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ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन यानी बीबीसी ने करीब एक पखवाड़े पहले अपने संवाददाताओं, रिपोर्टर और प्रोड्यूसरों के लिए सोशल मीडिया से संबंधित नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनके मुताबिक बीबीसी के पत्रकारों के लिए खबर को सबसे पहले न्यूजरुम में बताना अनिवार्य है। दूसरे शब्दों में कहें तो पत्रकार खबर को पहले सोशल नेटवर्किग साइट पर ब्रेक नहीं कर सकता। एक लिहाज से यह स्वाभाविक है, क्योंकि कोई भी मीडिया संस्थान यह नहीं चाहता कि उसका पत्रकार किसी बड़ी खबर को संस्थान के मंच के बजाय निजी मंच से पहले प्रसारित करे। सोशल मीडिया पर जिस तेजी से खबर प्रसारित होती है, उसमें यह सवाल अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को मथने लगा है। इस ट्रेंड को रोकने की कवायद भी शुरु हो गई है। बीबीसी के दिशानिर्देशों से एक दिन पहले स्काइ न्यूज ने तो खासे सख्त नियम लागू किए उसने अपने पत्रकारों से साफ कहा है कि वह संस्थान के बाहर के किसी भी शख्स के ट्वीट को री-ट्ीवट न करें। संस्थान के मीडियाकर्मियों को भेजे ई-मेल में स्काइ न्यूज ने कहा है कि प्रतिस्पर्धी संस्था के पत्रकारों और संस्थान के बाहर के कर्मचारियों के ट्वीट को री-ट्वीट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इतना ही नहीं, स्काइ न्यूज के नए दिशानिर्देशों के बाद पत्रकार अपनी बीट, जिस क्षेत्र की रिपोर्टिग उन्हें सौंपी गई है, के बाहर दूसरी बीट से जुड़े ट्वीट को अपने एकाउंट से नहीं भेज सकते। इसका मतलब है कि खेल पत्रकार को फिल्म के बारे में ट्वीट करने का अधिकार नहीं है। इसी दौरान सीएनएन ने अपने पत्रकार रोनाल्ड मार्टिन को कुछ विवादास्पद ट्वीट करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया है।
बीबीसी, स्काई न्यूज और सीएनएन के सोशल मीडिया को लेकर सख्त दिशानिर्देश के बाद आने वाले दिनों में कई दूसरे अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों का इस राह पर चलना लगभग तय है। दरअसल, सोशल मीडिया की रिपोर्टिग कैसे की जाए और सोशल मीडिया पर रिपोर्टिग किस तरह हो, इसे लेकर अभी मीडिया संस्थान किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं। दूसरी तरफ भारत जैसे देशों में एक तीसरा सवाल और भी है। वह यह कि यहां अधिकांश पत्रकार सोशल मीडिया को लेकर सजग नहीं है। सोशल मीडिया के मंचों पर सक्रिय रहने अथवा इसके उपयोग की उन्हें कोई ट्रेनिंग नहीं है। हिंदी समेत क्षेत्रीय भाषाओं के अधिकांश मीडिया संस्थान अभी सोशल मीडिया से संबंधित खबरों के लिए एजेंसी पर निर्भर हैं। सवाल यही है कि सोशल मीडिया को लेकर क्या मीडिया संस्थानों के पास अपनी कोई नीति नहीं होनी चाहिए? सोशल मीडिया की रिपोर्टिग पत्रकारिता को एक नया आयाम देने में सक्षम है, क्योंकि अब दुनिया भर में यह माना जा रहा है कि सोशल मीडिया के तमाम मंच खबरे जुटाने के स्त्रोत हैं और इनके जरिए एक नयी दुनिया से जुड़ा जा सकता है, लेकिन क्या हमारे पत्रकार इन मंचों के इस्तेमाल को लेकर तैयार हैं। कई पत्रकार अब सोशल मीडिया पर अपनी सूचनाएं पहले दे रहे हैं। इस स्थिति में न्यूजरुम में खबरों पर कोई फैसला होने से पहले सोशल मीडिया पर खबर आ रही है।
आने वाले दिनों में सोशल मीडिया खबरों का बहुत बड़ा स्त्रोत होने वाला है तो इस बाबत भारतीय मीडिया संस्थानों की तैयारी क्या है? हाल में विदेश मंत्रालय के लोक कूटनीति प्रभाग में संयुक्त सचिव नवदीप सूरी ने एक सेमीनार में बताया कि विदेशों में स्थित तमाम भारतीय दूतावासों को फेसबुक व दूसरे मंचों पर सक्रिय होने को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस कड़ी में सोशल मीडिया उपयोगी भूमिका निभा सकती है। अभी 56 दूतावास फेसबुक पर हैं जिनकी संख्या बढ़ाने की कोशिश हो रही है। सोशल मीडिया के मंच वैकल्पिक मीडिया होते हुए भी मुख्यधारा के मीडिया के पूरक हैं और अब इस बात को समझे जाने की जरूरत है।
इस आलेख के लेखक पीयूष पांडे हैं
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