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लोकतंत्र के करीब म्यांमार

जागरण मेहमान कोना
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gauri shankar rajhansएक अप्रैल को म्यांमार में हुए उपचुनाव के नतीजे यद्यपि आधिकारिक तौर पर आने बाकी हैं, परंतु यह सपष्ट हो गया है कि विपक्ष की नेता और लोकतंत्र समर्थक आंग सान सू की भारी बहुमत से संसद का चुनाव जीत रही हैं। यह भी प्राय: निश्चित है कि जिन 44 सीटों पर सू की की पार्टी एनएलडी ने चुनाव लड़ा है उनमें से अधिकतर सीटों पर उनकी विजय होगी। यह चुनाव कई मामलों में ऐतिहासिक था। प्राय: 20 वषरें के बाद यह चुनाव हुआ, जिसमें सारी दुनिया के पत्रकार और सरकारों के पर्यवेक्षक आए और सबने इस बात की पुष्टि की कि चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से और निष्पक्ष रूप से हुआ है।


एक वर्ष पहले म्यांमार में जनता सू की की पार्टी एनएलडी के मुख्यालय के आसपास जाने की कल्पना तक नहीं कर सकती थी। इस पर पुलिस की नजर लगी रहती थी और सरकारी जासूस यह पता लगाने का प्रयास करते रहते थे कि कौन सू की से मिलने का प्रयास कर रहा है, परंतु आज स्थिति बदल गई है और सू की के घर के आगे ढोल-नगाड़े बज रहे हैं। जश्न मनाया जा रहा है कि सू की शीघ्र ही सांसद जाएंगी और गरीबों की आवाज संसद में उठाएंगी। 1990 में म्यांमार में हुए आम चुनाव में एनएलडी भारी बहुमत से जीत गई थी, परंतु तत्कालीन सैनिक शासकों ने सत्ता हस्तांतरण के बदले सू की को उनके घर में नजरबंद कर दिया था और उनके समर्थक सांसदों और दूसरे राजनेताओं को जेल में डाल दिया था। गत दो दशकों में सू की प्राय: 15 वर्षो तक अपने घर में ही नजरबंद रहीं। इस बीच सू की को शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिला। सू की और उनकी पार्टी के साथ जो बर्बरतापूर्ण व्यवहार हुआ उसकी पूरे विश्व में घोर निंदा हुई और पश्चिमी देशों ने म्यांमार की सैनिक सरकार के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए।


इस बीच म्यांमार में चीन ने अपना प्रभाव बढ़ा दिया। सैनिक शासकों ने जब यह महसूस किया कि म्यांमार बहुत दिनों तक संसार के अन्य देशों से कटा नहीं रह सकता है तब उन्होंने दिखावे के लिए वहां आम चुनाव कराया, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री यू थेन सेन को राष्ट्रपति निर्वाचित किया गया। थेन सेन ने सू की से समझौता किया और सू की ने सार्वजनिक रूप से अमेरिकी मीडिया को इंटरव्यू में कहा कि थेन सेन के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है और वह सही अर्थ में म्यांमार में लोकतंत्र की स्थापना करना चाहते हैं। इस बीच थेन सेन की सरकार ने देश में मीडिया को पूरी स्वतंत्रता दे दी। अब वहां पर समाचारपत्र सरकार की आलोचना कर सकते हैं।


यह सही है कि केवल सू की के सांसद बनने से या उनके 40 समर्थकों के सांसद बनने से म्यांमार की राजनीति में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं आएगा, क्योंकि संसद में कुल सदस्यों की संख्या करीब चार सौ है, परंतु जैसा कि सू की ने कहा है कि लोकतंत्र में पहला कदम सबसे महत्वपूर्ण होता है। उन्हें यह विश्वास है कि संसद में उनकी आवाज सारी दुनिया सुनेगी और विश्व जनमत के आगे कोई भी निरंकुश सरकार बहुत दिनों तक नहीं टिक सकती है। राष्ट्रपति थेन सेन ने कहा है कि जिस प्रकार सू की को नजरबंद किया गया, उनकी पार्टी के राजनेताओं को जेल में डाल दिया गया तथा उनकी पार्टी को मान्यता नहीं दी गई उससे अंतत: म्यांमार की जनता का ही नुकसान हुआ है। इस कारण पश्चिम के देशों ने म्यांमार के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। विदेशों से आर्थिक सहायता मिलनी बंद हो गई है और अमेरिका सहित पश्चिम के सभी देशों ने म्यांमार से व्यापार पूरी तरह बंद कर दिया है। ऐसा करने से नुकसान म्यांमार की गरीब जनता का ही हुआ है। उदाहरण के लिए पूरे म्यांमार में गरीब घरों की महिलाएं सिले-सिलाए वस्त्र तैयार करती थीं, जो बहुत बड़े पैमाने पर अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों को निर्यात किया जाता था। यह निर्यात पूरी तरह से बंद हो गया है और ये महिलाएं दाने-दाने को मोहताज हो गई हैं। राष्ट्रपति थेन सेन ने कहा कि पश्चिम के देशों की सरकारों ने कहा है कि बिना सू की की सहमति के म्यांमार के खिलाफ लगा हुआ आर्थिक प्रतिबंध नहीं हटाया जा सकता है। थेन सेन के तर्क को म्यांमार की जनता ने समझा है और इसी कारण सू की और उनकी पार्टी के सदस्यों की म्यांमार में एक बार फिर से जय-जयकार हो रही है। अब जनता को उम्मीद की किरण नजर आने लगी है देर-सबेर म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार स्थापित हो ही जाएगी।


म्यांमार आसियान का एक महत्वपूर्ण सदस्य है। पहले जब म्यांमार को आसियान का अध्यक्ष बनाने की बात आई थी तो सभी देशों ने सैनिक तानाशाही के कारण उसका समर्थन करने से इंकार कर दिया था। हालिया घटनाक्रम के बाद ये देश अब इस बात पर राजी हो गए हैं कि 2013 में म्यांमार को आसियान का अध्यक्ष बनाया जाए। उधर, उदारवादी विचारों के पक्षधर राष्ट्रपति थेन सेन दिल की बीमारी के कारण राजकाज सुचारू रूप से नहीं चला पाते हैं। म्यांमार में लोकतंत्र के समर्थक इस बात से बहुत चिंतित हैं कि यदि सू की और थेन सेन में से कोई इस दुनिया से असमय चला गया तो क्या होगा? डर इस बात का है कि उस हालत में म्यांमार की कट्टरपंथी सेना शासन पर दोबारा से हावी हो जाएगी और शायद म्यंामार की जनता फिर से अपार कष्ट झेलने के लिए अभिशप्त हो जाएगी। आशा की जानी चाहिए कि यह स्थिति नहीं आएगी। कुल मिलाकर म्यांमार में सू की के नेतृत्व में लोकतंत्र की जो सुहानी बयार बह रही है वह निश्चित रूप से दबी कुचली जनता को राहत देगी।


लेखक डॉ. गौरीशंकर राजहंस पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत है


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