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हाल के विवादों के संदर्भ में केंद्र व राज्यों के संबंधों की प्रकृति पर निगाह डाल रहे हैं डॉ. भरत झुनझुनवाला
राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी केंद्र यानी एनसीटीसी तथा रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स बिल का राज्य सरकारों द्वारा विरोध किया गया है, जिसके कारण केंद्र ने दोनों प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। इसी प्रकार का अतिक्रमण केंद्र द्वारा आर्थिक क्षेत्र में भी लगातार किया जा रहा है और राज्य विरोध कर रहे हैं। केंद्र सरकार के टाइम टेबल के अनुसार एकल गुड्स एंड सर्विस टैक्स को अप्रैल 2011 से लागू होना था, परंतु उसे टाल दिया गया है। मनरेगा जैसी योजनाओं को लागू करने में केंद्र द्वारा लगाई गई शतरें का भी राज्यों द्वारा विरोध किया जा रहा है। इस तनातनी के पीछे राज्यों का स्वायत्तता के प्रति संदेह है। एक ओर भारत जैसे बड़े देश की एकता बनाए रखने के लिए सशक्त केंद्र की जरूरत है वहीं दूसरी ओर राज्यों को प्रयोग करने एवं विकास का अपना रास्ता अपनाने के लिए स्वायत्तता देना भी जरूरी है।
विषय को कनाडा और अमेरिका के उदाहरण से समझा जा सकता है। अमेरिका में तमाम अलग-अलग स्वतंत्र देश थे। 1776 में उन्होंने तय किया कि ये मिलकर यूनाइटेट स्टेट्स आफ अमेरिका नाम से नए संघीय देश का निर्माण करेंगे। इसके लगभग सौ वर्ष बाद वहां गृहयुद्ध छिड़ गया। दक्षिण के राज्यों ने केंद्र सरकार के आदेशों को मानने से इंकार कर दिया। इसी समय कनाडा का संविधान बनाया गया था। संविधान के निर्माताओं के आकलन में अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ने का कारण कमजोर केंद्र सरकार थी। अत: उन्होंने सशक्त केंद्र सरकार की स्थापना की। यह भी सोचा गया कि कनाडा में अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी बोलने वाले अलग-अलग राज्य हैं। इन्हें एक साथ रखने के लिए सशक्त केंद्र चाहिए।
कनाडा और अमेरिका के संविधान में मौलिक अंतर है। अमेरिका में केंद्र सरकार राज्य द्वारा बनाए गए कानून को वीटो नहीं कर सकती है। कनाडा में केंद्र सरकार की सहमति के बाद ही राज्य द्वारा बनाए गए नियमों को लागू किया जाता है। अमेरिका में राज्य के न्यायालयों पर राज्य सरकार का नियंत्रण है। कनाडा में सभी न्यायालयों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण है। अमेरिका में राज्य के गवर्नर को राज्य के लोगों द्वारा चुना जाता है। कनाडा में गवर्नर की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
इन अलग-अलग संघीय ढांचों का देश के आर्थिक विकास पर प्रभाव देखा जा सकता है। अमेरिका में 2005 में प्रति व्यक्ति आय 43,000 अमेरिकी डॉलर थी, जबकि कनाडा में 32,000। दूसरे आर्थिक मानकों में भी कनाडा आगे नहीं दिखता है। अत: कमजोर केंद्र सरकार का अमेरिका के आर्थिक विकास पर सार्थक प्रभाव पड़ा है, ऐसा माना जा सकता है। राज्य सरकार के स्वायत्त होने पर अमेरिका के राज्यों में अलग-अलग प्रयोग किए जाते हैं, जिससे संपूर्ण देश के लिए नई दिशा खुल जाती है। जैसे अपने देश में बिहार में नीतीश कुमार और गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हो रहा विकास देखा जा सकता है। तुलना में कनाडा में केंद्र सरकार का दबदबा है। केंद्र सरकार की नीतियां गलत हों तो पूरा देश चपेट में आ जाता है। स्विट्जरलैंड तथा ऑस्ट्रेलिया में भी केंद्र कमजोर है, फिर भी ये देश आगे बढ़ रहे हैं। भारत का संघीय ढांचा मूलत: कनाडा की तर्ज पर है। केंद्र सशक्त है और राज्य कमजोर।
दूसरा पक्ष देश की एकता का है। अलग-अलग भाषा बोलने वालों की सहज प्रवृत्ति दूर छिटकने की होती है। इन्हें एक देश में बांधे रखने में सशक्त केंद्र मददगार है। इस दृष्टि से भारत के लिए सशक्त केंद्र उपयुक्त दिखता है, परंतु हम भूल रहे हैं कि भारत के नागरिक अध्यात्म और संस्कृति से जुड़े हुए हैं। महात्मा बुद्ध के अनुयायियों एवं आदि शंकराचार्य ने इन्हें एक सूत्र में पिरो रखा है। यह भी ध्यान दें कि पाकिस्तान में सशक्त केंद्र के बावजूद बांग्ला भाषियों को एक देश में नहीं रखा जा सका था। तात्पर्य यह कि सशक्त केंद्र से देश की एकता को बनाए रखना अल्प अवधि के लिए संभव हो सकता है। दीर्घ समय में लोगों का प्रसन्न मन से सहयोग जरूरी होता है, जो कि कमजोर केंद्र तथा सशक्त राज्यों द्वारा ज्यादा आसानी से हासिल होता है।
इस पृष्ठभूमि में केंद्र की आर्थिक नीतियों का विवेचन किया जा सकता है। केंद्र सरकार गुड्स एंड सर्विस टैक्स लगाना चाहती है। इससे राज्यों की अपने विवेकानुसार टैक्स वसूलने की स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी। प्रस्तावित कानून में यह प्रावधान भी किया गया है कि केंद्र के वित्तमंत्री द्वारा राज्य की ओर से प्रस्तावित टैक्स की दरों को वीटो किया जा सकेगा। गुड्स एवं सर्विस टैक्स बड़ी कंपनियों के लिए लाभप्रद होगा, क्योंकि उनके लिए विभिन्न राज्यों के लिए माल को भेजना आसान हो जाएगा, लेकिन राज्य के छोटे उद्यमों के लिए यह हानिप्रद होगा। वे दूसरे राज्यों को माल कम भेजते हैं अत: वे लाभान्वित नहीं होंगे, बल्कि दूसरे राज्यों में स्थित बड़ी कंपनियों से उन्हें प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करना होगा।
वर्तमान में देश में खनिजों पर रॉयल्टी की दरें केंद्र द्वारा निर्धारित की जाती हैं। केंद्र सरकार न्यून दर पर निर्धारित करती है। कारण यह कि केंद्र सरकार पर बड़ी कंपनियों का दबदबा है, जो इन खनिजों का उपयोग करती हैं। इन खनिजों से बने माल का उपयोग दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में ज्यादा किया जाता है। केंद्र सरकार ने विश्व व्यापार संधि पर राज्य सरकारों से सलाह किए बगैर हस्ताक्षर कर दिए थे। देश को विदेशी माल एवं पूंजी के लिए खोल दिया गया था। राज्यों को चाहे अनचाहे इस परिस्थिति में अपना रास्ता खोलना पड़ा है। केंद्र सरकार ने पांचवें एवं छठे वेतन आयोग की संस्तुतियों को राज्य सरकारों से सलाह किए बगैर लागू कर दिया। फलस्वरूप राज्य सरकारों को अपने कर्मचारियों के वेतन भी बढ़ाने पड़े और उनकी वित्तीय स्थिति कठिनाई में पड़ गई। इन तमाम नीतियों के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा प्रयास किया जा रहा है कि राज्यों के अधिकारों में कटौती की जाए।
केंद्र सरकार द्वारा अधिकाधिक अधिकारों को अपने हाथों में लेना न तो देश के आर्थिक विकास के लिए हितकारी है न ही आम आदमी के लिए। अत: हमें केंद्र को हल्का करना चाहिए। इससे आर्थिक विकास में गति आएगी और आम आदमी को भी सुकून मिलेगा। कहा जा सकता है कि स्वायत्त राज्य सुशासन स्थापित करने में सफल नहीं होंगे, जैसा कि बिहार तथा उत्तर प्रदेश में देखा जा सकता है। यह तर्क सही है, परंतु राज्य की स्वायत्तता छीनने से आक्रोश बढ़ेगा। उचित है कि राज्य के लोगों को अपने अनुभव से सबक लेने दिया जाए, जैसा कि अनेक राज्यों में हम होता देख रहे हैं।
लेखक डॉ. भरत झुनझुनवाला आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं
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