के-152 नेरपा परमाणु पनडुब्बी को रूस के प्रिमारिए प्रांत में हुए एक समारोह में बीती 22 जनवरी को भारतीय नौसेना को हस्तांतरित किया गया। इस अवसर पर रूस में भारत के राजदूत अजय मल्होत्रा और अन्य अधिकारी मौजूद थे। भारत अब ऐसा छठा देश है जिसके नौसैनिक बेड़े में यह पनडुब्बी शामिल हुई है। भारत से पहले ऐसी पनडुब्बी सिर्फ अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस के पास ही थी। भारतीय नौसेना में इस पनडुब्बी को आइएनएस चर के नाम से जाना जाएगा। अकुला-द्वितीय श्रेणी की नेरपा परमाणु पनडुब्बी भारत को लंबे इंतजार के बाद मिल पाई। इससे पहले 29 दिसंबर, 2011 को रूस ने इसे भारत को सौंपे जाने का करार किया था। भारतीय नौसेना का चालक दल नेरपा परमाणु पनडुब्बी को लेकर लगभग एक माह में भारत के नौसैनिक ठिकाने विशाखापट्टन पर पहुंच जाएगा।
रूसी नौसेना के अधिकारियों के मुताबिक इस पनडुब्बी के समुद्री मारक क्षमता संबंधी सभी तरह के परीक्षणों व प्रदर्शन से जुड़ी जांचों को पूरा करने के बाद इसे भारत को सौंपा गया है। अकुला-द्वितीय श्रेणी की हमलावर परमाणु पनडुब्बी के-152 नेरपा को दस साल की लीज पर लिए जाने का समझौता वर्ष 2004 में 65 करोड़ डॉलर यानी करीब 30 अरब रुपये में किया गया था और समझौते के मुताबिक नेरपा को वर्ष 2008 के अंत तक इसे भारत को सौंपा जाना था, लेकिन उसी वर्ष 8 नवंबर को इसके जापान में समुद्री परीक्षण केसमय रात में एक हादसा हो गया, जिसकी वजह से रूसी आपूर्तिकर्ताओं ने इसकी आपूर्ति को स्थगित कर दिया था।
उल्लेखनीय है कि यह हादसा एक परीक्षण के समय अग्निशामक फ्रेयोन गैस के रिसाव से हुआ था, जिसमें 20 लोगों की मृत्यु हो गई थी। इनमें अधिकांश नागरिक थे। उपर्युक्त हृदयविदारक घटना रूसी नौसेना की सबसे भयानक दुर्घटना थी। ऐसे में रूस का चिंतित होना स्वाभाविक था और गंभीरतापूर्वक जांच पड़ताल किए बिना कोई नया निर्णय नहीं लिया जा सकता था। इसीलिए रूसी अधिकारियों ने इसकी सुपुर्दगी को टाल दिया था। इसके बाद आमूर शिपयार्ड द्वारा निर्मित इस पनडुब्बी के दिसंबर 2009 के अंतिम सप्ताह में कुछ परीक्षण पूरे किए गए। इनकी सफलता के बाद अब तक इसके अनेक सफल परीक्षण किए गए। हादसे के बाद पहले इसे जून 2010 में सौंपे जाने की बात कही गई थी। एक अक्टूबर, 2010 को रूस के खाबरोवस्क प्रांत के गवर्नर व्याचेस्लाव श्पोर्त ने मीडिया को जानकारी दी कि मार्च 2011 में इसे भारत को सौंप दिया जाएगा लेकिन फिर भी विलंब हुआ क्योंकि इसके कुछ परीक्षण होने बाकी थे। 12000 टन वजन वाली इस पनडुब्बी को हासिल करने में भारत को अब 92 करोड़ डॉलर अर्थात लगभग 4,900 करोड़ रुपयों का भुगतान करना पड़ा है। कई माह तक पानी के अंदर रहने की क्षमता वाली यह पनडुब्बी करीब दो दशक से ज्यादा समय बाद भारतीय नौसेना को प्राप्त हो रही है। यह परमाणु हमला करने में सक्षम पहली पनडुब्बी है।
के-152 नेरपा पनडुब्बी 8140 टन से लेकर 12770 टन तक वजन ले जाने में समर्थ है। रूसी समाचार समिति आरआइए नोवोस्ती के अनुसार 30 नॉट की अधिकतम रफ्तार वाली नेरपा पनडुब्बी आठ तारपीडो से भी लैस है। इनमें चार तारपीडो 533 एमएम तथा दूसरे चार तारपीडो 650 एमएम के हैं। इस पनडुब्बी के भारत आने पर इसमें 300 किलोमीटर की लंबी दूरी तक मार करने वाली परमाणु मिसाइलें लगाई जाएंगी। वैसे अकुला-द्वितीय श्रेणी की इन पनडुब्बियों पर 3000 किलोमीटर की दूरी तक मार करने में सक्षम परमाणु क्षमता से युक्त 28 क्रूज मिसाइलें तैनात की जा सकती हैं। भारत ने इससे पहले 80 के दशक में रूसी चार्ली क्लास परमाणु पनडुब्बी का संचालन किया था।
लेखक लक्ष्मीशंकर यादव सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक हैं
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