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सरस्वती पूजन की प्रासंगिकता

जागरण मेहमान कोना
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मां भगवती के चार महारूपों में एक महासरस्वती हैं। वाणी, ज्ञान और बुद्धि की देवी के रूप में उनकी प्रसिद्धि है। सरस्वती मां समस्त विषयों में संसिद्धि की अथाह क्षमता से विभूषित हैं इसलिए जो भी अपने कार्य में उत्कृष्टता चाहते हैं वे आदिकाल से मां सरस्वती की अभ्यर्थना करते आए हैं। सभी कलावंत और स्वरसाधक अपने अभ्यास मां वीणापाणि की आराधना से आरंभ करते हैं। सभी सामाजिक कार्यक्रमों का आरंभ भी इसीलिए सरस्वती वंदना से होती है ताकि कार्य सर्वोत्तम तरीके से पूर्ण हो। ऐसा केवल हिंदू ही नहीं कई मुस्लिम संगीतज्ञों और उस्तादों ने भाववि ल होकर सरस्वती वंदना गाई है। यह अपने कार्यक्रमों का आरंभ वाग्वादिनी की प्रार्थना से करते हैं। ऐसा किसी अंधविश्वास से नहीं, बल्कि आस्था से होता है। भारत विश्व का एकमात्र देश है जहां सभ्यता हजारों वर्षो से अविच्छिन्न है। नि:संदेह हमारा बहुत-सा ज्ञान भंडार, सांस्कृतिक मूल्य बाहरी आक्रमणों तथा अन्य कारणों से नष्ट हुए और हमारी संस्कृति में विकृति भी आई, लेकिन वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, योगसूत्र आदि शास्त्र आज भी अविच्छिन्न बची हुई हैं।


सरस्वती पूजा उन्हीं मूल्यों में से एक है। शिव और शक्ति से व्याप्त संपूर्ण भारत भूमि में विद्यार्जन, विद्या दान और कर्मयोग को गंभीर आध्यात्मिक अर्थ में लिया जाता है। तमसो मा ज्योतिर्गमय या असतो मा सदगमय जैसे वाक्य हमें सदियों से प्रेरणा देते आए हैं। सभी विद्या, कला और कौशल मां सरस्वती के साम्राज्य में निहित है। वह जड़ता हरने वाली, भयमुक्त करने वाली और मूर्खतारूपी अंधकार को दूर करने वाली हैं। संपूर्ण जगत में विचार तत्व के रूप में वह सर्वव्यापी हैं। जिन पर वह अनुग्रह करती हैं, उन्हें सूक्ष्म बोध, धैर्य, अंर्तज्ञानी, प्रमाद रहित नीर-क्षीर विवेकी दृष्टि प्रदान करती हैं। इसीलिए सभी देवता और त्रिदेव भी सरस्वती की वंदना करते हैं। महान दार्शनिक श्री अरविंद ने अपनी प्रसिद्ध रचना माता में देवी के चार महारूपों का वर्णन किया है। वह लिखते हैं कि महासरस्वती को अयत्न और आलस्य से घृणा है। कोई भी काम किसी तरह निबटा देना, जल्दबाजी से कोई काम करना, किसी भी तरह का भद्दापन, लक्ष्यभ्रष्टता, गुणों का दुरुपयोग, किसी काम को अधूरा छोड़ देना उन्हें प्रिय नहीं। सभी शक्तिविग्रहों में सरस्वती ही सबसे अधिक मनुष्य के समीप और सदा सहाय हैं यदि हमारा संकल्प सदाचारी हो। निष्कपट और सच्चे मनुष्यों को ही देवी का साथ मिलता है।


मां सरस्वती झूठे स्वांग, छल, आत्मप्रवंचना और पाखंड के प्रति निर्मम भी हैं। यह वर्तमान युग की अस्तव्यस्तता और आपाधापी में सरस्वती पूजन को एक विशेष संदर्भ प्रदान करता है। यदि हम दिशाहीनता, विषाद, अवसाद और खिन्नता से मुक्त रहना चाहते हैं तो इसमें मां सरस्वती ही सहायक हो सकती हैं। इसलिए न केवल ज्ञान की सिद्धि के लिए वरन अपने जीवन को क्लेषरहित और उत्साहपूर्ण बनाए रखने के लिए भी सरस्वती पूजा करनी चाहिए। इसके अभाव में सुशिक्षित युवाओं में भी तरह-तरह के भटकाव, रुग्णता, लंपटता, भ्रष्टाचार और बुरी लतों का प्रसार दिखता है, क्योंकि उन्होंने शिक्षा को केवल डिग्रियां, अंक, ग्रेड और तकनीकी हुनर प्राप्त करने तक सीमित रखा है। मां सरस्वती की पूजा से हममें वह शक्ति और सौंदर्य आता है जिसे किसी भौतिक पैमाने से नहीं मापा जा सकता। जहां विश्व की सभी मजहबी धाराओं को विज्ञान के विकास के साथ चुनौतियां झेलनी पड़ी वहीं भारतीय धर्म चिंतन और दर्शन को कभी समस्या नहीं हुई, बल्कि उसे बल मिला। भगवद्गीता या उपनिषदों का सत्य किसी मनुष्य का निर्माण नहीं, सरस्वती के वरदपुत्रों द्वारा योग दृष्टि से देखी गई और दिव्य अनुभवों से प्राप्त दैवीय संपदा है। इसीलिए भारत में आदि काल से चले आ रहे सरस्वती पूजन का महत्व आध्यात्मिकता के साथ-साथ व्यावहारिकता में भी बना हुआ है।


लेखक एस. शंकर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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