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पुनर्जन्म की अबूझ गाथा

जागरण मेहमान कोना
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नोएडा में रह रही मेरी सहेली उस रोज रात का खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। अपनी डेढ़ साल की बेटी को रसोईघर के प्लेटफॉर्म पर बैठाकर वह उससे बातें कर रही थी और साथ ही साथ सब्जी भी काट रही थी। खाली बर्तनों से खेल रही अचानक नन्ही बालिका बोलती है, मम्मी मैं ढाबा चलाती थी, मैं ही खाना बनाया करती थी..। मेरे तीन बेटे थे। तीनों ही मेरे काम में मदद करते थे..। मेरा वह घर यहां से ज्यादा दूर नहीं है। यह सुनकर मेरी सहेली के तो जैसे होश ही उड़ गए। एक बार अचानक बच्ची अपनी मां से बोली-मेरा घर उस तरफ है। मैं वहां रहती थी। बेटी द्वारा बताए जा रहे सच को देखने का साहस वह नहीं जुटा पाई, क्योंकि यदि वह सच निकलता तो बेटी पर दूसरा परिवार अपना हक जताता। इस डर से मेरी सहेली ने बेटी को उस दिशा में न ले जाने का निश्चय किया, परंतु बेटी की बात को उसका अंतर्मन नकार भी नहीं पा रहा था। इसी तरह दिल्ली में रहने वाली एक मराठी परिवार में जन्मी सवा साल की बालिका अपने माता-पिता को एक दिन बताने लगी, मां, मैं कलकत्ते में रहती थी। मैं छत से गिरी थी।


हालांकि पुनर्जन्म पर परिवार का पूरा विश्वास था, पर कलकत्ते में उनका कोई परिचित न होने के कारण वे उसकी बातों की जांच-पड़ताल करा नहीं सके। एक दिन बालिका के बाल कटवाने के लिए उसकी मां पार्लर गई तो जैसे ही हेयर ड्रेसर ने कैंची निकाली बच्ची चीखने लगी, बचाओ, बचाओ, मुझे बचाओ! सारे लोग चकित होकर देखने लगे, क्योंकि वह छोटी सी बच्ची बड़ों की तरह जान बचाने की गुहार लगा रही थी। उसकी मां को तो यह देखकर झटका लगा, क्योंकि कोई संभावना ही नहीं थी कि उस सवा साल की बच्ची को ये शब्द पता हो। वह परिवार टीवी भी नहीं देखता था, इसलिए नाटकीय अंदाज में कहे ऐसे शब्दों को बच्ची ने टीवी पर सुना हो, यह भी संभव नहीं था। ये दोनों बालिकाएं तथा उनके उच्च शिक्षित परिवार मेरे परिचित हैं। इतना ही नहीं ऐसी घटनाएं मेरे सामने भी घटी हैं। वे लोग अंधश्रद्धालु नहीं हैं, फिर भी पुनर्जन्म पर उनका पूरा विश्वास है। जिस प्रकार मनुष्य फटे-पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है। जातस्य हि धु्रवो मृत्युर्धुवं जन्म मृतस्य च अर्थात जिस जीव का जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है तथा जिसकी मृत्यु हुई है, उसका पुनर्जन्म तय है। ऐसा भगवद्गीता में कहा गया है। परंतु जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के पूरे चक्र का हमारा ज्ञान अभी अपर्याप्त है।


पूर्वजन्मों की स्मृतियां-मृत्यु द्वार से लौटे लोगों के मृत्यु के अनुभव तथा पुनर्जन्म जैसे विषयों पर अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में काफी शोध हुआ है, जो निरंतर जारी है। इस काम में डॉ. इयान स्टीवेंसन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वह यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में मनोविज्ञान के प्रोफेसर थे, जिन्होंने ऐसे 2500 व्यक्तियों पर व्यक्तियों के पुनर्जन्म पर शोध कार्य किया है। उनमें से कई मामले भारत व श्रीलंका में होने के कारण उन व्यक्तियों से मिलने वह भारत में भी कई बार आए। पूर्वजन्मों की स्मृतियों के बारे में बताने वाले भारत के उन व्यक्तियों से बातचीत करके, उनकी स्मृतियों का वैज्ञानिक विश्लेषण करके शोध के आधार पर उन्होंने कई निष्कर्ष निकाले और 15 पुस्तकें लिखीं। उन्होंने हजारों लेख, साक्षात्कार, डॉक्युमेंटरी फिल्म आदि भी तैयार कराए। रीइनकार्नेशन एंड बायोलॉजी पुस्तक में उन्होंने 200 बच्चों के केस का उल्लेख दिया है। उन बच्चों ने अपने पिछले जन्मों में जख्मी होने और शरीर के जिन अंगों को क्षति पहुंचने की बात बताई थी वह सच निकलीं।


पूर्व जन्म के उन लोगों के शरीर पर ठीक उन्हीं स्थानों पर वैसे निशान पाए गए थे, जिसे उन्होंने बताया था। एक बालिका ने अपने पूर्व जन्म के बारे में बताते हुए कहा था की वह तब पुरुष थी तथा उसके हाथों की उंगलियां उस जन्म में कट चुकी थीं और इस जन्म में भी उसके हाथों की उंगलियां जन्म से ही टेढ़ी-मेढ़ी और क्षतिग्रस्त थीं। उसके हाथों की उंगलियां जन्म के समय नाम के बराबर थीं। इसी तरह एक बालक ने अपने पूर्व जन्म के बारे में बताते हुए कहा था की वह तब दूसरे गांव में रहता था तथा चारा कटाई के मशीन से उसके हाथों की अंगुलियां कट गई थीं। डॉ. इयान स्टीवेंसन ने कुछ ऐसे भी केस पाए, जो अन्य विदेशी भाषाओं में बड़ी सहजता से बोलते थे। हालांकि यह उन्होंने कभी सीखी भी नहीं थी। उन्होंने इस क्षमता को जेनोग्लासी नाम दिया तथा उस पर पुस्तकें लिखीं। वर्जीनिया विश्वविद्यालय में पिछले साढ़े तीन सालों से इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रही अपनी बेटी के पास हाल ही में मैं मिलने गई। उसकी मदद से डॉ. इयान स्टीवेंसन द्वारा लिखित अनेक पुस्तकों का मैंने वहां अध्ययन किया। पूर्व जन्मों की स्मृतियोंपर काम कर रहे डॉ. टकर ने लाइफ बिफोर लाइफ पुस्तक लिखी है जिसमें वह बताते हैं कि कुछ व्यक्ति अपने पूर्व परिवार में जन्मते हैं तो कुछ अपने पूर्व गांव में या आसपास पैदा होते हैं। अपने पूर्व जन्म के बारे में बताने वाले बच्चे सामान्यत: दो-तीन साल की उम्र में पिछले जन्म के माता-पिता, रिश्तेदार, परिचित लोग, निवास स्थान आदि के बारे में तथा अपने साथ घटी घटनाओं के बारे में अचानक बताना शुरू कर देते हैं।


छह-सात साल की उम्र में सामान्यत: वे पूर्वजन्म की स्मृतियों को भूल जाते हैं। 70 प्रतिशत मामलों में उस पूर्व व्यक्तित्व की मृत्यु एक्सीडेंट जैसी किसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना या हिंसा के कारण हुई होती है। डॉ. टकर बताते हैं यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हिंसा के कारण अथवा बाल्यकाल में होती है तो पुनर्जन्म होने पर बच्चे द्वारा उस बारे में बताने की संभावना अधिक होती है। बच्चे बहुत बारीकी से जानकारी देते हैं, लेकिन ये सारी बातें उन्होंने इधर-उधर से सुनी हुई होती हैं या फिर वास्तव में वह पूर्व व्यक्तित्व पुनर्जन्म लेकर आया है यह बताना बहुत कठिन है। पर वे जिन घटनाओं के बारे में बताते हैं, वे अनुभव उस व्यक्ति के जीवन में सचमुच आए होते हैं। उनकी स्मृति अगले जन्म में कैसे संक्रमित होती है इसका पता वैज्ञानिकों को नहीं है। कुछ बच्चों ने पिछले जन्म में जानवर होने की बात बताई, लेकिन इन दावों की जांच-पड़ताल असंभव है।


बीस प्रतिशत बच्चों ने मृत्यु के बाद की घटनाओं का वर्णन किया। कुछ बच्चों ने दो जन्मों के बीच घटी घटनाएं बताई। कुछ बच्चों ने बताया कि मृत्यु के बाद उन्होंने यहीं पर समय बिताया तो कुछ बच्चों ने स्वर्ग जैसे किसी अन्य स्थान पर गए होने की बात कही। भगवान, देवदूत या फिर सफेद रंग की आकृतियां देखी होने की बात भी कुछ बच्चों ने बताई। आधुनिक विज्ञान पुनर्जन्म के बारे में किसी ठोस निष्कर्ष तक अभी तक नहीं पहुंचा है। मनुष्य के मृत होने के साथ उसकी चेतना नष्ट होती हैं ऐसा मेडिकल साइंस मानता है, परंतु बच्चों द्वारा बताई गयी पूर्व जन्म की लगभग सभी बातों में वास्तविकता थी। संभवत: मृत्यु के बाद चेतना संक्रमित होती होगी, इस बात को नकारा नहीं जा सकता।


लेखिका रश्मि घटवाई स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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