदाज में की थी, लेकिन लोगों ने नए बिंबों की शायरी को बहुत पसंद किया। यह प्रयोग फेसबुक पर ही संभव था। फेसबुक-ट्विटर जैसे मंच युवा साहित्यकारों की पाठशाला भी हैं। दूसरी तरफ, आज साहित्य के सामने बड़ी चुनौती प्रचार की है। इसे पाठकों को तलाशना भी कहा जा सकता है, लेकिन सोशल मीडिया इस समस्या को शुरुआती स्तर पर दूर कर देता है। निश्चित रूप से युवाओं के इन पंसंदीदा मंचों पर अभिव्यक्ति को साहित्यिक परिधि में नहीं लाया जा सकता, लेकिन ये मंच नए किस्म के साहित्यकारों की एक जमात तो तैयार कर ही रहे हैं। यहां लेखक बिंदास हैं। हां, इनके लिखे को साहित्य माना जाए या नहीं या किस स्तर का साहित्य माना जाए यह बहस का सवाल है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि सोशल मीडिया से साहित्य की एक धारा बह निकली है।


पश्चिमी देशों में ट्विटरेचर, ट्विलर, ट्विक्शन और फेसबुक फिक्शन जैसे शब्द धीरे-धीरे आम हो रहे हैं और इनसे जुड़े नए प्रयोग लगातार हो रहे हैं। भारत में भी कुछ प्रयोग हुए हैं। मसलन तकनीकी लेखक राकेश रमन ने ट्वीट के रूप में द सैंड प्लेनेट नाम का उपन्यास लिखा जो बाद में प्रकाशित हुआ। ब्रिटिश में बसे भारतीय मूल के शिक्षक सी श्रीधरन ने महाभारत को भीम को दृष्टिकोण से ट्विटर पर लिखा। अर्जुन बसु तो ट्विटर पर 140 अक्षरों की लघु कहानी नियमित लिखते हैं। उनके ट्विटर को पढ़ने वाले पाठकों की संख्या 1,40,000 से ज्यादा है। संवाद लेखिका वर्षा जैन कहती हैं युवाओं के पास अलग अलग आइडिया हैं और बिल्कुल नए विचार हैं और सोशल मीडिया उन्हें यह सब कहने की आजादी देता है। बिना झंझट, बिना सेंसर के। अब यह आपकी समस्या है कि आप उसे साहित्य मानें या न मानें।


इस आलेख के लेखक पीयूष पांडे हैं


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