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उम्मीदों की कसौटी पर आइपीएल-5

जागरण मेहमान कोना
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द डर्टी पिक्चर में विद्या बालन का एक संवाद खूब हिट रहा, फिल्म तीन चीजों से चलती है, इंटरटेनमेंट, इंटरटेनमेंट और इंटरटेनमेंट और मैं इंटरटेनमेंट हूं। खेल की दुनिया में यही संवाद इतने ही भरोसे से आइपीएल ही दोहरा सकता है। आइपीएल यानी इंटरटेनमेंट, इंटरटेनमेंट और इंटरटेनमेंट। इसकी झलक एक बार चेन्नई में आइपीएल सीजन-5के उद्घाटन समारोह में दिखी। अमिताभ बच्चन, सलमान खान, करीना कपूर और प्रियंका चोपड़ा जैसे बॉलीवुड के सितारों के रंगारंग कार्यक्रम के बाद क्रिकेट की सबसे बड़ी लीग का आगाज हो चुका है। उद्घाटन समारोह के कार्यक्रम की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी पॉप स्टार कैटी पैरी पहली बार भारत में थिरकीं और अरसे बाद प्रभुदेवा का जादू भी लोगों को नजर आया। पहली नजर में ही आइपीएल के मौजूदा चेयरमैन राजीव शुक्ला ललित मोदी को टक्कर देते नजर आए। उन्होंने उद्घाटन समारोह में वह सब जुटा लिया, भारतीय क्रिकेट में जिसके लिए ललित मोदी मशहूर थे। लेकिन राजीव शुक्ला के सामने अगली बड़ी चुनौती होगी आइपीएल के ब्रांड का जादू कायम रखना।


वर्ष 2011 के आइपीएल के दौरान सबसे बड़ी आशंका यही थी कि क्या आइपीएल ललित मोदी के बिना चल पाएगा। सीजन-4 के फ्लॉप होने के बाद इन आशंकाओं को बल ही मिला था, लेकिन सीजन-5 की भव्य शुरुआत के साथ ही तय हो गया है कि मोदी की जगह लेने के लिए शुक्ला पूरी तरह से तैयार हैं। ऐसे में न केवल उनके सामने, बल्कि हर क्रिकेट प्रशंसक के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि इंडियन प्रीमियर लीग का 5वां सीजन इंटरटेनमेंट के पैमाने पर कहां पहुंचेगा। इससे जुड़ा एक और सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या इंडियन प्रीमियर लीग का आयोजन बस मनोरंजन ही बनकर रह गया है या फिर इससे इसकी मूल वृत्ति क्रिकेट का भी भला हो रहा है। दोनों सवाल एक-दूसरे के पूरक भी हैं और दोनों के जवाब भी एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। सीजन-5 की चुनौतियां आइपीएल ने क्रिकेट की दुनिया को एक नया तेवर दिया, जिससे क्रिकेट महज खेल नहीं रहा है, बल्कि पूरी तरह से इंटरटेनमेंट का पैकेज बन गया। इसने युवा सितारों को चमकने और दुनिया भर के दिग्गजों को एक मंच पर आने का मौका दिया। और तो और, इसने क्रिकेट की लोकप्रियता को आसमान पर पहुंचा दिया।


आइपीएल से जुड़ा सबसे बड़ा सच तो यही है कि इसके चलते भारत में क्रिकेट के टीवी दर्शकों के संख्या बढ़ी है। महिलाओं का बड़ा समूह भी आइपीएल के चलते ही क्रिकेट देखने लगा है। स्थानीय शहरों के नाम पर खेलती टीमों ने भी क्रिकेट का नया दर्शक वर्ग बनाया है, लेकिन सीजन-5 के सामने सबसे बड़ी चुनौती आइपीएल के रुतबे को कायम रखने की होगी, क्योंकि सीजन-4 एक मायने में फ्लॉप साबित हुआ था। व‌र्ल्ड कप की धमाकेदार जीत के बाद सीजन-4 क्रिकेट के दर्शकों के लिए ओवरडोज साबित हुआ। लिहाजा, आइपीएल सीजन-3 की तुलना में उसके करीब 30 फीसदी दर्शक कम हो गए। यही वजह है कि शुरुआती दौर में आइपीएल को लेकर कोई बड़ा उत्साह बाजार में नजर नहीं आया। इसका अंदाजा आइपीएल मैचों का प्रसारण अधिकार खरीदने वाले प्रसारक कंपनी की मुश्किलों से होता है। आइपीएल के शुरू होने तक कंपनी विज्ञापन के करीब आधे स्लॉट ही बेच पाई है, जबकि आइपीएल सीजन-4 की शुरुआत होने तक प्रसारकों ने 80 फीसदी स्लॉट बेच लिए थे। बीते सीजन में प्रसारकों के पास 10 स्पांसर समूह थे, इस बार अब तक महज पांच कंपनियों से स्पांसरशिप को लेकर करार हो सका है। बहरहाल, बाजार में आइपीएल को लेकर बहुत ज्यादा उत्साह भले नहीं हो, लेकिन यह आयोजन भारतीय क्रिकेट के लिए टर्निग प्वाइंट साबित होने वाला है। बीते एक साल के दौरान जिस तरह से टीम इंडिया का प्रदर्शन मैदान पर औसत से बेहतर नहीं हो पाया है, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि आइपीएल के जरिये भारत में क्रिकेट का खोता हुआ जादू फिर से लौट सकता है।


फटाफट क्रिकेट का मनोरंजक मंच – आईपीएल का पंच


उम्मीदों का आसमान मैदान के अंदर कई ऐसे पहलू हैं, जिसे लेकर यह उम्मीद जगती है कि क्रिकेट का जादू लौटेगा। पिछले सीजन में अकेले दम पर रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूर को फाइनल तक पहुंचाने वाले क्रिस गेल एक बार फिर धमाल करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। टूर्नामेंट से ठीक पहले मुंबई इंडियंस की कप्तानी छोड़ने वाले सचिन तेंदुलकर अपना सारा ध्यान बल्लेबाजी पर लगाना चाहते हैं। उनका इरादा भी अपनी टीम को चैंपियन बनाने का होगा। यूसुफ पठान का धमाल इस सीजन भी जारी रहेगा। ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब आइपीएल सीजन-5 में छुपा हुआ है। हर बार की तरह ही इस बार के आइपीएल को सुपर हिट बनाने का दारोमदार उन खिलाडि़यों पर होगा, जो अपने दम पर किसी भी मैच का नक्शा बदलने का दमखम रखते हैं। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूर की ओर से क्रिस गेल के अलावा विराट कोहली पर सबकी नजरें होंगी, जो इस समय अपने बेहतरीन फॉर्म में हैं। वहीं डेल्ही डेयरडेविल्स की ओर से डेविड वॉर्नर का इरादा भी कुछ जोरदार पारियां खेलने की होगी। डेक्कन चार्जर्स की ओर से यही भूमिका डेनियल क्रिस्टियन को निभानी होगी, जबकि चेन्नई की ओर से माइकल हसी और कोलकाता की ओर से जैक कैलिस जैसे बल्लेबाज निश्चित तौर पर अपने दम पर मैच जीतने का दमखम रखते हैं। सीनियर खिलाडि़यों का इम्तिहान इन सबके बीच निश्चित तौर पर नजरें तीन उम्रदराज खिलाडि़यों पर भी जाती हैं, जिनके सामने इस बार बेहद मुश्किल चुनौती है। सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और एडम गिलक्रिस्ट पर इस बार कई जिम्मेदारियों को बोझ है।


गांगुली को युवराज सिंह की जगह पुणे वॉरियर्स का कप्तान बनाया गया है। इसके अलावा उन्हें कोच और मेंटर की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। यही तीनों भूमिका राहुल द्रविड़ राजस्थान रॉयल्स के लिए निभाएंगे तो एडम गिलक्रिस्ट किंग्स इलेवन पंजाब के लिए इसी भूमिका में दिखेंगे। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके राहुल द्रविड़ अपने इस अंतिम टूर्नामेंट को यादगार बनाना चाहेंगे, वहीं गिलक्रिस्ट का इरादा भी पंजाब की टीम को चैंपियन बनाने से कम नहीं होगा। लेकिन इन तीनों की मुश्किल यह है कि इनकी तुलना शेनवॉर्न से होगी, जो कप्तान, कोच और मेंटर की भूमिका में खासे कामयाब रहे। आलोचनाओं का क्या जवाब आइपीएल सीजन के शुरू होते ही देश में नई बहस शुरू हो जाती है कि क्रिकेटर देश से ज्यादा क्लब को प्राथमिकता दे रहे हैं। इस सीजन में ही जिस तरह से सहवाग, सुरेश रैना और रवींद्र जडेजा भारतीय टीम के लिए कुछ खास नहीं कर सके हैं, ऐसे में लोगों की नजरें आइपीएल के उनके प्रदर्शन पर टिकी होंगी।


आइपीएल में अच्छा प्रदर्शन होते ही एक बार फिर बहस होगी कि खिलाड़ी देश से ज्यादा क्लब को प्राथमिकता देने लगे हैं, लेकिन हकीकत में यह सवाल ही गलत है। क्रिकेटर न तो देश और न ही क्लब को प्राथमिकता दे रहे हैं, बल्कि वे पैसे को प्राथमिकता दे रहे हैं। मौजूदा दौर में कोई क्रिकेटर साल भर में भारत की ओर से खेलकर उतना पैसा नहीं बना सकता है, जितना आइपीएल के एक सीजन में बना लेता है। इस खेल में खिलाड़ी अकेले भी नहीं हैं। बोर्ड के सामने किसी अकेले की कोई बिसात नहीं है और भारतीय क्रिकेट बोर्ड उनके साथ इस खेल में बराबरी का साझेदार है, क्योंकि आइपीएल बोर्ड के लिए सोने का अंडा देनी वाली मुर्गी साबित हुआ है। इसकी ब्रांड वैल्यू बनी रहे, इसके लिए जरूरी है कि सारे स्टार खिलाड़ी इसमें खेलें, भले वे अनफिट क्यों न हों। आलोचकों का यह भी मानना है कि आइपीएल के आयोजन से भारतीय क्रिकेट का बहुत भला नहीं हो रहा है। इससे न तो स्तरीय खिलाड़ी सामने आ रहे हैं और न ही खेल का स्तर बेहतर हो रहा है। आलोचना में कुछ हद तक सच्चाई जरूर है, लेकिन हमें साथ में यह भी देखना होगा कि इसके आयोजन से हम एक साथ कितने घरेलू क्रिकेटरों को अपनी चमक बिखेरने का मौका देते हैं। इंटरनेशनल खिलाडि़यों के साथ खेलने से वे ऐसा अनुभव हासिल करते हैं, जिसका फायदा उन्हें हमेशा हो सकता है। इन सबसे बड़ी बात यह है कि आइपीएल दुनिया के सबसे बेहतरीन टूर्नामेंटों में एक है। यह भारतीय क्रिकेट की पहचान को दुनिया भर में पुख्ता करती है। यहां पैसों का जोर और ग्लैमर की चमक-दमक भले ज्यादा दिखती हो, लेकिन यह सब क्रिकेट के बल पर ही है। लिहाजा, उम्मीद यही करनी चाहिए कि आइपीएल सीजन-5 में क्रिकेट का रोमांच बना रहे।


लेखक प्रदीप कुमार टीवी पत्रकार हैं


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